इन्होंने नृत्य का प्रशिक्षण गुरू दुर्गा दास प्रसाद, नारायण प्रसाद और सुंदरप्रसाद से प्राप्त किया। नाट्यशास्त्र की शिक्षा पद्मश्री पुरु दाधीच ने गुरूबाबुल शास्त्री जी और साहित्य की शिक्षा शिवमंगल सिंह समुन और
वे कथक नृत्य की प्राचीन शैलियों पर शोध भी कर रही हैं। कथक नृत्य के प्रचीन अंग और गत निकास की अभिव्यक्तियों ने पूरी दुनिया में उन्हें सम्मान दिलाया। जटिल और विशिष्ट लयकारी को भी पूर्ण सौंदर्य और गहराई के साथ तोड़ा, टुकड़ा और तत्कार में बदलकर वे सीधे कला रसिकों के हृदय को बेधती हैं।उनके हाथों में कथक की विरासत बेहद समृद्ध दिखाई देती है।