सिर्फ तीन साल, बचा सको तो बचा लो दुनिया...

गुरुवार, 29 जून 2017 (17:17 IST)
वैज्ञानिकों और शोधकताओं ने चेतावनी दी है कि यदि दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचाना है तो इंसानों के पास इस‍के सिर्फ तीन साल ही शेष हैं।  नेचर पत्रिका ने एक लेख प्रकाशित किया है, जिसमें 60 से ज्यादा जाने-माने वैज्ञानिकों के हस्ताक्षर हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए अब केवल तीन साल का ही समय बचा है। यदि इस अवधि में कार्बन गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं लाई गई तो स्थितियां और विकट हो जाएंगी और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करना लगभग असंभव हो जाएगा। वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो हो सकता है कि स्थितियां हमेशा के लिए इंसान के हाथ से निकल जाएंगे। 
 
2020 बहुत अहम : जलवायु परिवर्तन से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की कार्यकारी सचिव क्रिस्टियाना फेगेरिस का मानना है कि यदि 2020 के बाद भी इसी रफ्तार से कार्बन उत्सर्जन होता रहा या इससे ज्यादा ग्रीन हाउस उत्सर्जन हुआ, तो पेरिस समझौते में जो लक्ष्य रखे हैं उन्हें हासिल करना लगभग असंभव हो जाएगा। इस लिहाज 2020 बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्रिस्टियाना ने पेरिस समझौते में अहम भूमिका निभाई है। ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि अमेरिका ने हाल ही में पेरिस समझौते से अलग होने की घोषणा कर चुका है। हालांकि इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने राष्ट्र प्रमुखों से अपील की है कि वे सच से मुंह न मोड़े और भावी खतरे की दिशा में सार्थक प्रयास करें। 
 
क्या हो रहा है असर : वैज्ञानिकों के मुताबिक तेजी से बढ़ते तापमान के कारण आर्कटिक में गर्मियों में जमी रहने वाली बर्फ गायब हो गई है और मूंगे की चट्टानें भी खत्म हो रही हैं। अनुमान है कि गैसों का उत्सर्जन इसी गति से जारी रहा तो निकट भविष्य में तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 1880 के दशक से लेकर अब तक हुए कार्बन उत्सर्जन के कारण दुनिया का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। 
 
क्या है ग्लोबल वॉर्मिंग :  दरअसल, ग्रीन हाउस गैस धरती से लौटने वाली सूरज की गर्मी को सोखकर उसके तापमान को संतुलित रखती है, मगर धरती पर इन गैसों की मात्रा बढ़ जाए तो तापमान भी बढ़ जाएगा। कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड आदि ग्रीन हाउस गैसें हैं। कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों, फ्रिज, एसी के प्रयोग से इन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। वर्तमान में इन उपकरणों के बढ़ते प्रयोग की वजह से ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा काफी बढ़ गई है। इसका सीधा प्रभाव धरती के तापमान पर पड़ रहा है। 
 
क्या है पेरिस समझौता : ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरों से निपटने की दिशा में सबसे पहला निर्णायक कदम 1997 में सामने आया, जिसे क्योटो प्रोटोकाल के रूप में जाना जाता है। इस संधि के तहत दुनिया के देशों ने फैसला लिया था कि 2012 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाएंगे। हालांकि इस समझौते को भी अस्तित्व में आने में आठ साल लग गए और यह 2005 में प्रभाव में आया।
 
दिसंबर 2015 में पेरिस में हुई सीओपी की 21वीं बैठक में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के माध्यम से वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस के आदर्श लक्ष्य को लेकर एक व्यापक सहमति बनी थी। इस बैठक के बाद सामने आए 18 पन्नों के दस्तावेज को सीओपी-21 समझौता या पेरिस समझौता कहा जाता है। अक्टूबर, 2016 तक 191 सदस्य देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके थे।

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