हिन्दी कविता : निशा

निशा कि दर्शाई हुई नई दिशा कि ओर
ख्वाबों के खातिर आंखे मींंचकर चलने लगा
ख्वाहिशों के घने जंगलों से गुजरता हुआ
जोश के जश्न का शोर
या कहीं तसल्ली का तराना

आश्ना का आलाप
टपकती हुई अत्र की बूंदे
मुहब्बत से भरी झील
एेेतबार का झरना
जिगर की जुुबानी
गवाह में पशु-प्राणी

आसरा का आसमां 
सुकून के सितारे 
रोमांचित रहस्य
परछाई के सहारे 
निशा कि दर्शाई हुई नई दिशा कि ओर
आगे-ही-आगे बढ़ता गया 
आखिर मैं अंधेरा 
निशा के आगोश में 
खयालों में खो गया
भोर समय
हल्की सी रोशनी की शहनाई ने
भगा दिया ...

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