जेएपी के वरिष्ठ पदाधिकारी आमिर महमूद ने कहा, खानेवाल और गुजरांवाला दोनों जगहों पर पुलिस ने धार्मिक चरमपंथियों के दबाव में आकर अहमदिया समुदाय की इबादतगाहों की मीनारों को ध्वस्त कर दिया और पवित्र शिलालेखों को सीमेंट से ढंक दिया। उन्होंने कहा कि दोनों इबादतगाहें 1950 के दशक की शुरू में बनाई गई थीं।
महमूद ने बताया कि लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति तारिक सलीम शेख ने 31 अगस्त 2023 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि अहमदिया समुदाय की 1984 से पहले बनी इबादतगाहों को नुकसान पहुंचाना गैरकानूनी है। अदालत ने स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया कि 1984 में बनाया गया कानून ऐसे उपासना स्थलों पर लागू नहीं होता है और तोड़फोड़ या नुकसान पहुंचाने का कोई भी कार्य गैरकानूनी होगा।
महमूद ने अदालत के आदेश के खुलेआम उल्लंघन का दावा करते हुए कहा, हमने लाहौर उच्च न्यायालय का आदेश पुलिस को दिखाया, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया। पुलिस ने दावा किया कि उन पर धार्मिक तत्वों का भारी दबाव है। जेएपी ने पुलिस की कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे अवैध और अधिकारों का दुरुपयोग बताया।
पाकिस्तान में धार्मिक चरमपंथी कथित तौर पर अहमदिया समुदाय के लोगों के खिलाफ अपने घृणित अभियान को तेज कर रहे हैं, जिसके कारण कार्यस्थलों पर उनका उत्पीड़न बढ़ रहा है, उन्हें नौकरियों से बर्खास्तग किया जा रहा है और अहमदिया दुकानदारों का बहिष्कार करने का सार्वजनिक आह्वान किया जा रहा है। (भाषा) (File Photo)
Edited By : Chetan Gour