अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस पर विशेष: चाय एक महबूबा सी....

सेहबा जाफ़री
इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है......जिसके बगैर आगाज़े सुबह ना हो, जिसके बगैर दिन ना ढले, जिसके बगैर तन्हाइयां बुझी बुझी लगे, और जो नज़दीक हो तो अपना आप मुकम्मल लगे। जी हां! उसी का नाम  है चाय. वही जिसके बगैर हम ना रिश्तों की कल्पना कर पाएं, ना गपियाने की. ना लम्बी दोपहर के काटने का कोई बहाना हो ना स्टडी से थक आए ज़हन का कोई ठिकाना हो। सच जिसके बगैर कायनात का हर रंग फीका हो, ज़िन्दगी रुकी रुकी सी लगे,वही तो है चाय...
 
मां को चाय बिलकुल पसंद नहीं, पापा सुबह चाय की जगह छाछ पीते हैं, अक्सर जब हम भाई बहन चाय पीतें हैं, दोनों नाक भौंह सिकोड़ते हुए कहते हैं, "नशीले! हमारे बच्चे हैं यह!"  "पता नहीं, अस्पताल में बदल गए शायद!" 
 
दोनों ही मुस्कुराते हुए इस नतीजे पर पहुंचते हैं। बाजी को किसी के हाथ की नहीं जमती, सो बड़े मज़े हैं, वह जल्दी उठ गई तो सुबह से शाम तक चाय की छुट्टी, कोई मुझसे नहीं कहेगा, "गुडिया! जाओ चाय बना लो, मंझली और चाय के इश्क के किस्से बड़े मशहूर हैं, जब बड़े मामू ने अपने बेटे के लिए उसका प्रपोज़ल मांगा तो उस वक्त वह चाय पी रही थी, वक़ार भाई ने जब बड़ी अदाओं से उन्हें बताया कि 'फुप्पी जान से अब्बू उन्हें वकार भाई के लिए मांग रहे हैं' तो जवाब में पूरा ग्लास वह भी चाय का, उन्होंने वकार भाई पे दे मारा. शादी तो खैर बहना की गैरों में हुई पर, वक़ार भाई के टखने पर उस ग्लास का निशान जूं का त्यूं है।
 
 बड़े भैया को कॉफी ज्यादा पसंद है, पर रोज़े अब्र और शब् ए माहताब में दिल चाय पर ही आता है, खुद बनाते भी हैं और सब भाई बहनों को पिलाते भी हैं। छोटा भैया बचपन में ही दूध को तलाक दे चुका था, और उसके साथ ही चाय एक महबूबा सी लग गयी थी, अक्सर स्कूल से आकर चाय मांगता तो मां कहती, 'चाय नहीं मिलेगी, खाना खाओ पहले', जवाब में वह मुस्कुराते हुए मां के गले में बाहें डाल कहता, "चाय बिना चैन कहां रे!"  मां पट भी जाती थी, अमूमन अम्माएं ऐसी ही होती हैं। 
 
मेरी कोई फ्रेंड आती जनाब चाय लेकर हाज़िर! सीमा स्मिता से लगा कर कीर्ति सबको अपने हाथों चाय बना कर दी है इसने, बदले में कम भी कहां पड़ा!  
 
इसके दोस्त कितने नालायक थे, ऑर्डर से, लाड़ से ,मान से या मनव्वल से मुझसे चाय बनवा ही लेते थे, प्रदीप भैया, गोपाल भैया, शैलेष भैया, गौरव भैया, सचिन भैया, वैभव भैया, फरीद भैया, विक्टर, प्रवीन, छोटू सिंधी और भैयाओं की नाख्त्म होने वाले फहरिस्त और शाम की चाय के धमाल। 
 
कोई लड़की सेट करनी है, दिलशाद का घर, और चाय का टाइम, किसी को पीटने का प्रोग्राम बनाना है, शाम पांच बजे दिलशाद का घर और चाय का टाइम, किसी की गर्ल फ्रेंड के बिछड़ने का मातम शाम को चाय के वक़्त दिलशाद के घर। अब तो सब ज़िन्दगी की दौड़ धूप में उलझे हैं, सबके बीबी बच्चे हैं नाखतम होने वाले काम हैं, पर साल में एकबार ज़रूर मिलते हैं सब, वही दिलशाद का घर चाय का टाइम। दिलशाद (छोटा भाई) और चाय अब एक दूसरे के पर्याय थे, प्रदीप भैया की मम्मी को पता था, दिलशाद आने वाला है, चाय ज़रूर बनेगी, अच्छा गुडिया भी आ रही है, चाय बढ़ा लो, और बारिश के मौसम में घर का लैंड लाइन खनखना उठता, "गुडिया! हम सब आ रहे हैं, जोशी के पकौड़े लेकर, चाय बना ले बेटू! 
 
