कश्मीरी उग्रवादियों तक कैसे पहुंच रहे हैं नाटो के हथियार

DW
शनिवार, 21 मई 2022 (09:04 IST)
रिपोर्ट : सलमान लतीफ
 
अफगानिस्तान में उग्रवादियों और अमेरिकी सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार भारतीय कश्मीर में पहुंच रहे हैं। इससे इलाके में हिंसा बढ़ने की आशंका गहरा गई है।
 
भारतीय जांच एजेंसी एनआईए इस बात की जांच कर रही है कि 13 मई को एक बस पर हुए बम हमले में आतंकवादियों ने 'स्टिकी बम' का इस्तेमाल तो नहीं किया था। उस हमले में 4 लोग मारे गए थे और 20 से ज्यादा घायल हुए थे। जांच एजेंसियों को संदेह है कि कश्मीर में आतंकवादियों के पास 'स्टिकी बम' आ चुका है। अगर सच है तो कश्मीर में जारी आतंकवादी अभियानों के लिए यह नई बात होगी।
 
जम्मू-कश्मीर फ्रीडम फाइटर्स एक ऐसा संगठन है जिसके बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी संगठन ने 13 मई के हमले की जिम्मेदारी ली थी और दावा किया था कि उसने स्टिकी बम का इस्तेमाल किया। स्टिकी बम एक तरह का आईईडी बम होता है जिसे चलते वाहन पर चिपकाकर रिमोट के जरिए धमाका किया जाता है।
 
कहां से आए स्टिकी बम?
 
कश्मीर में आमतौर पर ऐसे स्टिकी बम नहीं देखे गए हैं। हालांकि पिछले साल फरवरी में एनआईए ने एक छापे में ऐसे दर्जनों बम बरामद किए थे। ये वैसे ही बम हैं, जो अफागनिस्तान में नाटो विरोधी जंग में आतंकवादियों द्वारा प्रयोग किए जाते थे। सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि भारतीय इलाके में इनका पाया जाना अच्छी खबर नहीं है।
 
भारतीय अधिकारियों ने दावा किया है कि उन्हें ऐसे बहुत से हथियार मिले हैं जिन पर अमेरिकी मुहर लगी है। उत्तरी पाकिस्तान से लगती अफगानिस्तान की सीमा भारतीय कश्मीर के बहुत करीब है। भारत का दावा है कि इसी रास्ते से आतंकवादी भारतीय इलाके में घुसपैठ करते हैं। हालांकि पाकिस्तान इस बात से इंकार करता है कि वह कश्मीर में हिंसक गतिविधियों को किसी तरह का समर्थन करता है। उसका कहना है कि वह कश्मीरी आंदोलनकारियों को कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देता है।
 
कश्मीर में नाटो हथियार
 
पिछले साल अगस्त में नाटो सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। भारतीय सेना को उसके बाद भारतीय कश्मीर में अमेरिका-निर्मित एम4 कार्बाइन राइफलें मिली थीं। ये राइफल कश्मीर में मुठभेड़ों में मारे गए चरमपंथियों के हाथों में ही बरामद हुई थीं।
 
ऐसे वीडियो भी सामने आए हैं जिनमें एम249 ऑटोमेटिक राइफल, 509 टेक्टिकल गन, एम1911 पिस्टल और एम4 कार्बाइन जैसे हथियार लिए आतंकवादी नजर आए। इसके अलावा करीब 1 दर्जन इरिडियम सैटेलाइट फोन और वाई-फाई आधारित थर्मल इमेजरी डिवाइस भी नजर आई जिन्होंने रात के वक्त कार्रवाई करने में आतंकवादियों की मदद की होगी। ये वही हथियार हैं, जो अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान में प्रयोग कर रही थीं।
 
अफगानिस्तान में युद्ध का कश्मीर चरमपंथ पर असर
 
फरवरी में भारतीय सेना के मेजर जनरल अजय चांदपुरिया ने माना था कि अमेरिका में बने अत्याधुनिक हथियार अफगानिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश कर चुके हैं। चांदपुरिया ने भारतीय मीडिया से कहा था  कि हमें जो हथियार और उपकरण मिले हैं, उनसे हमें अहसास हुआ कि अमेरिकी जो अत्याधुनिक हथियार अफगानिस्तान में छोड़ गए थे, वे इस तरफ आ रहे हैं। इनमें से कुछ हथियार तो लाइन ऑफ कंट्रोल के पास हाल ही में हुई मुठभेड़ों में मिले हैं।
 
एक वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी ने डॉयचे वेले को बताया कि अमेरिकी हथियारों के कश्मीर में मिलने की जांच की जा रही है। इस अधिकारी ने कहा  कि काबुल के तालिबान के हाथों में चले जाने का भारतीय क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति पर, खासकर कश्मीर पर बहुत भारी असर हुआ है। 1989 में जब सोवियत संघ के सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर गए थे तब अफगान लड़ाके कश्मीर में पहुंच गए थे। हम वैसा ही कुछ दोबारा देख सकते हैं। लेकिन भारतीय सेना उससे निपटने में तैयार है।

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