होलकर महाराजा तुकोजीराव (तृतीय) इस बात से विशेष चिंतित थे अत: 1913-14 के होलकर राज्य के बजट में नगर की स्वच्छता-व्यवस्था को सुधारने हेतु पहली बार विशेष प्रावधान रखा गया। इस वर्ष ही नगर के विभिन्न क्षेत्रों में, जहां घरों से निकलने वाला गंदा पानी कच्ची नालियों में बहकर फैला करता था, उन्हें पक्की नालियों में तब्दील करने की योजना हाथ में ली गई। पहले, नगर के विभिन्न भू-स्तरों को नापकर उसकी रिपोर्ट तैयार की गई थी। उस वक्त तक नगर में सार्वजनिक शौचालयों की भी भारी कमी थी। उसके साथ ही निजी तथा कच्चे शौचालयों की सफाई का भी अभाव था।
गंदगी को गटरों में बहा दिया जाता था जिससे नगर का वातावरण बहुत दूषित होता रहता था। नगर में सफाई का काम निजी तौर पर किया जाता था। सफाईकर्मियों ने नगर के विभिन्न मोहल्लों को बांट लिया था। यह बंटवारा धीरे-धीरे उन परिवारों की स्थाई जागीरों में तब्दील हो गया। एक निश्चित धनराशि लेकर वे ही उस क्षेत्र विशेष के शौचालयों की सफाई करते थे, अन्य सफाई कामगार वहां कार्य नहीं कर सकता था।
किसी क्षेत्र विशेष के कामगार को यदि धन की आवश्यकता पड़ती थी तो एक निश्चित अवधि के लिए वह अपनी जागीर को गिरवी रख देता था या स्थाई रूप से अपने सफाई अधिकारों को बेच देता था। यह प्रणाली सफाईकर्मियों की जाति-पंचायत द्वारा भी अनुमोदित थी, इसलिए इस व्यवस्था को तोड़ने की हिम्मत कोई कामगार नहीं करता था। नगर के कई हिस्सों में, जहां कच्चे शौचालय हैं, आज तक भी यह व्यवस्था जीवित है।
नगर पालिका ने 1913-14 में ही उक्त दोषपूर्ण सफाई की जागीर प्रणाली को समाप्त करने का प्रयास किया, क्योंकि इस व्यवस्था में सफाईकर्मियों पर नगर पालिका का कोई नियंत्रण नहीं था। सफाईकर्मी अपने क्षेत्र के जागीरदार थे ही। कई बार कुछ कर्मी, सफाई की उपेक्षा भी करते थे। सफाईकर्मियों ने नगर पालिका के नियंत्रण में आने से इंकार कर दिया, तब विवश होकर नगर पालिका के नगर के कच्चे शौचालयों को तोड़ना प्रारंभ कर दिया और उनके स्थान पर 'फ्लश लेट्रिन्स' को बढ़ावा दिया।