पूरे साल चले कॉर्बेट का प्लैटिनम जुबली समारोह 15 नवंबर को समाप्त हो गया। प्लैटिनम जुबली के समापन समारोह में पहुंचे प्रदेश के मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने इस मौके पर कॉर्बेट घूमने के शौकीनों के लिए ऑनलाइन बुकिंग सेवा की शुरुआत के साथ ही पार्क क्षेत्र के धनगढ़ी व कालागढ़ में बनाए गए दो गेटों का उद्घाटन भी किया। वन्यजीव प्रेमी मुख्यमंत्री के दौरे से कॉर्बेट की सूरत बदलने वाली कुछ बड़ी घोषणाओं के साथ ही पॉलिसी लेवेल पर भी कुछ निर्णय होने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया ।
कॉर्बेट पार्क को एशिया में बाघों के घर के रूप में जाना जाता है और देश में कॉर्बेट जैसा कोई दूसरा स्थान नहीं है जहां प्रति 100 किलोमीटर में बाघों का औसत 20 के लगभग है। बाघों का प्रति 100 किलोमीटर औसत अन्य स्थानों पर 10-12 ही है। प्रोजेक्ट टाइगर शुरू होने और बीते एक दशक के दौरान तो कॉर्बेट ने बाघों के संरक्षण के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है।
पार्क क्षेत्र के साथ ही पार्क से लगे बाहरी रेंजों में भी बाघों की संख्या में खूब वृद्धि हुई हैं लेकिन इस वृद्धि के कारण वन्यजीव प्रेमियों, पर्यटकों के साथ ही वन्यजीवन के दुश्मन तस्करों की नजर भी इस पार्क और इससे लगे क्षेत्रों में रह रहे बाघों पर टिक गई है।
कॉर्बेट के प्लैटिनम जुबली वर्ष में सेमिनारों से लेकर सम्मानों तक पूरी कवायद जिन वन्यजीवों के दम पर चलती रही और जिन्हें देखने के लिए पर्यटक देश ही नहीं, वरन दुनिया भर से पहुंचते हैं। उन्हीं के लिए कुछ नहीं हो पाया। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनने के बाद कॉर्बेट पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया। योजना की सफलता यह रही कि वर्तमान में कॉर्बेट पार्क में बाघों की संख्या डेढ़ सौ से अधिक हो गई है जबकि पार्क के बाहरी वन क्षेत्रों को मिला दिया जाए तो बाघों की संख्या 260 के लगभग बताई जाती है।
उत्तराखंड में बाघ केवल कॉर्बेट पार्क और इससे लगे वन क्षेत्रों में ही पाए जाते हैं और राज्य में बाघों का घनत्व पूरे देश में सबसे अधिक है। लेकिन बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही अब संरक्षण से जुड़ी परेशानियां भी बढ़ने लगी हैं। बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही उनके पर्यावास के लिए वन क्षेत्र कम हो गया है जिस कारण बाघ पार्क से लगे वन रेंजों में अपनी टैरेटरी बना रहे है। यहां तक कि पार्क की बाहरी वन रेंजों में मानव बस्तियों से लगे जंगलों में ही सबसे अधिक मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं भी हो रही हैं। यही क्षेत्र बाघों के अवैध शिकार के लिए भी मुफीद स्थान बन रहे हैं।
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पार्क की सीमा से लगे क्षेत्रों में अवैध शिकार की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। पार्क के भीतर रहने वाले बाघ तो शिकारियों से भी सुरक्षित बच सकते हैं और यहां मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना भी कम है लेकिन जो 100 से अधिक बाघ कॉर्बेट पार्क की सीमाओं के बाहर के वन रेंजों में रह रहे हैं उनकी सुरक्षा से लेकर पर्यावास संबंधी गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
