समय की धारा बहे जाती थी उसकी ,
मुस्कुराहटों को देख कर न ऐसी खबर थी
तकदीर से धोखा खाने पर, दर्द के रंग बदलते देखे हमने
बहुत इस जमाने में, पर अब दर्द ही सहारा है
तकदीर से धोखा खाने पर, फिर भी
यादों में बसी है वो मेरी नन्ही सी कलि
न माने क्या करूं, न समझे है कितना भी समझाने से
ऐसे बड़े धोखे तकदीर के खाने से..