1. Veer Teja ji : लोकदेवता तेजाजी महाराज की जयंती तिथि के अनुसार माघ शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है।
2. वीर तेजाजी महाराज सबके परम आराध्य, गौ रक्षक, सत्यवादी और प्रात: स्मरणीय लोकदेवता के रूप में जाने जाते हैं।
3. तेजाजी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को नागौर जिले के खरनाल में एक जाट घराने में हुआ था। कहीं-कहीं उनका जन्म का उल्लेख माघ शुक्ल चौदस, संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को भी मिलता है। वंशावली के अनुसार तेजाजी का जन्म राजपूत परिवार में होने के संबंध में भी जानकारी दी जाती हैं। उनके पिता का नाम कुंवर ताहड़जी गांव के मुखिया थे और माता का नाम राम कंवर था। बचपन से ही वीर तेजाजी के साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। वे बालपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष थे।
4. दंत कथाओं के अनुसार तेजाजी महाराज के चार से पांच भाई बताए गए हैं, जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी।
5. मान्यतानुसार वीर तेजाजी शिव जी की उपासना और नाग देवता की कृपा से ही जन्मे थे।
6. तेजाजी का मुख्य मंदिर खरनाल में हैं। उनकी जयंती और निर्वाण दिवस पर शोभायात्रा तथा भंडारे के आयोजन किए जाते हैं।
7. वीर तेजाजी जो कि राजस्थान के एक लोक देवता हैं, उन्हें भगवान शिव के प्रमुख ग्यारह (11) अवतारों में से एक माना जाता है। साथ ही उन्हें राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा आदि राज्यों में देवता के रूप में पूजा जाता है। जाट घराने में जन्मे तेजाजी को जाति व्यवस्था का विरोधी भी माना जाता है।
8. वीर तेजाजी की कथा के अनुसार युवा होने पर राजकुमार तेजा की शादी सुंदर गौरी से हुई। एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उनकी ससुराल जाते हैं। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं।
रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक नाग/ सर्प घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डसना चाहता है। वीर तेजा उसे रास्ते से हटने के लिए कहते हैं, परंतु भाषक नाग रास्ता नहीं छोड़ता। तब तेजा उसे वचन देते हैं- 'हे भाषक नाग, मैं मेणा डाकू से अपनी बहन की गायें छुड़ा लाने के बाद वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डस लेना, यह तेजा का वचन है।' तेजा के वचन पर विश्वास कर भाषक नाग रास्ता छोड़ देता है।
जंगल में डाकू मेणा एवं उसके साथियों के साथ वीर तेजा भयंकर युद्ध कर उन सभी को मार देते हैं। उनका पूरा शरीर घायल हो जाता है। ऐसी अवस्था में अपने साथी के हाथ गायें बहन पेमल के घर भेजकर वचन में बंधे तेजा भाषक नाग की बांबी की ओर जाते हैं। घोड़े पर सवार पूरा शरीर घायल अवस्था में होने पर भी तेजा को आया देखकर भाषक नाग आश्चर्यचकित रह जाता है।
वह तेजा से कहता है- 'तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है, मैं दंश कहां मारूं?' तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ बताकर कहते हैं- 'हे भाषक नाग, मेरी जीभ सुरक्षित है, उस पर डस लो।' वीर तेजा की वचनबद्धता देखकर भाषक नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है- 'आज के दिन यानी भाद्रपद शुक्ल दशमी से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीड़ित होगा, उसे तुम्हारे नाम की तांती बांधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।' उसके बाद भाषक नाग घोड़े के पैरों पर से ऊपर चढ़कर तेजा की जीभ पर दंश मारता है। उस दिन से ही तेजादशमी पर्व मनाने की परंपरा जारी है।
9. वीर तेजाजी महाराज को लोग सर्प दंश को दूर करने वाले देवता के तौर पर पूजते हैं। मान्यतानुसार सर्प दंश या सांप के काटने के बाद जो लोग वीर तेजाजी को याद करते या उनके मंदिर जाते हैं, वह ठीक हो जाते हैं।
10. प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेज दशमी पर्व मनाया जाता है, इस दिन उनका निर्वाण हो गया था। अत: भारत के अनेक प्रांतों में तेजादशमी का पर्व आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास के प्रतीकस्वरूप मनाया जाता है।
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