अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि ने गुरुवार को फोन पर कहा कि यदि किसी संत को नर्मदा नदी के संरक्षण के जरिए समाजसेवा करनी है या इस सिलसिले में किसी घोटाले का खुलासा करना है तो ऐसा करने से उसे भला कौन मना करता है? लेकिन यह कैसा स्वभाव है कि राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद संबंधित संत कह रहे हैं कि कोई घोटाला हुआ ही नहीं और सबकुछ सही है? उन्होंने तल्ख लहजे में कहा कि संतों को इस तरह की ब्लैकमेलिंग नहीं करनी चाहिए।
गौरतलब है कि जिन 5 धार्मिक नेताओं को नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए राज्यमंत्री दर्जे से नवाजा गया है, उनमें शामिल कम्प्यूटर बाबा और योगेन्द्र महंत ने सूबे की भाजपा सरकार के खिलाफ 1 अप्रैल से 15 मई तक 'नर्मदा घोटाला रथयात्रा' निकालने की घोषणा की थी। यह यात्रा नर्मदा नदी में जारी अवैध रेत खनन पर अकुंश लगवाने और इसके तटों पर 6 करोड़ पौधे रोपने के कथित घोटाले की जांच की प्रमुख मांगों के साथ निकाली जानी थी। लेकिन राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद दोनों धार्मिक नेताओं ने अपनी प्रस्तावित यात्रा रद्द कर दी।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि पहले इस यात्रा की घोषणा करना और राज्यमंत्री का दर्जा मिलते ही इसे निरस्त कर देना- ये संतों के लक्षण नहीं हैं। अगर संत इस तरह लोभवश राज्यमंत्री का दर्जा स्वीकार कर रहे हैं, तो स्पष्ट है कि उन्होंने अब तक सही अर्थों में वैराग्य लिया ही नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 'नर्मदा घोटाला रथयात्रा' की घोषणा करने वाले संतों के कथित दबाव में नहीं आना चाहिए था। नरेन्द्र गिरि ने बताया कि वे पता कर रहे हैं कि राज्यमंत्री का दर्जा स्वीकार करने वाले संत क्या किसी अखाड़े से ताल्लुक रख्रते हैं? अगर वे अखाड़ा परंपरा से जुड़े हैं तो वे उनके खिलाफ उचित कदम उठाने का आदेश देंगे।