बाघों की संख्या बढ़ना जहां सरकार, पार्क प्रशासन और पर्यावरण प्रेमियों को उत्साहित करने वाली खबर है वहीं बाघों के लिए संकट यह हो रहा है कि इस क्षेत्र में वन्यजीव तस्करों का आतंक भी बढ़ गया है। पार्क के भीतरी क्षेत्र में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती के कारण वन्यजीव तस्कर जल्दी से वहां बाघों को निशाना नहीं बना पाते लेकिन बाहरी क्षेत्रों में बाघ इन तस्करों का आसान शिकार बन रहे हैं।
इसी बात को आधार बनाकर अब राज्य के वन्यजीव प्रेमी प्रोजेक्ट टाइगर के विस्तार की मांग कर रहे हैं लेकिन शर्त यह है कि यह विस्तार व्यवहारिक और जनपक्षीय होना चाहिए। उत्तराखंड वन व पर्यावरण सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी का कहना है कि केंद्र सरकार को यह तय करना चाहिए कि उन्हें बाघ बचाने हैं या प्रोजेक्ट टाइगर चलाना है।
उत्तराखंड में लगभग 260 बाघों के पाए जाने की पुष्टि हुई है जिसमें से आधे बाघ ही इस प्रोजेक्ट के तहत कवर हो पा रहे हैं। कॉर्बेट पार्क के अलावा उससे लगे क्षेत्रों तराई केंद्रीय व तराई पूर्वी वन प्रभाग, हल्द्वानी वन प्रभाग, पश्चिमी रामनगर वन प्रभाग के साथ ही कोटद्वार व लैंसडाउन वन प्रभाग में भी उनकी संख्या बढ़ रही है। पर्यावरण सलाहकार परिषद ने इस मामले को लेकर भारत सरकार के साथ ही राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण के सदस्य सचिव डॉ. राजेश गोपाल को भी पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि प्रोजेक्ट टाइगर को और अधिक व्यवहारिक बनाकर इस प्रकार विस्तृत किया जाना चाहिए कि जहां आदमी भी बचे और बाघ भी रहे।
1280 वर्ग किलोमीटर के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र से बाहर बाघों का शिकार लगातार हो रहा है। 16 अक्टूबर को पुलिस ने टनकपुर के निकट एक बाघिन के शिकार मामले में पानीपत के तोताराम बावरिया गिरोह के छह सदस्यों को गिरफ्तार किया था जिन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने इस क्षेत्र में पहले भी बाघों का शिकार किया था।
वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी के उत्तराखंड के अधिकारी राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि जब इस प्रोजेक्ट में 2000 करोड़ रुपए केंद्र सरकार खर्च कर रही है तब इसे थोड़ा और व्यवहारिक बनाने में क्या दिक्कत है। ऐसा करने से अधिक बाघों को बचाया जा सकेगा। कॉर्बेट के बाहर अकेले रामनगर वन प्रभाग में ही 40-50 बाघ विभाग द्वारा बताए गए हैं। बीते 40 सालों से लगातार कॉर्बेट पार्क के मानद वन्यजीव प्रतिपालक कुंवर विजेंद्र सिंह का कहना है कि प्रोजेक्ट टाइगर का विस्तार करने की जरूरत है। इस योजना के तहत लैंसडाउन वन प्रभाग और राजाजी नेशनल पार्क का कुछ क्षेत्र मिलाकर एक बाघ कॉरिडोर बनाया जाना चाहिए।
वन्यजीवन और बाघों की सुरक्षा को लेकर उत्तराखंड सरकार की गंभीरता इस बात से जाहिर हो जाती है कि ऑपरेशन लॉर्ड के तहत वन्यजीवों की सुरक्षा में लगे 700 दैनिक कर्मचारियों को आठ महीनों से वेतन नहीं दिया गया। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक सी. के. दयाल का कहना है कि इस बाघों के संरक्षण के सवाल पर काफी कुछ करने की आवश्यकता है।
एक बड़ी समस्या पार्क के भीतर बसे 400 से अधिक परिवारों की है जिनकी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है और उनके द्वारा किए जा रहे निर्माण वन्यजीवन के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। बीते साल सबसे अधिक बाघ और मानव के टकराव की घटनाएं भी पार्क के भीतर की बसासत वाले सुंदरखाल क्षेत्र में ही हुई है। सरकार इन परिवारों के विस्थापन की बात तो कर रही है लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है।