और आखिरकार उसने एक दिन कह ही दिया था कि पापा रोज-रोज मत टोका करो, अब मैं कोई बच्चा नहीं हूं। उस दिन पापा उसे एकटक उसे देखते रह गए थे। हां, उस दिन से उन्होंने टोकना बिलकुल ही बंद कर दिया था। बंद क्या कर दिया, उस तरफ देखते ही नहीं थे, जहां से वह बाहर जा रहा होता। कार से जा रहा हो, बाइक से या पैदल- उन्हें कोई मतलब नहीं होता। क्या पहने हैं और क्या नहीं? इससे भी सरोकार नहीं रहा।
उसे लगा कि पानी की एक लहर से पापा की धीमी आवाज आ रही है- 'कहां जा रहे हो?'
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