एक राष्ट्रीय राजनेता के बिना अन्न के ऐसे बीते 18 साल...

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

मंगलवार, 3 मार्च 2020 (19:32 IST)
इंदौर। पेट की आग ऐसी चीज होती है, जो किसी भी इंसान को हिलाकर देती है। बहुत कम लोग जानते थे कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बीते 18 सालों से अन्न का एक दाना तक नहीं ले रहे थे। उनकी यह तपस्या हनुमानजी के लिए थी, जो अब पूरी हो चुकी है। 28 फरवरी को उन्होंने 'पितरेश्वर हनुमान धाम' में हनुमानजी की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उन्होंने अपने गुरु शरणानंद के हाथों अन्न ग्रहण किया।
 
2002 में कैलाश ने खाई थी कसम : 2002 में इंदौर के महापौर बनने के बाद उन्होंने पितृ पर्वत (अब पितेश्वर हनुमान धाम) पर अपनों की याद में पौधे लगवाए थे। इसके बाद जब वे मंत्री बने तो उन्होंने पहली कसम यही खाई कि जब तक पितृ पर्वत पर हनुमानजी नहीं विराजेंगे तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे।
 
पत्नी के हाथों से बनी खीर खाई : कैलाश विजयवर्गीय की धर्मपत्नी श्रीमती आशा विजयवर्गीय भी काफी धर्मालु प्रवृत्ति की हैं और धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। आशाजी ने बताया कि 2 दिन पहले कैलाशजी ने मेरे हाथों से बनी खीर खाई थी। हालांकि बहू सोनम (आकाश की पत्नी) के हाथों से बनी साबूदाने की खिचड़ी वे खा चुके थे, लेकिन अभी छोटी बहू दिव्या (कल्पेश की पत्नी) के हाथ का बना भोजन खाना बाकी है।
व्यस्त दिनचर्या : आशाजी ने बताया कि कैलाशजी की दिनचर्या बहुत व्यस्त रहती है। वे रात में 2-3 बजे घर पहुंचते हैं और सुबह साढ़े छ: बजे उठ जाते हैं। स्नान, पूजा-पाठ के बाद ग्रीन टी पीते हैं। कैलाशजी नाश्ते में काजू, बादाम, अखरोट लेते हैं। दिन में ककड़ी, गाजर, टमाटर और सेब होता है। रात में सलाद और फल के साथ साबूदाने की खिचड़ी या मोरधन होता है। इतने सालों में उन्होंने मिठाइयां और अन्न से बने भोजन की तरफ देखा भी नहीं। अपने संकल्प पर कैलाशजी का कहना है कि मेरी आस्था और प्रतिज्ञा के आगे स्वाद और जुबान कुछ भी नहीं।
हनुमानजी पर गहरी आस्था : कैलाश विजयवर्गीय की हनुमानजी पर गहरी आस्था है। पितरेश्वर हनुमान धाम में 14 फरवरी से बहुत बड़ा आयोजन चल रहा है, जिसकी 'पूर्णाहुति' 3 मार्च को अतिरुद्र महायज्ञ में 24 लाख आहुतियां पूरी होने के साथ हुई। भगवान को भोग लगाया गया और फिर शुरू हुआ इंदौर शहर के 10 लाख लोगों के लिए 'नगर भोज'। इसमें परोसगारी में खुद विजयवर्गीय शामिल हुए।

उनकी सादगी का आलम देखते ही बनता है। उन्होंने कहा कि मैं तो नंदानगर की गलियों में अंटी व सितोलिया खेलने वाला बच्चा था। आज जो कुछ हूं, हनुमानजी की बदौलत हूं। मैंने कुछ नहीं किया। पितरेश्वर हनुमान धाम भी इन्हीं की इच्छा से बना है।

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