रिश्तों की पहचान खुशी व गम

मानसी

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हेलो दोस्तो! जकोई आपका भला कर रहा होता है उस समय आपको यही लगता है कि आप जीवनभर यह मदद या अहसान नहीं भूलेंगे। चाहे आगे चलकर विचारों के कोई मतभेद ही क्यों न हो जाएँ पर इस सहायता की सच्चाई स्वीकारने में तनिक भी गुरेज नहीं करेंगे।

कई बार जीवन की कोई कठिन परिस्थिति, कोई छल, कोई पीड़ा आदि के कारण जब आपको लगता हो कि आपकी जिंदगी एक बिंदु पर आकर ठहर गई हो, आपका संपर्क, आपकी कोशिश जवाब दे रही हो, आपके सपने किसी काल कोठरी में बंद कर दिए गए हों। आपके जीवन में आशा, आकांक्षा एवं महत्वाकांक्षा जैसे शब्दों का स्थान समाप्त हो गया हो तब एक मेहरबान आपको आपकी शक्ति व क्षमता का एहसास कराता है। आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। आपको मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा का अवसर दिलाता है।

उस वक्त आप अपनी पुरानी ठहरी हुई एकरस जिंदगी याद करके यही संकल्प करते हैं कि उस शख्स को जीवन के हर मुकाम पर याद करेंगे, हर उपलब्धि में उसका भी हाथ मानेंगे। पर समय बीतने के साथ ही जब आपका जीवन सुधर चुका होता है, जब आपको किसी सहारे की जरूरत महसूस नहीं होती है, जब पिछले मिले हुए अवसर से आपके लिए नया मंच तैयार होने लगता है तो अचानक आपको महसूस होता है यह मौका आपके व्यक्तित्व का नतीजा है।

आपकी शख्सियत में ही वह तेज, जादुई पैनापन एवं विद्वता भरी हुई है कि आज दुनिया उसका लोहा मान रही है। आपके मन में एक अजीब सी खीझ पैदा होती है कि नाहक किसी और को इसका श्रेय दे रहे थे। और, आप इठलाने लगते हैं सोचते हैं अब उस अहसान की माला जपने की क्या जरूरत है पर किसी कारणवश आप एक बार फिर कठिन हालात में आ फँसते हैं तब आपको फिर उसी मेहरबान की याद सताती है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

ऐसी ही कठिन घड़ी से गुजर रहे हैं रमाकांत (बदला हुआ नाम) अपनी जिस दोस्त की मदद व कोशिश से वे निराश व बेजान जिंदगी से उबरकर बाहर निकले और अपनी क्षमता पहचानकर नाम कमाया उसी दोस्त को मामूली समझकर पीछे छोड़ आए। समय के साथ उनकी मामूली दोस्त अब उनसे अधिक प्रतिष्ठित व शक्तिशाली हैं पर अब रमाकांत जी उनकी मित्रता की सूची से बाहर हैं। उस दोस्त से जब भी सामना होता है उन्हें अपना ओछापन बहुत कचोटता है। रमाकांत जी, कई बार मनुष्य अपनी चालाकी को समझदारी का नाम देता है और वह उस पर भारी पड़ती है।

जिस समझदारी का वास्ता संकीर्ण सोच से हो उसका नतीजा भी छोटा ही निकलता है। जब आप जीवन में अकेले थे, आपका सारा उत्साह समाप्त हो गया था तब आपको किसी ऐसे शख्स की जरूरत थी जो आपमें जीवन के प्रति नई उमंग भरे। दुनिया में फैली अनेक रंगीनियों की ओर आपका ध्यान दिलाए। खुशियों को महसूस करने का जज्बा पैदा करे। उस समय आपकी दोस्त ने आपको जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आपका साहस बढ़ाया, आपको हौसला दिया।

यहाँ तक कि उसकी वजह से आपको अपनी महत्वाकांक्षाएँ परवान चढ़ाने का अवसर मिला पर फिर आप उसे भूल गए। फिर आपने किसी बहुत पुरानी पहचान का यह सोचकर दामन थाम लिया कि उसके आश्रय में अधिक स्थायित्व व सुरक्षा है। रमाकांत जी, जिस प्रकार आपने पाला बदला है, उसकी टीस तो आपको हमेशा ही रहेगी। यह टीस इसलिए नहीं है कि अब आपको अपनी हरकत पर शर्मिंदगी हो रही है बल्कि अफसोस हो रहा है कि आपकी दोस्त अच्छी स्थिति में है।

शायद उसकी स्थिति नहीं सुधरती तो आपको अपने किए पर कोई मलाल भी नहीं होता। अभी आपको लगता है उसका नेक स्वभाव, उसकी सहजता, मनुष्यता और मन बढ़ाने वाली बातों के साथ ही है अच्छी-खासी पहचान और पद जिसके हाथ से निकलने का दर्द आपको साल रहा है। खैर, हर व्यक्ति अपनी ही तरह का होता है। वह जो भी कदम उठाता है उसका खामियाजा उसे भुगतना ही पड़ता है। जब प्यार, दोस्ती, स्नेह, नेक नीयती आदि को व्यापार की तरह तोलना शुरू करते हैं तो उसमें घाटा-लाभ जैसा तत्व जुड़ ही जाता है।

बेहतर है कि रिश्ते को खुशी व गम के तराजू में ही तोलें। जिस रिश्ते से खुशी मिलती हो उसे सँभालें और जिससे दुःख-दर्द उससे किनारा करें। अब जो रिश्ता आपके पास है उसका साथ दें और सम्मान करें। ऐसा न हो कि आपके अफसोस की भनक इस रिश्ते को भी लील जाए। जो हो चुका उसे सुधारा तो नहीं जा सकता है, हाँ सीख लेकर बची हुई दुनिया को सुरक्षित किया जा सकतहै।

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