ज्यादातर वर्ल्डकप में दक्षिण अफ्रीका का सफर सेमीफाइनल में आकर ठहर जाता है और इसीलिए उन्हें 'चोकर्स' कहा जाता है। 2023 में उन्हें सेमीफाइनल का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन विजेता मानने वाले बहुत कम थे। हालांकि इस टीम के प्लेयर्स ने यह कह कर दबाव हटाने की कोशिश की थी कि हम उस इतिहास का हिस्सा नहीं हैं जब हमारे पूर्व खिलाड़ियों के हाथ-पैर सेमीफाइनल खेलते समय फूल जाते थे, लेकिन कोलकाता में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल की कहानी कहती है कि ये खिलाड़ी अपने पूर्व खिलाड़ियों से बिलकुल अलग नहीं हैं।
मैच ऑस्ट्रेलिया ने नहीं जीता बल्कि साउथ अफ्रीका हारा है। ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम जो दूसरों से जीत छीन लेता है उसे ही दक्षिण अफ्रीका ने तश्तरी में रख कर मैच उपहार में दे दिया। साउथ अफ्रीकी टीम ने इस वर्ल्डकप में जिस तरह से आगाज किया था उससे दूसरी टीमों में हलचल मच गई थी, लेकिन बीच-बीच में कमजोर टीमों के खिलाफ यह टीम पटरी से उतर गई जिससे दूसरी टीमों में यह विश्वास जाग गया कि दबाव बढ़ाने से इस टीम के खिलाड़ी बिखर जाते हैं।
यही तकनीक ऑस्ट्रेलिया ने सेमीफाइनल में आजमाई। पहले बल्लेबाजी करते समय मामूली रन बना कर साउथ अफ्रीकी टीम पैवेलियन में पहुंच गई। मिलर ने किला लड़ाकर दिखाया कि यदि थोड़ी बहादुरी और टिकने का जज्बा दिखाया जाता तो इतने रन बनाए जा सकते थे कि ऑस्ट्रेलिया मुसीबत में पड़ सकता था।
बल्लेबाजों की नाकामी को साउथ अफ्रीकी टीम के फील्डर्स और कप्तान ने और गहरा कर दिया। जब आप मामूली स्कोर का बचाव कर रहे हों तो फील्डिंग चुस्त दुरुस्त होनी चाहिए। 4 से 5 कैच छोड़कर साउथ अफ्रीका टीम ने अपनी हार की इबारत खुद लिख डाली।
टेम्बा बावुमा की कप्तानी बेहद लचर थी। स्पिनर्स लाने में उन्होंने देर कर दी। जब स्पिनर्स ने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर शिकंजा कसना शुरू किया तो बावुमा फील्ड जमाने में नादान निकले। टर्न होते पिच पर उन्होंने नजदीकी फील्डर खड़े करने में काफी देर कर दी। महाराज की कई गेंदों में स्मिथ सहित कई बल्लेबाजों के बल्ले का किनारा लेकर गेंद स्लिप पर से गुजरी, लेकिन वहां कोई फील्डर नहीं था। बावुमा को जब समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
खिलाड़ी चाहे लाख मना करें, लेकिन चॉकर का टैग लेकर वे उतरे थे और सेमीफाइनल का उन पर बहुत दबाव था। कोलकाता की जनता का समर्थन भी उनमें कोई उत्साह नहीं जगा पाया क्योंकि खेलने के पूर्व ही वे हार मान चुके थे। इस वर्ल्डकप से एक बार फिर साउथ अफ्रीका बुरी याद लेकर गया है।
सेमीफाइनल से पहले दिखे कुछ सकारात्मक पहलू
हालांकि सेमीफाइनल से पहले देखें तो पहली बल्लेबाजी करने पर दक्षिण अफ्रीका एक अलग टीम लग रही थी जिससे सभी टीमें डर रही थी। किसी भी वनडे विश्वकप का सबसे बड़ा स्कोर इस टीम ने ही बनाया था। लेकिन दूसरी बल्लेबाजी करने पर टीम को लीग मैचों में दो हार झेलनी पड़ी जिसमें से एक नीदरलैंड्स के खिलाफ आई।
एडम मार्कर्म ने 44 गेंदों में वनडे विश्वकप का सबसे तेज शतक जिसका रिकॉर्ड कुछ ही दिनों में मैक्सवेल ने तोड़ा। अपना अंतिम वनडे विश्वकप खेल रहे क्विंटन डि कॉक ने पूरी जान लड़ा दी और 4 शतक ठोके लेकिन सेमीफाइनल मैच उनका आखिरी वनडे मैच साबित हुआ।
टीम के लिए एक अच्छी बात गेराल्ड कोट्जे का उदय रहा जिन्होंने इस टूर्नामेंट में 19 विकेट चटकाए। रबाडा और एन्गिडी के बीच कोई उनके नाम पर गौर नहीं कर रहा था। स्पिन विभाग में केशव महाराज ने 15 विकेट चटकाए जो विश्वकप में किसी भी दक्षिण अफ्रीकी स्पिनर का संयुक्त रुप से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। यह कुछ सकारात्मक पहलू अफ्रीकी टीम वापस लेकर जा सकती है।