‘सिरियलाइज्‍ड फि‍क्‍शन’ का पहला एप है ‘बि‍न्‍ज हिंदी’

(बि‍न्‍ज हिंदी के संपादक अनुराग वत्‍स से वेबदुनिया की विशेष चर्चा)

जिस तरह से समय बदला है, इस दौर में संचालित होने वाले माध्‍यम भी बदले हैं, किताबों का कंटेंट बदला है तो वहीं, पाठक का टेक्‍स्‍ट (शब्‍द) को देखने के तरीके और उसे ग्रहण करने के सलीके में भी बदलाव आया है--- जाहिर है इस दौर में पाठक एक त‍कनीकी मिजाज के साथ तैयार हो रहा है। उसके पास पढ़ने की एक ‘आधुनिक और तकनीकी चेतना’ है, मोबाइल या लेपटॉप-टैबलेट में उसका ‘स्‍क्रीनिंग टाइम’ बढ़ गया है।

बस, नए पाठक की इसी ‘आधुनिक चेतना’ और ‘तकनीकी मिजाज’ का ख्‍याल करते हुए बिन्‍ज हिंदी एप का उदय होता है। बि‍न्‍ज हिंदी ‘क्‍लासिक्‍स’ से लेकर नई और ओरि‍जि‍नल राइटिंग को जगह देने का काम करेगा। इसमें कई श्रेष्‍ठ लेखकों की रचनाओं की एक लंबी फेहरिस्‍त है, जिसे पढ़ने के लिए पाठक अपने वक्‍त के हिसाब से अपनी ‘रीडिंग प्‍लान’ कर सकता है। सोशल मीडि‍या में फि‍लहाल इस नए माध्‍यम और ‘रीडिंग कल्‍चर’ की काफी चर्चा है।

वेबदुनिया ने बि‍न्‍ज हिंदी के संपादक अनुराग वत्‍स से हिंदी साहित्‍य के इस रचनात्‍मक माध्‍यम के बारे में विस्‍तार से चर्चा की। आइए जानते हैं, क्‍या है बि‍न्‍ज और हिंदी साहित्‍य में क्‍या होगी इसकी भूमिका।

किस मकसद से तैयार हुआ बि‍न्‍ज हिंदी?
अनुराग बताते हैं, इस नए दौर में इंटरनेट और स्‍मार्ट फोन का जो व्‍यापक प्रसार हुआ है, और फोन स्‍क्रीन हमारे ध्‍यान की नई जगह बनी है, उसे देखते हुए हिंदी साहित्‍य में ब‍िन्‍ज बेहद महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वे कहते हैं कि तकनीक की आमद और प्रसार के माध्‍यम से एक नया पाठक वर्ग तैयार हुआ है, जिसका ज्‍यादातर वक्‍त मोबाइल की स्‍क्रीन पर गुजरता है, जाहिर है वो तरह-तरह का साहित्‍य, मसलन कविताएं, कहानियां और नॉवेल स्‍क्रीन पर ही पढ़ता है, उसकी इसी रीडिंग हैबि‍ट की मांग पर हमने बि‍न्‍ज हिंदी एप तैयार किया है।

क्‍यों खास है य‍ह एप?
अनुराग ने बताया कि इस मोबाइल एप पर टैक-सेवी पाठक अपनी रीडिंग प्‍लान कर सकता है। हमने इस पर सिलसिलेवार ढंग से फि‍क्‍शन उपलब्‍ध कराया है। एप बताएगा कि किसी कंटेंट को पढ़ने में उसे कितना वक्‍त लगेगा, वो यह भी याद दिलाएगा कि पाठक ने कोई कंटेंट कहां तक पढ़ लिया है और कहां से उसे पढ़ना है। आप इसमें अपनी सूची तैयार कर सकते हैं। इसमें नए और पुराने श्रेष्‍ठ कथाकारों की श्रेष्‍ठ कथाएं और अन्‍य रचनाएं शामिल की गई हैं।

