इंदौर—होलकरों की विरासत का शहर, अपनी खास तासीर और गंध से पहचाना जाने वाला शहर। इस शहर की आत्मा को जानना हो तो राजवाड़ा और लालबाग पैलेस जैसे स्मारकों की तरफ नजर दौड़ाइए। लेकिन आज, जब आप लालबाग की ओर रुख करेंगे, तो शायद वो वैभव और गरिमा ढूंढनी पड़े।
इंदौर शहर... होल्करों की विरासत का शहर। अपनी तासीर और अपने मूल स्वभाव और गंध के लिए जाना जाने वाला शहर। शहर की अभिव्यक्ति का केंद्र राजवाड़ा हो या तमाम महलों का सिरमौर लालबाग। कोई भी इन्हें देखते ही समझ जाएगा कि वो इंदौर में है— लेकिन इन दिनों शायद आपको लालबाग पैलेस या इसके ईर्द-गिर्द पसरा मैदान ढूंढना पड़ जाए। या अंदर पहुंचकर यह यहां-वहां देखना पड़े कि भिया कहां है अपने मूल स्वभाव वाला वो लालबाग जिसे देखने के लिए देशभर के राज्यों से हजारों लोग यहां आते हैं। वे आते हैं कि यहां मां अहिल्या के होल्कर राजघराने की बची हुई निशानियां, उसके प्रतीक और अवशेष देख सकें और लालबाग के साथ ही इंदौर की असल तासीर को महसूस कर सके, इसे अपनी आंखों से देख सकें।
लेकिन क्या हो अगर लालबाग में एंट्री करते ही उन्हें यहां का प्रवेश द्वार तमाम तरह के आयोजनों के होर्डिंग्स, राजनीतिक सभाओं के बैनर-पोस्टर और अपनी राजनीति चमकाने वाले दादा, भियाओ, बॉस और डॉन के फोटो से लदा मिले। क्या हो अगर अंदर घूसते ही आपका पैर कीचड़ से सन जाए। या गड्ढे में पड़ जाए। क्या हो अगर कोई अकेली लड़की यहां इवनिंग वॉक करते वक्त डरी सहमी सी नजर आए। क्या हो अगर आप यहां देखे कि रात के अंधेरे में अराजक तत्व चिलम फूंकते नजर आए और पूरा लालबाग परिसर गंदगी और बदहाली से पटा नजर आए।
मध्यप्रदेश या इंदौर से बाहर से आने वाला वो मेहमान इंदौर की या होल्कर की वो कौनसी विरासत अपनी आंखों में सहेजकर ले जाएगा अगर वो यह सब देखेगा। अपने साथ लेकर आए बच्चों को लालबाग, होल्कर राजवंश और मां अहिल्या की कौनसी कहानी और गाथा सुनाएगा।
दरअसल, इन दिनों इंदौर के लालबाग मैदान का कमोबेश यही हाल है। जो अपनी प्राचीन रवायत को भुलाकर मेलों ठेलों की किसी बदहाल लावारिस जगह में तब्दील हो गया है। न कोई देखने वाला है, न रखवाला नजर आता है। इस विरासत मिट्टी पर कभी मेले लगते हैं तो कभी सर्कस। कभी गरबों का आयोजन होता है। विधायक हो या मंत्री। कोई भी आकर लालबाग की छाती पर मूंग दल जाता है। तंबू और टेंट के खंबे गाड़-गाड़ कर इसकी जमीन को छलनी कर दिया गया है। इन मेलों ठेलों को कौन अनुमति देता है, कौन आयोजन करवाता है और क्यों इस बची- खुची धरोहर को दाग- दाग करता है इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।
हाल ही में सिंहस्थ के मद में लालबाग मैदान के आसपास प्रशासन ने दीवार का निर्माण कर के इसे सुरक्षित करने का काम जरूर शुरू किया है, लेकिन दीवार बनाने से बाहर की अराजकता को तो रोका जा सकता है, लेकिन दीवार के अंदर बाग के मैदान में मेलों ठेलों और सर्कस और शोर शराबे से जो अराजकता खुद जनप्रतिनिधि और सरकारी नुमाइंदे मचाते हैं उसका क्या।
