कविताओं में नारी विमर्श और अभिव्यक्ति की गुणवत्ता निरंतर मुखरित हो रही है। मौन ही भावना की भाषा बनता है, तभी ऐसे संग्रह सामने आते हैं। ये विचार साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने व्यक्त किए। आप कवयित्री अंजना मिश्र के काव्य संग्रह, मौन मुखर था के विमोचन के अवसर पर विचार व्यक्त कर रहे थे।
मुख्य अतिथि आयुक्त हरिनारायण चारी मिश्रा ने रचनाधर्मिता में मौन के महत्व को रेखांकित किया। आपने कहा कि इस अभिव्यक्ति में मौजूद भावनात्मक उतार चढ़ाव हमें कवयित्री की आंतरिक सृजनशीलता का परिचय देते हैं।
कविताओं पर बोलते हुए पुणे से पधारी जया सरकार ने कहा कि ये कविताएं कुछ ऐसी हैं, जैसे कोई सुघड़ स्त्री सहजता से अपने पाठकों को अपने साथ अपनी कविताओं तक ले जाती है। आपने कवयित्री की गद्यात्मक पद्य की विशेषता पर भी प्रकाश डाला।
विषय की विविधता और शिल्प का सौंदर्य कविता की विशेषता है और यह अंजना मिश्र की कविताएं सहज रुप से व्यक्त करती हैं। वामा साहित्य मंच से पद्मा राजेन्द्र ने काव्य संग्रह मौन मुखर था पर अपने विचार व्यक्त किए। अपनी बात कहते हुए कवयित्री अंजना मिश्र ने अपने प्रेरणा स्रोत और कविता की बुनावट संबंधित बारीक मनोभावों को व्यक्त किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सरस्वती वंदना प्रीति दुबे ने प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत ज्योति जैन, इंदु पाराशर, निष्ठा और कनिष्क मिश्र ने किया। स्वागत उद्बोधन दिया इंदु पाराशर ने। कार्यक्रम का सफल संचालन किया चक्रपाणि मिश्र और अंतरा करवडे ने। वसुधा गाडगिल ने आभार व्यक्त किया। Edited: By NavinRangiyal