उन दिनों लखनऊ विश्वविद्यालय का भवन बन ही रहा था। केवल 3 कक्ष ही बने थे। वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष भी वहीं काम करते थे।
एक दिन एक विदेशी विज्ञानी उनसे मिलने आए। उन्होंने आते ही किसी से पूछा- आपके विभागाध्यक्ष कहां बैठते हैं? वे उस कोने में।
आगंतुक कोने में पड़ी मेज के पास पहुंचा, जो कॉपियों-किताबों से पटी पड़ी थी। उसी मेज पर विभागाध्यक्ष सूक्ष्मदर्शी में आंखें लगाए कुछ देख रहे थे।
आगंतुक आश्चर्यचकित था- क्या आपका कोई निजी कमरा नहीं है? वह जानता था ये विभागाध्यक्ष महोदय महान वनस्पति विज्ञानी थे।
आत्मविश्वास से भरा उत्तर मिला- बड़े कामों के लिए किसी तड़क-भड़क की नहीं, निष्ठा और लगन की जरूरत होती है। वनस्पति के अवशेषों पर अपनी खोजों से विश्व को चकित कर देने वाले ये वनस्पति विज्ञानी थे- प्रो. बीरबल साहनी।