कि‍स तरह‍ के लेखक और कंटेंट हैं बिन्‍ज में?
अनुराग ने बताया कि एप्लि‍केशन पर आप छोटे-छोटे हिस्सों में सिलसिलेवार ढंग से भारत के नए और मशहूर लेखकों की कहानियां और आइडियाज़ पढ़ सकते हैं। इसमें नए दौर के कई लेखकों की कहानियां और नॉवेल उपलब्‍ध है। इसमें खासतौर से फि‍क्‍शन या कहें नॉवेल पर फोकस किया गया है। इसमें नए दौर के लेखक कृष्‍ण कल्‍प‍ित, गीत चतुर्वेदी, कुणाल सिंह, प्रमोद सिंह, अनिल यादव, प्रत्‍यक्षा, रश्‍मि भारद्वाज और उपासना झा से लेकर कुंवर नारायण, प्रेमचंद तक क्‍लासिक माने जाने वाले लेखकों के नाम शामिल हैं--- यहां तक कि कई लेखकों ने तो पहली बार और सिर्फ बिन्‍ज की तासीर को ध्‍यान में रखकर नॉवेल लिखना शुरू किया है।

पढ़ने वालों के लिए है लिखने का मौका...
लेखक के साथ ही एप पर पाठकों का भी ध्‍यान रखा गया है। वे पाठक जो बिन्‍ज को पढ़ते हैं, उनके लिए इस एप पर लिखने की काफी गुंजाइश है और उनके लिए भी इसमें फीचर्स उपलब्‍ध होंगे। यह‍ रीडिंग का डि‍जिटल प्‍लेटफॉर्म है, जिसमें कथा है, सब-स्‍टोरीज है, नॉवेल हैं, सैकड़ों से ज्‍यादा किताबें यहां मौजूद हैं, जो पाठकों से सिलसिलेवार साझा की जाएगीं, इसका फॉर्मेट एंगेजिंग है और डि‍जाइन बेहद आकर्षक है, यहां कंटेंट सिरियलाइज्‍ड यानि कई एपिसोड में विभाजित कर के पेश किया गया है, फि‍क्‍शन को पेश करने का यह नया और अनुठा अंदाज बिन्‍ज हिंदी को तमाम रीडिंग प्‍लेटफॉर्म से जुदा करता है, इसीलिए बि‍न्‍ज हिंदी सिरियलाइज्‍ड फि‍क्‍शन का पहला एप भी है।

निजी और आत्‍मीय प्‍लेटफॉर्म है
यहां कंटेंट एक साथ या अपनी सुविधानुसार छोटे-छोटे हिस्‍सों में पढ़ सकते हैं। नए पाठकों की दिलचस्‍पी,पढ़ने की आदत और सहूलियत का ध्‍यान रखा गया है। अनुराग कहते हैं कि मुझे लगता है कि यह टेक्‍स्‍ट में आस्‍था रखने वालों के लिए एक निजी और आत्‍मीय प्‍लेटफॉर्म भी है।

जहां तक प्र‍िंट कल्‍चर पर खतरे या उससे अलग होने का सवाल है तो अनुराग इसे खारिज करते हैं। वे कहते हैं कि आखि‍रकार इससे लोगों की पढ़ने की तबि‍यत को ही बढ़ावा मिलेगा। क्‍योंकि जब कोई लेखक बि‍न्‍ज पर लोकप्र‍िय होगा तो जाहिर है, उसकी प्र‍िंटेड किताबें भी लोकप्र‍िय होगीं और लोगों के सामने आएंगी। यह एक तरह से किसी भी फॉर्मेट के खि‍लाफ नहीं, बल्‍क‍ि उसके साथ होने की कवायद है।

कहां से आया एप का आइडि‍या?
बिन्‍ज हिंदी दरअसल, नोशन प्रेस की तरफ से पेश किया गया एप है। यह सबसे पहले लॉन्‍च होकर तमिल में काफी लोकप्र‍िय और कामयाब रहा है, अब यह हिंदी में आया है और निकट भविष्‍य में अंग्रेजी के साथ ही मराठी और दूसरी भारतीय भाषाओं में इसे लाया जाएगा। इस एप के पीछे नोशन प्रेस के को-फाउंडर और सीईओ नवीन वल्‍साकुमार और भार्गव एडिपल्‍ली की कल्‍पनाशील और रचनात्‍मक टीम का अथक परिश्रम और सहयोग है।

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