शाम को अक्सर, "ए भैया! कल मैंने बनाई थी, आज तेरा नंबर है, "ओये! आज मेरा नहीं, भैया का टर्न है" चल बढ़ ले यहां से, मै वे नहीं बनाने की!  इतने में पिम्पले क्लास से लौट कर घर में दाखिल होती कीर्ति "लाइए भैया! मै बना दूं," करके खुद ही चाय बना देती थी. शाम की चाय के साथ भेल, मेरी परीक्षा के टाइम पर गौरव भैया ही बनाते थे, रात को अक्सर रूम मै नाना मियां  के साथ शेयर  करती थी, अक्सर रात के दो या तीन बजे वे उठते और कहते, "मेरी बच्ची ! पढ़ रही ही, आ तेरे लिए चा बना दूं!" 
 
मैं जवाब में मुस्कुराते हुए उठती नाना मियां को वॉशरूम ले जाती, पानी पिलाती, वुजू करवाती और तहज्जुद गुज़ार नाना मियां के मुसल्ले पर एक प्याली चाय रख जाती, गोयां यह नाना मियां का चाय पीने के लिए कोई इशारा हो। एक दिन मैंने मां से पूछा 'नाना मियां ऐसा क्यों करते हैं, जवाब में मां की आंखें गीली हो गई, कहने लगीं, "बेटे वह दौर शदीद ग़रीबी का था, घर में गैस नहीं था, मै बीएससी कर रही थी, और मुझे स्टोव जलाना नहीं आता था, अब्बू जी चार बजे उठ कर मेरे लिए चाय बनाते थे, आज मै जो कुछ हूं सिर्फ उनकी कुर्बानी और मोहब्बत की वजह से वर्ना, 6 बेटियों के बाप ने अगर छटी बेटी को नहीं पढाया होता तो?  जवाब में मेरी भी आंखें भीग गई। मैं जब तक नाना मियां के साथ रही, अपने हाथों से उन्हें चाय पिलाती रही, अम्मा का कर्ज़ समझ कर और बदले में नाना मियां ने मुझे हमेशा एक दुआ दी, "अल्लाह ! मेरे इस बच्चे को सूरज सा मुनव्वर कर, और चांद सा नूरानी कर दे." नाना मियां की दी हुई दुआ घर में सबको रट गई थी, जब भी मैं उन्हें चाय की प्याली से तश्तरी में चाय डाल कर देती, मेरा भाई चुहल करता, "अल्लाह इस लडकी को चुड़ैल सा चीपड़ा, और सिंगी गाय सा भारी......" फिर तो हमारी वह फ्री स्टाईल होती कि बस ..!!!
  
 
चांदनी रातों में चाय का कप थामे हम तीनों भाई बहन सियारों की तरह छत पर बैठ चांद तांकते, नई ग़ज़लों पर तब्सिरे होते, जगजीत साहब, गुलाम अली साहब, मेंहदी हसन साहब या अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन साहब की आवाज़ का जादू धीमे-धीमे चलता रहता, बारिश या सर्दी की कोहरे वाली कितनी सुबह हैं जब ज़फर भाई को साथ ले, अपनी अपनी गाड़ियां उठा, थर्मस में चाय डाल हम लॉन्ग राइड पर निकल जाते थे। 
 
 चाय गोया वह बुढिया थी, जिसने हमें रोते हंसते, गाते झूमते हर रंग में देखा था. कितनी झील सुबहें, नील शामें, हम और चाय बस!!!! 
 
और अब! होने वाले मियां ने फरमान भेजा है, I Hate TEA  ऐसे कैसे हो सकता है!!!
 
मुझे मेरा लिखा एक शेर याद आ गया,

तुझ से बिछड़ कर डूबती, चाय के प्यालों में शाम 
हमने यूं गम को भुला कर मुस्कुराया देर तक..."
 
चाय के लिए मेरी मोहब्बत जोश मारने लगी, मुझे कुछ करना होगा.
 
घर में कोई नहीं था, हमने भी मौक़ा देख उन्हें चाय पे बुलाया, कान के नीचे कट्टा अड़ाया और खुले लफ़्ज़ों में समझा दिया है, "बचपन से क्या पिया सुबह! अरे चाय ही पी ना! अरे 2 दिन से कॉफी क्या मिली मियां अंगरेज़ हो गए!!! आज चाय को कह रहे हो कल हमें कहोगे,I Hate YOU मियां! हम तो चाय पिएंगे वक्त बेवक्त पिएंगे, हमसे शादी करनी हो तो चाय से मोहब्बत करनी होगी, वरना, टीमटाम उठाओ, हमारे जैसी बीबी का मियां होने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए हां, अभी तो बेचारे उठ कर गए ही हैं, बड़े रोमांटिक मूड से आए थे, और बड़े बुझे बुझे जा रहे हैं, हम मूड ठीक करने के लिए चाय बनाने जा रहे हैं, उसके बाद सोचेंगे इनका क्या करना है....    

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