Cough and mucus: बलगम यानी म्यूकस और कफ यानी चिपचिपा थूक मान सकते हैं। दोनों की ही एक ही प्रकृति है लेकिन साइंटिफिकली दोनों में अंतर है। सर्दी या कहें कि ठंड में कफ या बलगम की शरीर में अधिकता होने के कारण खांसी, सर्दी, जुकाम सहित और भी कई तरह के रोग हो जाते हैं। यह ज्यादा समय तक रहता है तो दमा, अस्थमा और टीबी की बीमारी का रूप ले लेती हैं।
कफ ज्यादा तर नाक से गले तक अधिक प्रभाव डालता है लेकिन बलगम छाती और पेट में जमता रहता है।
कफ प्राकृतिक रूप से साफ और चिपचिपा होता है, जबकि बलगम गाढ़ा, मटमैला और बदबूदार होता है।
कफ का रंग सफेद नहीं पीला और अन्य रंग का है तो यह किसी वायरस या अधिक बैक्टीरिया संक्रमण का संकेत है जबकि कफ का रंग छुपी हुई बीमारी को दर्शाता है।
जब हमारे शरीर के अंदर की चमड़ी या श्लैष्मिक झिल्ली यान म्यूकस मेम्ब्रेन विशेष रूप से, श्वसन तंत्र में सूजन हो जाती है तो वहां से तरह तरह के स्राव होने लगते हैं और वे श्वास के रास्ते में अवरोध उत्पन्न करते हैं इस अवरोध को बाहर निकाल फेंकने लिए हमारा फेफड़ों अपने पास की उपलब्ध हवा को झटके से बाहर निकालता है। इस क्रिया से हवा घनत्व बढ़ जाता है और उस स्राव को खांसी के रूप में बाहर निकाल देता है। इसी बाहर निकले हुए स्राव को बलगम कहते हैं। जबकि कफ हमरे नाक से गले के बीच जमकर पिघलता या जमता रहता है।
बलगम या कफ होने के कारण :-
ज्यादा ठंड लगने पर कफ या बलगम बनने लगता है।
साइनस (साइनसाइटिस) की प्रॉब्लम होने पर भी यह बनता है।
धूल, धुएं या प्रदूषण से वायरस या अधिक बैक्टीरिया इंफेक्शन होने के कारण भी ये बनता है।
फूड एलर्जी या एनवायरनमेंट एलर्जी होने पर भी यह होता है।
पाचन संबंधी समस्याएं लगातार रहने से बलगम बनने लगता है।
फेफड़े संबंधी रोग जैसे- निमोनिया आदि होने पर भी यह बनता है।
क्रोनिक रेस्पिरेटरी की समस्या जैसे सीओपीडी में भी यह होता है।
एलर्जी नाक, गले, फेफड़ों में किसी प्रकार का जलन से भी यह होता है।
अधिक मात्रा में दवाइयों का सेवन खासकर गर्भनिरोधक और ब्लड प्रेशर की दवाइयों से यह बनता है।
जंक फूड, फास्ट फूड, तेज मिर्च वाला भोजन, तेज मसालेदार भोजन आदि से भी यह बनता है।