रामतंत्र का मौका भी है और दस्तूर भी

Webdunia
मंगलवार, 30 जनवरी 2024 (15:31 IST)
-राजेंद्र खंडेलवाल
Ram Mandir Ayodhya: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जो कुछ कहा, भारतीय राजनीतिक संदर्भ में उसके बहुत मायने हैं। जिस तरह उन्होंने कहा कि राम भारत का आधार हैं, चेतना हैं, अनुभूति हैं, सम्मान हैं...शब्द काफी कुछ कह रहे हैं। मोदी के इस भाषण को यदि आध्यात्मिक समझकर छोड़ दिया गया तो हम बहुत बड़ी गलती कर बैठेंगे। सचाई ये है कि ये भाषण आध्यात्मिक जितना है, उससे कहीं ज्यादा राजनीतिक और सामाजिक है। सीधे तौर पर कहा जाए कि अब देश को 'रामतंत्र' की जरूरत है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
 
जो लोग इसमें धर्मांधता की बू सूंघने की कोशिश करेंगे वो भारत की चेतना को जान-बूझकर नजरअंदाज करने की भूल करेंगे। आज देश को जिस मुहाने पर लाकर मोदी ने खड़ा कर दिया है, उससे तो यही संदेश निकल रहा है कि देश को रामतंत्र यानी एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जिसमें न असमानता होगी और न अन्याय और अविश्वास होगा। यहां एक बात समझने की जरूरत है खासकर गैर हिंदुओं को।

वो ये कि रामतंत्र या रामराज्य (जिसका जिक्र मोदी ने अपने भाषण में किया है) हिंदुत्व की पैरोकारी या भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं है बल्कि एक ऐसे राज्य की कल्पना है जो सिर्फ और सिर्फ देश के बारे में सोचे। जिसके निवासियों के लिए धर्म की बजाय सबसे पहले देश हो। सिर्फ विकास की बातें हों और हर व्यक्ति आर्थिक व सामाजिक रूप से संतुष्ट हो। 
 
बेशक, रामराज्य या रामतंत्र में कट्टरता की कोई जगह नहीं होगी और लोगों को अपने संशय, संदेह, दुराग्रह और डर को छोड़ना पड़ेगा। जहां तक हिंदू मतावलम्बियों का प्रश्न है, वो तो इस कसौटी पर खरे उतरेंगे लेकिन मुस्लिम मतालम्बियों को इससे परहेज होगा और ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इस मत के लोगों को उनके जबरन रहनुमा सही बात को सोचने-समझने नहीं देते और गुमराह करते हैं। कारण सिर्फ इतना है कि उनकी रहनुमाई बरकरार रहे भले ही इसके लिए पूरी की पूरी कौम संदेह के पहाड़ों पर चढक़र बैठी रहे।
 
यहां एक बात गौरतलब है कि मुस्लिम समाज के वो लोग जो इन रहनुमाओं की बातों, संदेशों में नहीं फंसते वो अपने सारे संशय-संदेह त्यागकर देश के साथ खड़े हो जाते हैं। सोशल मीडिया पर कई मुस्लिम युवक-युवतियों, इमामों, मौलवियों के वीडियो इस बात का सबूत हैं। जब इन विकसित सोच-समझ वालों के राष्ट्रवादी बयानों से इस्लाम खतरे में नहीं आता, तो फिर बाकी लोगों के भी धर्म से पहले राष्ट्र को मानने से ये खतरा क्यों पैदा हो जाएगा?      
 
बहरहाल, बात रामतंत्र की करें। ये तंत्र दो स्थितियों से चर्चा में आया है। एक तो अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा और दूसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण जिसमें वो इशारों में सर्वधर्म समभाव के साथ राम को देश का आधारबिंदु मानकर आगे बढ़ने का संदेश दे रहे हैं। देश ने अभी 75वां गणततंत्र दिवस मनाया है। 500 से ज्यादा वर्षों के संघर्ष के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम अपने मंदिर में विराजे हैं। देश का हर आमो-खास व्यक्ति इससे हर्षित व गौरवान्वित है। 26 जनवरी 1950 को लागू गणतंत्र के बाद से ये पहला मौका है जब हर गण के मन में प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा और विश्वास दिख रहा है।
 
