श्री सत्यसांई विद्या विहार से आए दल को असल अनुभव दिलाते हुए श्रीमती पलटा ने उन्हें रूफवॉर हार्वेस्टिंग (छत पर बारिश का पानी सहेजना) और पानी को फिर से उपयोगी बनाने की प्रक्रिया दिखाई। पानी की एक बूंद भी बर्बाद न करना, सफाई के लिए केमिकल युक्त चीजों का इस्तेमाल न करना, पौधों को बिना प्लास्टिक पॉलीथिन के इस्तेमाल के उगाना, नारियल का ऊपरी हिस्सा इकट्ठा करना और मिटी को सहेजना जैसे अतिमहत्वपूर्ण कार्य यहां दल को दिखाए गए। गोमूत्र, गोबर, नीम, करंज, आंकड़ा, धतूरा, एलोवेरा और अन्य देशी उपायों से इलाज होते हुए भी दल ने यहां देखा।
केमिकल युक्त कीटनाशक धरती को बंजर बनाते हैं। पानी को प्रदूषित करते है। पानी और मिट्टी के सहारे ही पौधे, हरियाली, जानवर और इंसान रह सकते है। छात्रों ने यहां सौर ऊर्जा पर चलने वाले रेडियो पर गानों का भरपूर आनंद लिया। ऊर्जा का फिर से उपयोग एक तरीका है जिससे पानी, हवा और धरती को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है।
एक पॉवर पाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जनक पलटा ने इस दल को दिखाया कि कैसे अकेले ही उन्होंने झाबुआ के 302 गाँवों के लोगों को रुके हुए पानी में पनपने वाली गुनिया वॉर्म बीमारी के खात्मे के प्रति जागरूक किया। उनके इस कार्य के लिए उन्हें 1992 में हुई अर्थ सम्मिट में यूएनईपी ग्लोबल 500 रोल ऑफ़ ऑनर सम्मान दिया गया। इससे ही उन्हें पर्यावरण के संरक्षण पर कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त हुई। तभी से उनका पूरा ध्यान लंबे समय तक टिकने वाले विकास पर है।
इस दिशा में उन्होंने पिछले 7 सालों में 70,000 लोगों को इस कार्य में लगाया। इस विजिट पर आए सभी छात्रों ने जनक पलटा मगिलिगन से कहा कि उन्होंने कभी इस तरह का काम इतने बड़े पैमाने पर होता नहीं देखा जिसके लिए किसी तरह की फीस नहीं ली जाती। यहां सेंटर के विषय में जानकारी लेते हुए छात्र पूरे समय ध्यान से चीजों को समझते रहे। आखिर में छात्रों ने वादा किया कि वे यहां सीखे तरीकों को अपनाएंगे।