वो रहा, कहां, अरे वो सामने, कहां? अच्छा वो, काफी मशक्कत और चश्मा ऊपर-नीचे करने के बाद मेरी नजर पेड़ों के झुरमुट को चीर, नाले के उस पार, गुफा के आधे अंदर और आधे बाहर लेटे बाघ पर जाती है।
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पहली प्रतिक्रिया यही है कि यह कितना बड़ा जानवर है। और यह कहते-कहते आवाज जाने क्यों बिलकुल धीमी हो जाती है जबकि हमारे और सोए हुए बाघ के बीच की दूरी इतनी है कि चिल्लाने पर भी उसे सुनाई न दे। खुले जंगल में मेरा बाघ से यह पहला साक्षात्कार है।
हाथ के रोएं कुछ खड़े महसूस होते हैं। एक हाथ अनायास बेटे को सुरक्षा घेरे में ले लेता है। अब तक कई गाड़ियां रुक चुकी हैं। हर ड्राइवर दूसरे को लताड़ रहा है कि आगे बढ़ो लेकिन सवारियों का फोटो खींचने से दिल भरे तब न! और जब गाड़ियों में दुनिया के जाने-माने वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर सवार हैं तो कौन आगे बढ़ेगा?
आखिरकार ट्रैफिक खुलता है और हम आगे बढ़ने लगते हैं। सभी को लगता है जंगल में प्रवेश के कुछ मिनटों के अंदर ही मकसद सफल हो गया, बाघ को उसके प्राकृतिक रूप में देख लिया, बिना पिंजरों के, अब आगे क्या?
* टाइगर को उसके प्राकृतिक रूप में करीब से देखने का सबसे बढ़िया अवसर यहीं पाया जाता है। * गर्मियों की शुरुआत बेहतरीन मौका है, क्योंकि झाड़ियां बहुत घनी नहीं होतीं और टाइगर आसानी से दिखते हैं।
कुछ दूर तक हिरणों, साम्भरों के झुंड और लंगूरों के करतब हमें आकर्षित करने में विफल हो जाते हैं। चर्चा बाघ केंद्रित हो चुकी है। ड्राइवर साहब वन विभाग में दो दशक से ज्यादा सेवाएं दे चुके हैं।
उनका टाइगर इन्साइक्लोपीडिया चालू है। दोपहर तेजी से शाम की ओर बढ़ती है। हम रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के एक जोन का फेरा लगा चुके हैं। गाड़ियां वापसी की ओर हैं तभी झाड़ियों से काली धारियां निकलती हैं। लंबा-चौड़ा बाघ हमारी गाड़ी की ओर लंबे डग भरता हुआ आ बढ़ता है। हमारी आंखों को उसकी चाल मस्तमौला-सी दिखती है।
लेकिन जब वह पलक झपकते कच्ची सड़क पर उतर आता है तब उसकी गति का अंदाजा लगता है। ड्राइवर साहब बताते हैं कि यह वही बाघ है, जो अब सोकर उठ चुका है, टी-28।
उसकी शाम की सैर का वक्त हो चुका है। तब तक टी-28 कच्ची सड़क को हमारे सामने से पार कर जाता है। इतना पास कि हाथ बढ़ाओ तो छू जाए। उसने हमारी ओर देखने की ज़हमत नहीं उठाई। लेकिन मेरा गला सूख रहा है। एक हथेली बेटे का मुंह बंद कर रही है, कुछ बोल न दे, बाघ डिस्टर्ब हो गया तो? अरे, ये क्या, ड्राइवर गाड़ी बाघ के पीछे लगा देते हैं।
* रणथम्भौर में कुल 52 बाघ हैं। * हिरण, साम्भर, चीतल, तेंदुए, लेयोपार्ड, जंगली सूअर, लंगूर, घड़ियाल और अनेक किस्म के वन्य और जलपक्षी बहुतायत में मौजूद हैं।
कुछ देर बाद बाघ कच्ची सड़क छोड़ जंगल में घुस जाता है। हिरणों को हसरतभरी निगाहों से देखता है, लेकिन पलक झपकते फिर सड़क पर। गाड़ी स्टार्ट, रुको, यह तो सड़क के बीचोबीच बैठ गया, पंजे सहलाए, लंबी उबासी और लेट गया। लो।
