- डॉ. इसाक 'अश्क'
'अष्टावधानी' मूलतः मराठी भाषा में प्रभाकर पानट द्वारा विरचित उपन्यास है, जो अहिल्याबाई होलकर (1735-95 ई.) के जीवनवृत्त पर आधारित है। इसका हिन्दी अनुवाद अरविंद जवळेकर ने किया है। इस प्रकार के उपन्यासों में अधिक सतर्क प्रतिभा की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि ऐसे उपन्यासों में इतिहास की रक्षा करने के साथ-साथ उसके स्वरूप को कल्पना द्वारा भी स्पष्ट करना होता है। ऐसा उपन्यास इतिहास का अंधानुकरण नहीं हो सकता। इसमें कल्पना भी अनियंत्रित नहीं हो सकती। सबसे पहले यह उपन्यास है, जिसमें इतिहास की मर्यादा की रक्षा करना होती है। इसी प्रकार भाव और रस में जो अंतर होता है, वही इतिहास सत्य और इतिहास रस में होता है। भावों को रसानुभूति की श्रेणी तक पहुँचाने के लिए तथ्यों में किंचित परिवर्तन किया जा सकता है। ऐसे उपन्यासों में इतिहास का रुखा-सूखा ठट्ठर खड़ा करना नहीं होता, बल्कि प्राण-प्रतिष्ठा करना भी लक्ष्य होता है। यह एक चुनौती भरा रचनात्मक कार्य है, जिसे लेखक ने दक्षता के साथ संपन्ना किया है।
उपन्यास में प्रजा का पुत्रवत पालन-पोषण करने वाली अहिल्याबाई, अपने जीवनकाल में ही माउली (माताश्री) और देवी के रूप में लोगों के हृदय में रस-बस चुकी थीं। मराठी में इसके पहले भी दो उपन्यास और लिखे जा चुके हैं, जिनके केंद्र में अहिल्याबार्ई का आदर्श जीवन-चरित्र रहा है। अहिल्याबाई के राज-दरबार में उनके हर एक कार्य का लेखा-जोखा नोंद करने वाले कारकूनों का एक अमला नियुक्त था, जो तत्काल घटनाओं का दस्तावेजीकरण करता रहता था। लेखक ने इस लेखे-जोखे का बखूबी इस्तेमाल किया है। मराठी भाषी अनुवादक का मराठीपन वाक्य-रचना, शब्द विन्यास एवं भाषा सौष्ठव में सर्वत्र झलकता है। इसके उपरांत भी आदि से अंत तक उपन्यास में रोचकता बनी रहती है। उपन्यास अठारहवीं शताब्दी के मराठी वातावरण, परिवेश, घटनाक्रम को जीवंत करने में सफल रहा है। हाँ, कुछेक घटनाएँ, प्रसंग ऐसे भी हैं, जिन्हेंलेखक ने अनावश्यक विस्तार दिया है, वहीं कथा-क्रम में कुछ घटनाओं का व्यतिक्रम अखरने वाला है, जैसे अहिल्याबाई की सासू गोमतीबाई का मृत्यु-प्रसंग, शराबी पति खांडेराव की कथा, पुत्र मालेराव की उद्दंड जवानी इत्यादि। यहाँ तक कि अहिल्याबाई जैसी अत्यधिक सतर्क एवं स्वाभिमानी राज-महिला के मुख से अपने वैधव्य का, पुत्र की अकाल मृत्यु का, स्वयं स्त्री होने की लाचारी का
मराठी भाषी अनुवादक का मराठीपन वाक्य-रचना, शब्द विन्यास एवं भाषा सौष्ठव में सर्वत्र झलकता है। इसके उपरांत भी आदि से अंत तक उपन्यास में रोचकता बनी रहती है। उपन्यास अठारहवीं शताब्दी के मराठी वातावरण, परिवेश, घटनाक्रम को जीवंत करने में सफल रहा है।
बार-बार बखान करना उनके वीरोचित चरित्र से मेल नहीं खाता। लेखक ने उनकी वृद्धावस्था, रुग्णावस्था एवं मरण-प्रसंग का जो खाका खींचा है, वह आँखें नम कर देनेवाला है। राजनीति में अहिल्याबाई जैसे उदात्त चरित्र का होना एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करता है। अनुभूतियों की तीव्रता बढ़ाता यह उपन्यास पढ़ा जाना चाहिए।
* पुस्तक : अष्टावधानी
* लेखक : प्रभाकर पानट
* अनुवाद : अरविंद जवळेकर
* प्रकाशक : श्री सर्वोत्तम प्रकाशन, जी-8, स्वदेश भवन, 2, प्रेस कॉम्प्लेक्स, एबी रोड, इंदौर