ये सही वक्त है जब गणतंत्र को रामतंत्र में बदला जाए। रामतंत्र केवल धर्म नहीं है बल्कि ये एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कोई असमानता नहीं होगी, अन्याय नहीं होगा और न ही सामाजिक वैमनस्यता होगी। सबको सब मिलेगा जितनी उसमें योग्यता है। क्या गणतंत्र भी ऐसा नहीं होना चाहिए? यदि हां तो फिर गणतंत्र का सही और सार्थक मतलब रामतंत्र ही होना चाहिए क्योंकि जिस रामराज्य की कल्पना हम करते हैं, वो हर व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है, उसे जीवन को बेहतर ढंग से जीने की सुविधा देता है। हमें और कैसा गणतंत्र चाहिए? गणतंत्र का विरोध करने का सवाल नहीं है, सवाल उसकी खामियों को दूर करने का है ताकि रामतंत्र की ओर जाया जा सके। इसमें भी खास बात ये है कि रामतंत्र में धर्मांधता नहीं होगी और न ही इसमें दमित को और कुचला जाएगा। रामतंत्र आज के दौर की जरूरत है और इस पर हम आमो-खास व्यक्ति को विचार करना चाहिए। 
                   
एक और बात ये है कि ऐसा रामतंत्र सरकार या नेता नहीं लाएंगे, बल्कि हिंदुओं और गैर हिन्दुओं दोनों को मिलकर आपसी संशयों को परे रखकर खुद लाना पड़ेगा। ऐसा जनमत जिस विचार के पक्ष में हो तो व्यवस्था को उसे मानने पर मजबूर होना पड़ेगा। इसलिए रामतंत्र के लिए पहल आपको करना होगी तभी सरकार कान देगी और देश में सचमुच का गण (राम) तंत्र आएगा। लोग जाग्रत हों तो सबकुछ हो सकता है।

भारत के राजनीतिक इतिहास में ये पहला और शायद आखिरी मौका है जबकि हिंदू-मुसलमानों को आपसी संशयों को छोड़कर एक विकसित व समर्थ भारत बनाने के लिए आगे आना होगा। ये मौका चूक गए तो भारत का इतिहास फिर कभी दोबारा ये मौका नहीं देगा। बल्कि भारत में आर्थिक व सामाजिक असमानता पनप जाएगी। एक वर्ग संपन्न और सक्षम होगा जबकि दूसरा कुढ़ने और अपनी पीढ़ी को बर्बाद करने में ही रह जाएगा। राम मंदिर के बहाने रामतंत्र मौका भी है और दस्तूर भी।
 
दशकों बाद ऐसा अवसर आया जब गैर हिंदू भी राम की भक्ति में डूबा दिखा। सोशल मीडिया पर चले वीडियोज से पता चला कि मुस्लिम बंधु भी रामनाम का जाप करने में पीछे नहीं रहे। भारतीय इतिहास की अब तक सबसे महत्वपूर्ण घटना में अपना योगदान देने व साक्षी होने में वे भी पीछे नहीं रहे। हरेक मन में रामनाम समाया दिखा और सही मायनों में ये मौका है जब देश के हर व्यक्ति को मन में रामराज का संकल्प ले लेना चाहिए।

जिस रामराज की कल्पना सदियों से की जाती रही है, वो सचमुच में धरातल पर उतर आए। हम लोगों की मानसिकता अजीब तरह की है। हम भावनाओं में बहते हैं तो इतना कि सबकुछ भूलकर राम को अंगीकार कर लेते हैं लेकिन जब राम के अनुरूप आचरण करने की बारी आती है तो पीछे हट जाते हैं। क्यों? ये दोहरी मानसिकता क्यों? क्या इससे ये पता नहीं चलता कि हम भक्तिभाव दिखाने में आगे रहते हैं लेकिन राष्ट्रानुरूप आचरण करने में पीछे हो जाते हैं? 
 
आज हर व्यक्ति चाहता है कि सबकुछ ठीकठाक हो। सबको सब अधिकार, न्याय मिले और कोई भी व्यक्ति व्यवस्था के किसी भी अंग से दुखी न हो लेकिन ये काम क्या सरकार करेगी या कोई फरिश्ता आकर करेगा? ये काम तो आपको-हमको ही करना होगा। तो फिर इसी भक्ति को हम सुराज में क्यों नहीं बदल सकते? यदि राम की भक्ति के साथ ही हम प्रण कर लें कि कुछ गलत नहीं करेंगे, किसी पर अन्याय नहीं करेंगे तो रामराज की शुरुआत हो सकती है। सब सुखी हो सकते हैं। लेकिन प्रयास राम को पूजते वक्त खुद से शुरू करना पड़ेगा। ये बहुत बड़ा मौका है जिसे गंवाना नहीं चाहिए वर्ना इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। (यह लेखक के अपने विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है) 
 

सम्बंधित जानकारी

अगला लेख