Old Pension Scheme: पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बीच ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) एक नया मुद्दा बनकर उभरा है। दरअसल, मध्यप्रदेश में अब ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग तेज हो गई है। इस स्कीम का लाभ उठाने के लिए अब रेलवे कर्मचारियों ने भी अपनी मांग तेज कर दी है। जबकि दूसरी तरफ सांसदों और विधायकों को ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) का फायदा मिल रहा है।
बता दें कि पूर्व सांसदों और विधायकों को इस समय 20 हजार से लेकर 50 हजार रुपए तक पेंशन मिल रही है। वहीं दूसरी तरफ 2005 और 2005 के बाद सरकारी सेवाओं में आए कर्मचारियों और अधिकारियों को न्यू पेंशन स्कीम यानी (NPS) में लिया गया है। ऐसे में सवाल यह है कि पढ़-लिखकर सरकारी विभागों में सेवाएं देने वाले ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) के दायरे में नहीं है, जबकि दूसरी तरफ पूर्व और यहां तक दुनिया छोड़कर जा चुके सांसदों और विधायकों को भी यह पेंशन क्यों मिल रही है। बता दें कि दिवंगत हो चुके सांसदों के परिवार वालों को भी कुटुंब पेंशन दी जाती है। सवाल यह है कि कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच यह भेदभाव क्यों।
मप्र और देश में कितने पूर्व सांसद-विधायक, जिन्हें मिलती है पेंशन
बता दें कि मप्र में इस वक्त 400 पूर्व विधायक हैं। इनमें कुछ ऐसे भी हैं जिनकी पेंशन 50 हजार रुपए से ज्यादा है। वहीं देश की बात करें तो देश में इस वक्त करीब 4 हजार 700 पूर्व सांसद हैं। जबकि 300 कुटुंब पेंशन धारक भी है। यानी ऐसे सांसद जिनके निधन पर उनके परिवार वालों को कुटुंब पेंशन मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक विधायकों और सांसदों की पेंशन पर हर साल 500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होता है।
इसलिए उठे सांसद-विधायकों की पेंशन पर सवाल
भारत में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन 2004 से ही बंद कर दी गई थी, लेकिन सेना इससे अछूती थी। 'अग्निपथ' योजना के माध्यम से भर्ती 'अग्निवीरों' को पेंशन नहीं मिलेगी। इन्हें 4 साल बाद ही सेवामुक्त कर दिया जाएगा। ऐसे में ये पेंशन के हकदार नहीं होंगे। सरकार की इस योजना के बाद अब सांसद और विधायकों की पेंशन पर भी सवाल उठने लगे हैं। स्वयं भाजपा सांसद वरुण गांधी ने 'अग्निवीरों' के समर्थन में पेंशन छोड़ने की बात कही थी। वहीं, कृषिमंत्री नरेन्द्र तोमर ने वरुण की टिप्पणी को निजी राय बताया है।
सांसद-विधायकों की पेंशन का विरोध इसलिए भी हो रहा है क्योंकि इनके पास पहले से ही काफी संपत्ति होती है। हालांकि इनमें भी कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन ये लोग अपनी पेंशन छोड़ने की बात नहीं करते। पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण ने जरूर कहा था कि अल्पावधि के लिए सेना में काम करने वाले नौजवानों को जब पेंशन नहीं मिल रही है तो जनप्रतिनिधियों को यह सहूलियत क्यों?