क्लिक, क्लिक, क्लिक, ले लो मनुष्यों, जितनी फोटो चाहिए। यह दृश्य हमारी उम्मीदों से बढ़कर है। टाइगर साइटिंग तो सुनी थी, मगर 25 मिनट का साक्षात्कार! ये तो सोचा भी न था। कभी सड़क, कभी झाड़ियों में टी-28 के साथ रहकर हम लौट जाते हैं। लगता नहीं वह शिकार के मूड में है।
अगला दिन, एक और सफारी। हमारा लालच बढ़ता जा रहा है। सुबह से खबर मिली है कि चार शावकों के साथ आकर्षण का केंद्र बनी बाघिन कहीं नजर नहीं आ रही। टाइगर रिजर्व के अधिकारी चिंतित हैं। तभी किसी ने बताया कि सुबह कुछ लोगों ने बाघिन को देखा है। हम सब राहत की सांस लेते हैं।
तभी बाघ के मूवमेंट की खबर। इस बार डर नहीं लगता लेकिन बाघ की करीबी से सांस फिर भी रुक जाती है। यह टी-64 है। तीन साल का जवान, मस्त। झाड़ियों में बैठा टी-64 अंगड़ाई लेता उठता है और तालाब के किनारे-किनारे चलने लगता है। गाड़ियों की कतार उसके पीछे लग जाती है।
अपने विदेशी टूरिस्ट को खुश करने की होड़ में एक नौजवान ड्राइवर जोर से गाड़ी दौड़ाता है। बाघ का रास्ता बाधित होता है। सब खामोश, बाघ के पांव ठिठके, उसने गर्दन घुमाई, घूरकर देखा, कौन गुस्ताख है?
अगले पेज पर पढ़ें... काटो तो खून नहीं....
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काटो तो खून नहीं, लेकिन बाघ ने इरादा बदला, हिकारत से हम मनुष्यों को एक बार देखा और अपने रास्ते चलने लगा। इस दफा किसी ने पीछा करने की ज़हमत नहीं उठाई। उस दुस्साहसी नौजवान ड्राइवर ने भी नहीं।
हमारी दूसरी सफारी अपने अंतिम पड़ाव पर है। थकान महसूस हो रही है, तभी टाइगर की मूवमेंट का संदेश फिर सुनाई देता है। चलो, चलो। इस बार टी-28। कल के बाद आज ही दोबारा दिखा है, वही समय, वही चाल।
बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा है लेकिन मजाल है गति में कोई कमी हो। इस बार हम भी ट्रेन हो चुके हैं। लंगूर की अलार्म कॉल के मुताबिक बाघ की दिशा समझ जाते हैं। रणथम्भौर के ऐतिहासिक किले की प्राचीर और भी खूबसूरत हो उठी है।
* रणथम्भौर जाने के लिए सवाई माधोपुर तक ट्रेन बेहतरीन विकल्प है। सवाई माधोपुर और रणथम्भौर टाइगर रिजर्व के आसपास आधुनिक सुविधाओं से युक्त कई होटल व रिसॉर्ट हैं।
सूरज ढल रहा है। डूबते सूरज की लालिमा को चीरता टी-28 पत्थरों से होकर झाड़ी में ओझल हो गया है। लंगूर की कॉल और भी तेज हो गई है। हिरणों का झुंड चौकड़ी भरने लगता है।
दो दिन की सफारी और छह टाइगर साइटिंग! और वह भी इतने करीब कि हाथ से छू लें। लेकिन हम मनुष्य हैं और हमारी इच्छाएं सिर्फ बढ़ना जानती हैं। सर, बाघिन की कोई खबर है? उसके शावक कहां होंगे? सर, हमने बाघिन तो एक भी नहीं देखी। सॉरी, हम समयसीमा बहुत पहले पार कर चुके हैं। अब वापस जाना होगा। यहां नाइट सफारी की कोई गुंजाइश नहीं है। ओके सर! थैंक्यू वेरी मच!