Kapalabhati benefits in hindi: जब उम्र 35 के पार पहुंचती है, तो शरीर में कई बदलाव आने लगते हैं – मेटाबॉलिज़्म धीमा हो जाता है, पेट की चर्बी जमा होने लगती है, थकान जल्दी महसूस होती है और मानसिक तनाव भी बढ़ जाता है। ऐसे में अगर आप कोई एक सिंपल, नेचुरल और बेहद असरदार तरीका अपनाना चाहते हैं तो कपालभाति प्राणायाम आपके लिए रामबाण हो सकता है। यह योग की एक ऐसी तकनीक है जो न सिर्फ पेट के अंदर जमा टॉक्सिन्स को बाहर निकालती है, बल्कि शरीर और दिमाग दोनों को नई ऊर्जा से भर देती है। आइए जानते हैं 35 साल की उम्र के बाद रोजाना कपालभाति करने से मिलने वाले 5 जबरदस्त फायदे।
1. पेट की चर्बी घटाने में मददगार
35 की उम्र के बाद पेट और कमर पर चर्बी जमना एक आम समस्या बन जाती है। कपालभाति के दौरान तेज़ गति से सांस छोड़ने की प्रक्रिया पेट की मांसपेशियों पर असर डालती है और वहां जमा फैट को बर्न करने में मदद करती है। रोजाना 5-10 मिनट कपालभाति करने से पेट की चर्बी कम होने लगती है और आपकी कमर स्लिम दिखने लगती है।
2. डाइजेशन सुधारता है और गैस की समस्या दूर करता है
इस उम्र में अधिकतर लोगों को अपच, गैस और एसिडिटी जैसी समस्याएं सताने लगती हैं। कपालभाति प्राणायाम पाचन तंत्र को एक्टिव करता है, जिससे खाने के बाद भारीपन या गैस जैसी परेशानी नहीं होती। यह लीवर और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को भी डिटॉक्स करने में मदद करता है।
3. मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाता है और तनाव करता है कम
काम का दबाव, पारिवारिक जिम्मेदारियां और उम्र से जुड़ी चिंताएं – ये सभी मिलकर मानसिक तनाव को बढ़ाते हैं। कपालभाति न सिर्फ फेफड़ों को ताकत देता है बल्कि ब्रेन में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ाकर दिमाग को शांत करता है। इससे मूड बेहतर होता है, चिंता कम होती है और नींद भी अच्छी आती है।
4. श्वसन तंत्र को बनाता है मजबूत
35 की उम्र के बाद फेफड़ों की क्षमता धीरे-धीरे घटने लगती है, जिससे सांस फूलना, एलर्जी या खांसी की समस्या हो सकती है। कपालभाति प्राणायाम नियमित रूप से करने से फेफड़ों की सफाई होती है और उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है। यह अस्थमा और साइनस जैसी समस्याओं में भी राहत देता है।
5. हार्मोनल बैलेंस बनाए रखता है
महिलाओं और पुरुषों दोनों में 35 की उम्र के बाद हार्मोन में बदलाव आने लगते हैं। खासकर महिलाओं में यह उम्र पीसीओडी, थायरॉइड या मेनोपॉज जैसी समस्याओं की शुरुआत का वक्त होता है। कपालभाति इन हार्मोनल बदलावों को बैलेंस करने में सहायक होता है। यह हॉर्मोन से जुड़ी समस्याओं को नेचुरल तरीके से नियंत्रित करने का काम करता है।
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