फिर भी वेबदुनिया ने इस विरासत को अपने शहर की अमूल्य धरोहर मानकर इसकी चिंता की और इसके ईर्द-गिर्द के जिम्मेदारों से चर्चा की।
क्या कहा सांसद लालवानी ने :सांसद शंकर लालवानी ने इस बारे में बताया कि लाग बाग में आयोजन के लिए पुरातत्व विभाग अनुमति देता है। आपने ध्यान दिलाया है तो मैं विभाग के अधिकारियों से बात करता हूं कि जिन लोगों को वे स्थान देते हैं, वे धरोहर का ख्याल क्यों नहीं रखते। मैं गंभीरता से इस विषय पर उनसे बात करूंगा।
पुरातत्व विभाग इंदौर के डिप्टी डायरेक्टर प्रकाश परांजपे ने बताया कि सभी तरह के आयोजनों की अनुमति पुरातत्व विभाग आयुक्त की तरफ से दी जाती है। उनकी तरफ से जो भी आदेश आता है, हम उसका पालन करते हैं।
आयोजकों को गाइडलाइन दी जाती है : लालबाग के क्यूरेटर आशुतोष महाशब्दे ने बताया कि आयोजन के दौरान हम पूरा ख्याल रखते हैं कि धरोहर को या लालबाग की जमीन को किसी तरह का नुकसान न हो, इसके लिए बकायदा आयोजकों को गाइडलाइन दी जाती है।
क्यों महलों का सिरमौर है लालबाग : इंदौर के समस्त महलों का सिरमौर है- लालबाग पैलेस। इस महल के साथ बाग का नाम इसलिए जुड़ा क्योंकि महल व बाग एक-दूसरे के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं। लालबाग पैलेस के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कार्य 1886 से प्रारंभ हुआ था। 6 वर्ष के अंतराल में ही कुल 36 लाख रु. महल के निर्माण पर राज्य ने खर्च किए थे।
1903 से 1911 ई. तक महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) अल्प वयस्क थे। अत: होलकर प्रशासन कौंसिल ऑफ रीजेंसी द्वारा संचालित किया जा रहा था। इस अवधि में ही इस महल को पाश्चात्य शैली में कीमती संगमरमर से सुसज्जित किया गया था।
यह कार्य लंदन की प्रसिद्ध फर्म मेसर्स वारिंग एंड गिलोज ने 36,337 पौंड की लागत से संपन्न किया था। इस सुंदर महल की देखभाल के लिए मुंतजिम हुजूर फर्राशखाना नामक पद कायम कर 300 रु. प्रतिमाह के वेतन पर एक योग्य अधिकारी की नियुक्ति की गई।
1912 में इस महल के भीतर यशवंतराव होलकर (द्वितीय) के आवास कक्ष को भी व्यवस्थित किया गया तथा लालबाग से गौतमबाग के मध्य एक पुल का निर्माण करवाया गया। 1914 में पुन: कुछ नए काम हाथ में लिए गए जिनमें महल का विस्तार, गैरेज एवं अस्तबल तथा अस्थायी किचन मुख्य थे। उसके बाद 1921 ई. तक महल के विस्तार का अंतिम चरण पूरा किया गया और नए सिरे से साज-सज्जा का कार्य मेसर्स मार्टिन एंड कं., केल्टनहेम को सौंपा गया। सज्जा का यह कार्य मिस्टर बेरहार्ड ट्रिग्स ने पूरा करवाया था। 1928 में भवन-विस्तार व कुछ सुधार कार्य किए गए थे।
क्या बच पाएगी इंदौर की यह धरोहर : लालबाग कोई आम पार्क या आयोजन स्थल नहीं, बल्कि होलकर वंश की शाही विरासत है। आज यदि इसे संभाला नहीं गया, तो आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में इसका नाम पढ़ेंगी, अनुभव नहीं कर सकेंगी।