चीनी नौसेना की नजर हिन्द महासागर पर...

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017 (17:54 IST)
पीएलए पोत युलिन से। भारत के समुद्री क्षेत्र के बेहद समीप चीन की सेना के बेड़े की बढ़ती मौजूदगी को लेकर बढ़ रही चिंताओं के बीच चीन की नौसेना की नजर अब हिन्द महासागर पर है। चीन की नौसेना हिन्द महासागर में सुरक्षा बनाए रखने के लिए भारत से हाथ मिलाना चाहती है।
 
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) के अधिकारियों ने तटीय शहर झानजियांग में अपने कूटनीतिक दक्षिण सागर बेड़े (एसएसएफ) अड्डे पर पहली बार भारतीय पत्रकारों के एक समूह से बात करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए हिन्द महासागर एक साझा स्थान है।
 
चीन के एसएसएफ के डिप्टी चीफ ऑफ जनरल ऑफिस कैप्टन लियांग तियानजुन ने कहा कि मेरी राय में चीन और भारत हिन्द महासागर की सुरक्षा में संयुक्त योगदान दे सकते हैं। उनकी यह टिप्पणी तब आई है, जब चीनी नौसेना ने अपनी वैश्विक पहुंच बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर विस्तार की योजना शुरू की है।
 
लियांग ने हिन्द महासागर में चीन के युद्धपोतों और पनडुब्बियों की बढ़ती गतिविधियों पर भी स्पष्टीकरण दिया। चीन ने हिन्द महासागर में हॉर्न ऑफ अफ्रीका के जिबूती में पहली बार नौसैन्य अड्डा स्थापित किया है।
 
विदेशी समुद्र क्षेत्र में चीन के पहले नौसैन्य अड्डे का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि यह साजोसामान का केंद्र बनेगा और इससे क्षेत्र में समुद्री डकैती रोकने, संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा अभियान चलाने और मानवीय राहत पहुंचाने वाले अभियानों को सहयोग मिलेगा।
 
उन्होंने कहा कि जिबूती अड्डा चीन के नौसैनिकों के लिए आराम करने का स्थान भी बनेगा। लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि चीन के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक दबदबे के बीच सैन्य अड्डा बनाना वैश्विक पहुंच बढ़ाने की पीएलएएन की महत्वाकांक्षा का हिस्सा है।
 
लियांग ने कहा कि हिन्द महासागर बहुत बड़ा सागर है। क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता बनाने में योगदान देने के वास्ते यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए साझा स्थान है। पीएलएलन के युद्धपोत युलिन पर भारतीय मीडिया से हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी के बारे में उन्होंने कहा कि चीन की सेना का रुख रक्षात्मक है, न कि आक्रामक।
 
इसके साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट किया कि चीन कभी 'अन्य देशों में घुसपैठ' नहीं करेगा लेकिन 'अन्य देशों द्वारा अवरुद्ध' भी नहीं होगा। भारतीय मीडिया के प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित करने के कोई खास महत्व और संदर्भ से इंकार करते हुए उन्होंने कहा कि यह विभिन्न देशों के साथ नियमित बातचीत का हिस्सा है। (भाषा) 

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