जैश और लश्कर को 'ब्रिक्स घोषणा पत्र' में किया शामिल : चीन

सोमवार, 4 सितम्बर 2017 (21:21 IST)
बीजिंग। चीन ने सोमवार को कहा कि जैश ए मोहम्मद, लश्कर ए तैयबा और हक्कानी नेटवर्क जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को क्षेत्र में उनकी हिंसक गतिविधियों से जुड़ी चिंताओं के कारण ब्रिक्स संयुक्त घोषणा पत्र में शामिल किया गया। 
 
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने ब्रिक्स के संयुक्त घोषणा पत्र में पहली बार इन आतंकी समूहों को शामिल करने का बचाव करते हुए कहा कि ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों ने इन संगठनों की हिंसक गतिविधियों को लेकर अपनी चिंताएं जाहिर कीं। 
 
उन्होंने इन आतंकी समूहों को लेकर ब्रिक्स देशों के एक मजबूत संदर्भ को लेकर एक लिखित जवाब में कहा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है और वे अफगानिस्तान मुद्दे को लेकर महत्वपूर्ण असर रखते हैं। 
 
हालांकि गेंग ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या ब्रिक्स (जिसका चीन एक अहम सदस्य है) द्वारा जेईएम का नाम लेना समूह के प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध का विरोध करने के चीन के रुख के बदलने का प्रतीक है।
 
उन्होंने कहा, ब्रिक्स देशों में आतंकवाद से मुकाबले के लिए सहयोग को लेकर हम ब्रिक्स द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों से काफी संतुष्ट हैं। आतंकवाद को लेकर हमारा एक कार्यकारी समूह है। ब्रिक्स नेताओं की बैठक के बाद जारी 43 पृष्ठों के ‘श्यामन घोषणा पत्र’ को पारित किया गया जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अफगानिस्तान में हिंसा पर तत्काल विराम लगाने की जरूरत है।
 
इसमें कहा गया, इस संदर्भ में, हम क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति और तालिबान, आईएसआईएस, अलकायदा एवं इसके सहयोगियों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर चिंता जाहिर करते हैं। अलकायदा के सहयोगियों में ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम), इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उजबेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और हिज्ब उत-तहरीर शामिल हैं। 
 
गौरतलब है कि ईटीआईएम चरीन के शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र में सक्रिय है और वह ‘ईस्ट तुर्किस्तान’ की स्थापना की मांग कर रहा है। यह पहली बार है जब चीन ब्रिक्स घोषणा पत्र में पाकिस्तानी आतंकी समूहों को शामिल करने पर सहमत हुआ है। पिछले दो सालों में चीन ने यह कहते हुए अजहर को आतंकी घोषित करने की भारत की और फिर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की कोशिशों को बाधित करता रहा है कि मुद्दे पर आम सहमति नहीं है। (भाषा) 

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