भोपाल। मध्यप्रदेश में उपचुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच अचानक से ज्योतिरादित्य सिंधिया चर्चा के केंद्र में आ गए है। ट्वीट पर सिंधिया के भाजपा छोड़ने और कांग्रेस में वापसी खबरें जोर-शोर से ट्रैंड कर रही है। ट्वीट पर कथित तौर पर दावा किया जा रहा हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्विटर हैंडल पर अपना बायो बदल कर उसमें से भाजपा हटा दिया है।
खुद सिंधिया के आगे आना पड़ा - सिंधिया को लेकर खबरें इतनी तेजी से वायरल हुई कि पहले उनके समर्थकों और फिर सिंधिया को खुद सफाई देने के लिए आगे आना पड़ा है। सिंधिया ने ट्वीट करते हुए लिखा कि दुख की बात है कि झूठी खबरें सच्चाई से ज्यादा तेजी से फैलती है।
समर्थकों ने किया खंडन - सिंधिया सर्मथक और भाजपा नेता पंकज चतुर्वेदी ऐसी खबरों को पूरी तरह नकारते हुए कहते हैं कि भाजपा के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया जी को लेकर सोशल मीडिया और मीडिया में चल रही खबरें पूरी तरह से निराधार हैं। सिंधिया जी ने कांग्रेस छोड़ने के पूर्व अपने ट्विटर अकाउंट के बायो में खुद को क्रिकेट प्रेमी और जनसेवक लिखा था, भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित होने के बाद सिर्फ अपने प्रोफाइल पिक्चर चेंज की थी और कोई चेंज नहीं किया था। जब कोई चेंज हुआ ही नहीं तो फिर बदलने का सवाल ही कहां है।
सिंधिया को लेकर सस्पेंस क्यों ? - सिंधिया जो 10 मार्च में कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे उनको लेकर पिछले कई दिनों से सियासी गलियारों में चर्चा तेज है। ऐसे में जब उपचुनाव को लेकर लगातार सरगर्मी तेज हो गई है और आए दिन सिंधिया समर्थक भाजपा में शामिल हो रहे है ऐसे में सिंधिया का भोपाल और अपने इलाके से दूरी बनाए रखना भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिवअनुराग पटेरिया कहते हैं कि वर्तमान में मध्यप्रदेश की राजनीति स्थिति ऐसी है कि यहां अफवाहों और अटकलों की काफी गुजांइश है। मार्च में सिंधिया और उनके समर्थक विधायक जिस आशा के साथ भाजपा में शामिल होकर प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिराने और भाजपा सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी उनके हाथ अब तक निराशा ही हाथ लगी है।
अब जब सरकार बने दो महीने से अधिक वक्त बीत चुके है तब भी केवल 2 सिंधिया समर्थक ही मंत्री बन पाए है और अब सिंधिया समर्थकों में मंत्री नहीं बन पाने की निराशा साफ दिखाई देने लगी है। पिछले दिनों सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए बिसाहूलाल साहू का ये बयान कि वह न मंत्री बन पाए और न विधायक ही रहें, से सिंधिया समर्थकों की पीड़ा को समझा जा सकता है। इसके साथ मंत्रिमंडल विस्तार लगातार जिस तरह टलता जा रहा है उसके बाद सिंधिया समर्थकों में बैचेनी बढ़ती जा रही है।
शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि भाजपा भी स्थिति की गंभीरता को अच्छी तरह समझती है कि अगर ये अटकलों और अनुमानों की राजनीति इस तरह तेजी से चलती रही तो भाजपा को इसका नुकसान राज्यसभा के साथ उपचुनाव में भी उठाना पड़ सकता है। उपचुनाव में अगर भाजपा पूरी तरह एकजुट नहीं रही तो गुटों में बंटीं भाजपा का मुकाबला गुंटों में बंटीं कांग्रेस के साथ होगा।
अटकलों की सियासत के पीछे उपचुनाव में चेहरे से जुड़ी राजनीति के सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक शिवअनुराग पटेरिया कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में भाजपा की सरकार सिंधिया के चलते बनी है और जिन 24 सीटों पर उपचुनाव है वहां पर सिंधिया का अच्छा खासा दखल है ऐसे में उपचुनाव में भाजपा को सिंधिया का चेहरा आगे करना ही होगा। वह कहते हैं कि सिंधिया पर उपचुनाव के महत्व को बहुत अच्छी तरह समझते है इसलिए उन्होंने खुद खबरों का खंडन कर एक तरह से पूरे मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की है।