एक दिन के सांसद को भी पेंशन : नई प्रक्रिया के तहत नेताओं को सेवा के दौरान हर महीने अपने कुल वेतन में से अंशदान देना होता है, जिसमें सरकार भी हर महीने उतने ही रुपयों का योगदान देती है और उसी को जोड़कर पेंशन के रूप में दे दिया जाता है। यह जानकार जानकर हैरानी हो सकती है कि अगर कोई व्यक्ति एक दिन के लिए भी सांसद बन जाए तो उसे आजीवन 25 हजार रुपए पेंशन के रूप में दिए जाते हैं। उनके पश्चात पत्नी को भी आधी पेंशन देने का प्रावधान है।
विधायक की पेंशन ज्यादा : भारत के कई राज्य तो ऐसे हैं, जहां के पूर्व विधायकों की पेंशन सांसदों से ज्यादा है। विधायकों को रिटायरमेंट के बाद पहले 5 सालों में 25 हजार और उसके उसके बाद प्रतिवर्ष 2 हजार रुपए अलग से मिलते हैं। संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम 1954 की धारा 8-क में सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान किया गया है। सांसदों को प्रतिमाह 20 हजार रुपए पेंशन के रूप में दिए जाते हैं। यदि नेता एक बार से ज्यादा सांसद बनता है तो उसकी पेंशन में अतिरिक्त राशि जुड़ जाती है। हालांकि विधायकों की पेंशन को लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग प्रावधान हैं।
पंजाब में 'एक विधायक, एक पेंशन' : पंजाब में अब एक विधायक को एक ही पेंशन मिलेगी। आम आदमी पार्टी सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान ऐलान किया कि अब से विधायकों को एक ही कार्यकाल की पेंशन दी जाएगी। पंजाब के विधायकों को प्रतिमाह 75000 रुपए पेंशन मिलती है, जबकि जो विधायक कई बार जीते हैं उनकी पेंशन 3 लाख प्रतिमाह से भी ज्यादा पहुंच रही थी। मान की घोषणा के बाद अब विधायकों को एक ही कार्यकाल की पेंशन मिलेगी।
केवल गुजरात में पेंशन नहीं : देश में केवल गुजरात ही ऐसा राज्य है, जहां पूर्व विधायकों को पेंशन नहीं दी जाती। इसके अलावा देश के 8 राज्यों ने पेंशन के लिए विधायकों की ऊपरी सीमा तय की है। कुछ राज्यों में कार्यकाल की समयसीमा भी तय की गई है। भारत के 4 राज्य ऐसे भी हैं, जहां ये सीमा तय की गई है। उदाहरण के लिए ओडिशा में एक साल, सिक्किम और त्रिपुरा में 5 साल और असम में यह सीमा 4 साल है। ऐसा एक फार्मूला सांसदों के लिए भी लाया गया था, लेकिन 2004 में इसे हटा लिया गया था।
क्या है पेंशन का गणित : कई राज्यों में विधायक 8-8 बार की पेंशन ले रहे हैं। राजस्थान की ही बात करें तो एक बार के पूर्व विधायक को 35 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है। अगर वह दूसरी बार विधायक बनता है तो पेंशन राशि में 8000 रुपए की वृद्धि हो जाती है। इसके बाद नेता जितनी बार भी विधायक बनेगा, उतनी ही बार 8-8 हजार रुपए की पेंशन राशि बढ़ जाएगी।
हालांकि विधायकों को यह पेंशन तब मिलती है जब वे विधायक नहीं होते। विधायक रहते समय उन्हें वेतन के अलावा भत्ते भी मिलते हैं। यदि कोई व्यक्ति 9 बार विधायक बन जाता है तो उसे 99 हजार रुपए प्रतिमाह पेंशन मिलती है। हाल ही में आरटीआई में मिली सूचना के मुताबिक हरियाणा के कुल 275 पूर्व विधायकों की पेंशन व 128 पूर्व विधायकों की फैमिली पेंशन पर पेंशन पर कुल 29.51 करोड़ रुपए सालाना खर्च किए जा रहे हैं।
इसी तरह महाराष्ट्र में विधायकों की पेंशन पर सालाना 72 करोड़ खर्च होते हैं। राज्य विधानसभा के 668 पूर्व विधायकों को पेंशन उपलब्ध कराई जा रही है, जबकि विधान परिषद के 144 पूर्व विधायकों को पेंशन मिलती है। वहीं 503 दिवंगत विधायकों की विधवा अथवा विधुर के नाम पर परिवार को पेंशन मुहैया कराई जाती है।
पेंशन दिए जाने की प्रक्रिया : इस कार्य के लिए भारतीय संसद के दोनों सदनों के लिए एक संयुक्त कमेटी का गठन किया जाता है, जिसमें दोनों सदनों के 5-5 मेंबर होते हैं। यही सदस्य मिलकर दोनों सदनों के कमेटी अध्यक्ष को नामित करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश के सभी पूर्व सांसदों और विधायकों को पेंशन देने में प्रतिवर्ष 500 करोड़ से ज्यादा धन खर्च करना पड़ता है। जनप्रतिनिधियों की पेंशन पर रोक लगाने को लेकर याचिकाएं मध्य प्रदेश और इलाहबाद हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में दायर की जा चुकी हैं, लेकिन सभी को खारिज कर दिया गया।
सांसद-विधायकों की चुप्पी : 'अग्निपथ' योजना की खुली तारीफ करने वाले विधायक-सांसद जब अपनी पेंशन की बात आई तो चुप्पी साध गए। सिवाय वरुण गांधी के अलावा अभी तक किसी भी विधायक या सांसद ने देश के विकास के लिए पेंशन छोड़ने की बात नहीं कहीं। उल्टे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह ने गांधी को बात को उनकी निजी राय बनाकर इस मामले से पल्ला झाड़ लिया। Edited By : Navin Rangiyal