अहंकार हार गया और राहुल जीत गए

फ़िरदौस ख़ान
अहंकार को एक दिन टूटना ही होता है। अहंकार की नियति ही टूटना है। इतिहास गवाह है कि किसी का भी अहंकार कभी ज़्यादा वक़्त तक नहीं रहा। इस अहंकार की वजह से बड़ी-बड़ी सल्तनतें नेस्तनाबूद हो गईं। किसी हुकूमत को बदलते हुए वक़्त नहीं लगता। बस देर होती है अवाम के जागने की। जिस दिन अवाम बेदार हो जाती है, जाग जाती है, उसी दिन से हुक्मरानों के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं, उनका ज़वाल (पतन) शुरू हो जाता है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी यही तो हुआ। यहां अहंकार हार गया और विनम्रता जीत गई।

 
चुनाव नतीजों वाले दिन शाम को हुई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में राहुल गांधी ने कहा कि हम किसी को देश से मिटाना नहीं चाहते। हम विचारधारा की लड़ाई लड़ेंगे। मैं मोदीजी का धन्यवाद करता हूं जिनसे मैंने यह सीखा कि एक पॉलिटिशियन होने के नाते मुझे क्या नहीं कहना या करना चाहिए। ये राहुल गांधी का धैर्य, विनम्रता और शालीनता ही है कि उन्होंने विपरीत हालात का हिम्मत से मुक़ाबला किया।

 
जब भारतीय जनता पार्टी द्वारा उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए गए, चुनावों में नाकामी मिलने पर उनका मज़ाक़ उड़ाया गया, उनके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया, तो राहुल गांधी ने कभी अपनी तहज़ीब नहीं छोड़ी, अपने संस्कार नहीं छोड़े। उन्होंने अपने विरोधियों के लिए भी कभी अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने मिज़ोरम और तेलंगाना में जीतने वाले दलों को मुबारकबाद दी। चुनावों में जीतने वाले सभी उम्मीदवारों को शुभकामनाएं दीं। अहंकार कभी उन पर हावी नहीं हुआ।

 
विधानसभा चुनावों में जीत का श्रेय उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दिया। उन्होंने कहा कि उनके कार्यकर्ता बब्बर शेर हैं। राहुल गांधी में हार को क़ुबूल करने की हिम्मत भी है। पिछले चुनावों में नाकामी मिलने पर उन्होंने हार का ज़िम्मा ख़ुद लिया। ये सब बातें ही तो हैं, जो उन्हें महान बनाती हैं और ये साबित करती हैं कि उनमें एक महान नेता के सभी गुण मौजूद हैं। अमूमन देखा जाता है कि जब कोई पार्टी सत्ता में आ जाती है, तो उसे घमंड हो जाता है। राजनेता बेलगाम हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि सत्ता उनकी मुट्ठी में है, वे जो चाहें कर सकते हैं। उन्हें टोकने, रोकने वाला कोई नहीं है।

 
साल 2014 के आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे। उन्हें ख़ूब सब्ज़बाग़ दिखाए थे, लेकिन सत्ता में आते ही अपने वादों से उलट काम किया। भारतीय जनता पार्टी ने महंगाई कम करने का वादा किया था, लेकिन उसके शासनकाल में महंगाई आसमान छूने लगी। भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर रोक लगाने का वादा किया था, लेकिन आए-दिन महिला शोषण के दिल दहला देने वाले मामले सामने आने लगे।

 
भारतीय जनता पार्टी ने किसानों को राहत देने का वादा किया था, लेकिन किसानों की ख़ुदकुशी के मामले थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। किसानों को अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन रोज़गार देना तो दूर, नोटबंदी और जीएसटी लागू करके जो उद्योग-धंधे चल रहे थे, उन्हें भी बंद करने का काम किया है। जो लोग काम कर रहे थे, वे भी रोज़ी-रोटी के लिए तरसने लगे।

 
भारतीय जनता पार्टी की सरकार जो भी फ़ैसले ले रही है, उनसे सिर्फ़ बड़े उद्योगपतियों को ही फ़ायदा हो रहा है। ऑक्सफ़ेम सर्वेक्षण के मुताबिक़ पिछले साल यानी 2017 में भारत में सृजित कुल संपदा का 73 फ़ीसदी हिस्सा देश की सिर्फ 1 फ़ीसदी अमीर आबादी के पास है। राहुल गांधी ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल भी किया था। ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं और उनकी सरकार पर अमीरों के लिए काम करने और उनके कर्ज़ माफ़ करने को लेकर लगातार हमला करते रहे हैं। इतना ही नहीं, भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुए राफ़ेल लड़ाकू विमान सौदे पर भी राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।

 
दरअसल, एक तरफ़ केंद्र की मोदी सरकार अमीरों को तमाम सुविधाएं दे रही है, उन्हें करों में छूट दे रही है, उनके कर माफ़ कर रही है, उनके क़र्ज़ माफ़ कर रही है, वहीं दूसरी तरफ़ ग़रीब जनता पर आए दिन नए-नए कर लगाए जा रहे हैं, कभी स्वच्छता के नाम पर, तो कभी जीएसटी के नाम पर उनसे वसूली की जा रही है। खाद्यान्नों और रोज़मर्रा में काम आने वाली चीज़ों के दाम भी लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। मरीज़ों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है। दवाओं, यहां तक कि जीवनरक्षक दवाओं और ख़ून के दाम भी बहुत ज़्यादा बढ़ा दिए गए हैं। ऐसे में ग़रीब मरीज़ कैसे अपना इलाज कराएंगे, इसकी सरकार को ज़रा भी फ़िक्र नहीं है। सरकार का सारा ध्यान जनता से कर वसूली पर ही लगा हुआ है। वैसे भी प्रधानमंत्री ख़ुद कह चुके हैं कि उनके ख़ून में व्यापार है।

 
ऐसे मुश्किल दौर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अवाम के साथ खड़े हैं। वे लगातार बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की दुर्दशा, महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसक वारदातों और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अलख जगाए हुए हैं। अवाम को भी समझ में आ गया है कि उनसे झूठे वादे करके उन्हें ठगा गया इसलिए अब जनता उन वादों के बारे में सवाल करने लगी है। जनता पूछने लगी कि कहां हैं वे अच्छे दिन जिसका इन्द्रधनुषी सपना भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें दिखाया था। कहां हैं वे 15 लाख रुपए जिन्हें उनके खाते में डालने का वादा किया गया था। कहां है वह विदेशी कालाधन जिसके बारे में वादा किया गया था कि उसके भारत में आने के बाद जनता के हालात सुधर जाएंगे।

 
अवाम अब जागने लगी है। इसी का नतीजा है कि उसने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को उखाड़ फेंका और कांग्रेस को हुकूमत सौंप दी। अवाम राहुल गांधी पर यक़ीन करने लगी है। वह समझ चुकी है कि कांग्रेस ही देश की एकता और अखंडता को बनाए रख सकती है। कांग्रेस के राज में ही सब मिल-जुलकर व चैन-अमन के साथ रह सकते हैं, क्योंकि कांग्रेस विनाश में नहीं, विकास में यक़ीन रखती है। जनता अब बदलाव चाहती है।
 

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