मीडिल ईस्ट और खाड़ी देशों में 50 डिग्री सेल्सीयस तापमान वाले दिनों की संख्या ज्यादा रही। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भविष्य में और भी क्षेत्रों का तापमान 50 डिग्री सेल्सीयस से ज्यादा होगा। अध्ययन से पता चला कि 45 डिग्री सेल्सीयस तापमान वाले दिनों की संख्या में भी औसत रूप से हर वर्ष 2 हफ्तों की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
सबसे हाल के दशक में, जमीन और समुद्र दोनों पर अधिकतम तापमान में 1980 से 2009 के दीर्घकालिक औसत की तुलना में 0.5 सेल्सीयस की वृद्धि हुई है। पूर्वी यूरोप, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील का तापमान 1 डिग्री सेल्सीयस तक बढ़ गया जबकि मध्य पूर्व के तापमान में 2 डिग्री की बढ़ोतरी दिखाई दी।
अत्यधिक गर्मी से जंगल की आग और सूखे जैसी आपदाएं बढ़ सकती है और मानव स्वास्थ्य पर इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। उच्च तापमान मिट्टी से वाष्पीकरण को बढ़ावा देता है। अत: यह भूमि को सुखा भी सकता है। बढ़ते तापमान के कारण ग्रह के कई हिस्से इतने गर्म हो सकते हैं कि यह जगह लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगी।
2100 तक गर्मी की वजह से दुनिया भर में 1.2 बिलियन लोग प्रभावित हो सकते हैं। गत वर्ष रटगर्स विश्वविद्यालय की स्टडी के परिणामों के अनुसार, अगर ग्लोबर वॉर्मिंग इसी गति से जारी रही तो यह आंकड़ा आज प्रभावित लोगों की तुलना में कम से कम चार गुना अधिक होगा।