कही-अनकही 1 : स्लिप ऑफ़ टंग

'हमें लगता है समय बदल गया, लोग बदल गए, समाज परिपक्व हो चुका। हालाँकि आज भी कई महिलाएं हैं जो किसी न किसी प्रकार की यंत्रणा सह रही हैं, और चुप हैं। किसी न किसी प्रकार से उनपर कोई न कोई अत्याचार हो रहा है चाहे मानसिक हो, शारीरिक हो या आर्थिक, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, क्योंकि शायद वह इतना 'आम' है कि उसके दर्द की कोई 'ख़ास' बात ही नहीं। प्रस्तुत है ऐसी ही 'कही-अनकही' सत्य घटनाओं की एक श्रृंखला। मेरा एक छोटा सा प्रयास, उन्हीं महिलाओं की आवाज़ बनने का, जो कभी स्वयं अपनी आवाज़ न उठा पाईं।'
 
स्लिप ऑफ़ टंग
परिदृश्य: जनवरी की ठंडी रात और समय करीब 9.45 । एना दस घंटे की नौकरी के बाद घर आ कर, झाड़ू-पोछा लगा  कर,खाना बना कर, मायके और ससुराल वालों से फ़ोन पर बात कर, उन्हें बता कर की सब ठीक है, ठण्ड में दुबक कर स्वेटर-कम्बल लपेट कर सोफे पर बैठी टीवी देख रही है।  
 
अपने पति आदि का इंतज़ार  कर रही है। वो हमेशा की तरह लेट ही आएगा। उसने हमेशा की तरह दिनभर से कोई फ़ोन, कोई मैसेज नहीं किया है क्योंकि वह अपनी 'हाई-पैकेज वाली नौकरी में इतना व्यस्त रहता है कि उसे बाथरूम जाने की भी फुर्सत नहीं।' शादी तो हाल ही में हुई है लेकिन रहते दोनों फ्लैट-मेट्स  के जैसे ही हैं बस। दरवाजा खुलता है और आदि आता है। बैग रखता है और जूते उतारता है। आश्चर्य की बात है की आज बेहद खुश दिख रहा है। 
 
"आ गए?"
 
"हाँ... कितनी क्यूट लग रही हो तुम ऐसे कम्बल में बैठे हुए.. इतनी ठण्ड है? लाओ तुम्हारे फोटो क्लिक करते हैं"
 
"अरे आज इतना अच्छा मूड? अरे-अरे गोद  में बैठ कर क्लिक करोगे?"
 
"हाँ लाओ तुम्हारा फ़ोन दो और पोज़ करो"
 
"अच्छा.. कितनी ठण्ड है न?"
 
"हाँ तो देवियों और सज्जनों हम मौजूद हैं शिमला की वादियों में और यहाँ तेज़ बर्फ़बारी हो रही है। इतनी ठण्ड है देखिये.. कि नेहा शर्मा कम्बल में दुबकी  बैठी हैं... तो नेहा बताइये आपको कैसा महसूस हो रहा है नेहा.. "
"........ "
"क्या हुआ? पोज़ करो न... स्माइल करो..."
 
"मैं नेहा नहीं, एना  हूँ"
 
"मतलब?"
 
"मेरी गोद  में बैठ के, मेरे फ़ोन से मेरा फोटो खींच रहे हो.. दिख नहीं रहा है कि  मैं नेहा नहीं एना हूँ?"
 
"नेहा बोला क्या? अच्छा चलो एना... फिर पोज़ करो.... "
 
"उठो यहाँ से और जाओ ।"
 
"अरे क्या हुआ? गलती से नाम निकल गया उसका...  इतनी कौनसी बड़ी बात हो गई । दिनभर तो तुम्हारे साथ रहता हूँ, शाम को किसी और का नाम निकल गया मुँह से तो कौनसी आफत आ गई ? सारा मूड बेकार कर दिया तुमने..."
 
"अच्छा? हमारे रोमांटिक पलों में अगर मेरे मुँह से मेरे किसी दोस्त का नाम निकल जाए तो? चलेगा? चलो ट्राय  करते हैं..."
 
"हाहा । तुम और रोमांटिक? तुमने कभी इंट्रेस्ट दिखाया भी है? कभी रिझाया है अपने पति को जो दिनभर काम कर के घर थका हुआ आता है ? तुमने कभी मौका दिया है कि मैं मना करूँ और तुम फिर भी ज़िद करो की मैं तुम्हें प्यार करूँ?"
 
"वाह, यानि दोषी तो मैं ही हूँ"
 
"और वैसे भी तुम अब अगर किसी का नाम लोगी, तो सिर्फ मुझसे बदला लेने । बिकॉज़ यू आर अ बिच । तुम बदला लेने के लिए किसी  भी हद तक जा सकती हो। मेरा तो फिर भी ‘स्लिप ऑफ़ टंग’था ।"
 
फिसली हुई जुबां का बहाना दे कर टुच्ची मानसिकता वाला आदि अपने कमरे में जा कर सो गया, और एना ने अपने शब्दों में बयां न कर सकने वाले दर्द को ‘अनकहा’ ही छोड़ दिया ... आप क्या करते?

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