पत्ता क्रोधित होकर बोला- बदजात, माटी मिली, बेसुरी, नीच कहीं की। तू ऊंची हवाओं में नहीं रहती, तू संगीत की ध्वनि को क्या जाने। क्या जाने तू ऊंचाइयों को।
फिर पतझड़ आया और शिशिर की नींद से उसकी पलकें भरी हुई थी, लेकिन ऊपर से हवा के कारण दूसरे पत्तों की बौछार हो रही थी। वह घास की पात (जो पहले कभी पत्ता था) बुदबुदाया- उफ, ये पतझड़ के पत्ते कितना शोर करते हैं। मेरे शिशिर-स्वप्नों को बिखेर देते हैं।
इस प्रतीकात्मक कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ऊंचाइयां छूने वाला एक दिन नीचे जरूर गिरता है। जब व्यक्ति ऊपर जाता है तो उसके साथी ही उसका साथ देते हैं लेकिन उपर जाकर वह अपने साथियों को भूलकर उन्हें क्षुद्र या हिन समझता है। फिर जब वह नीचे गिरता है तो उसका सामना उन्हीं साथियों से होता है जिन्होंने कभी उसकी ऊपर जाने में मदद की थी। दूसरा यह कि आज जो तुम हो कल मैं बन जाऊंगा और कल मैं जो था आज तुम बन जाओगे। इसलिए अहंकार करने वाला यह चक्र कभी समझ नहीं पाएगा।