तुलसी जयंती : कौन थे गोस्वामी तुलसीदास, कैसे मिली रामचरित मानस रचने की प्रेरणा

गुरुवार, 4 अगस्त 2022 (11:25 IST)
Tulsidas Jayanti 2022 : प्रतिवर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को तुलसीदासजी का जन्मदिवस मनाया जाता है।। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 04 अगस्त 2022, गुरुवार को तुलसीदास जयंती मनाई जाएगी। आओ जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास कौन थे और कैसे मिली उन्हें रामचरित मानस रचने की प्रेरणा।
 
कौन थे तुलसीदास गोस्वामी : तुलसीदासजी का जन्म संवत 1589 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान बांदा जनपद के राजापुर नामक गांव में हुआ था। हालांकि अधिकतर मत 1554 में जन्म होने का संकेत करते हैं। उनका जन्म स्थान कुछ लोग सोरो बताते हैं। उनका जन्म 1532 ईस्वी में हुआ और सन् 1623 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई।
 
जन्म लेते ही तुलसीदासजी के मुंह से राम का नाम निकला इसीलिए उनका नाम 'राम बोला' रखा गया। राजपुर से प्राप्त तथ्‍यों के अनुसार वे सरयूपारी ब्राह्मण थे। वे गोसाईं समाज से संबंध रखते थे। कुछ प्रमाणों के अनुसार उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे था और भविष्य पुराण के अनुसार उनके पिता का नाम श्रीधर था। उनकी माता का नाम हुलसी बताया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार उनके गुरु राघवानंद, विलसन के अनुसार जगन्नाथ सोरों से प्राप्त प्रमाणों के अनुसार नरसिंह चौधरी और ग्रियर्सन एवं अंतर्साक्ष्य के अनुसार नरहरि उनके गुरु थे।
 
कहते हैं कि तुलसीदासजी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। उनके जन्म लेने के बाद उनकी माता का देहांत हो गया था तो उन्हें मनहूस समझकर उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया था। पिता के छोड़े जाने के बाद तुलसीदासजी को एक गरीब महिला ने दूसरे गांव ले जाकर पाला। बाद में उस महिला का भी निधन हो गया तो पुरे गांव के लोग उन्हें मनहूस समझने लगे। बहुत छोटे थे तब तुलसीदाजी अकेले रह गए थे और वे भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करते थे परंतु गांव के लोग उन्हें भिक्षा देने से कतराते थे। 
 
कहते हैं कि एक बार माता पार्वती को उन पर दया आ गई और वे एक रात्रि को एक महिला का भेष धारण करके उनके घर में आई और भूखे तुलसीदासजी को चावल खिलाकर उन्हें अपना पुत्र समझ कर पाला। भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से तुलसीदासजी का आगे का जीवन चला और उन्हें पालक के रूप में गुरु नरहरिदास मिले। तुलसीदासजी को उनके गुरु ने पालपोस कर बड़ा ही नहीं किया बल्कि उन्हें शिक्षा और दीक्षा देकर विद्वान भी बनाया। काशी में इन्होंने परम विद्वान महात्मा शेष सनातनजी से वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि का ज्ञान अर्जित किया।
कैसे मिली रामचरित मानस रचने की प्रेरणा : तुलसी का ‘रामचरित मानस’ हिन्दी साहित्य का सर्वोत्तम महाकाव्य है जिसकी रचना चैत्र शुक्ल नवमी 1603 वि. में हुई थी तथा जिसको तैयार करने में 2 वर्ष 7 महीने तथा 26 दिन लगे।
 
कहते हैं कि रामचरित मानस के निर्माण का संकल्प सबसे पहले भगवान शंकर ने अपने मन में रखा था। तुलसीदासजी स्वयं ये लिखते हैं कि- 'जो महेश रचि मानस राखा। पाइ सुसमय शिवा सन भाखा।।' इसीलिए इस ग्रंथ का नाम रामचरितमानस है। इस ग्रंथ को तुलसी ने भगवान शिव की प्रेरणा से, हनुमानजी की सहायता से लिखा था। इसके कई उदाहरण है।

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