राहुल गांधी की देश में निकाली जा रही 'भारत जोड़ो यात्रा' कांग्रेस पार्टी की कोई अधिकृत यात्रा नहीं है, बार-बार इस बात को दोहराया जा रहा है। न इस यात्रा में केवल कांग्रेसी ही शामिल नहीं हो रहे हैं, बल्कि आम आदमी भी अपनी भागीदारी कर रहा है।
यात्रा को मिल रहे भारी जनसमर्थन और जन जुड़ाव से कांग्रेस खुश है। लेकिन, यह तय है कि इस यात्रा से कांग्रेस को फायदा हो या न हो, लेकिन राहुल गांधी को निजी तौर पर फायदा जरूर होगा। इस यात्रा के बाद सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी भाजपा के नरेंद्र मोदी को टक्कर दे पाएंगे! क्या कांग्रेस पार्टी इस यात्रा के सहारे भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त दे पाएगी! फ़िलहाल इस संभावना पर कोई दावा नहीं किया जा सकता। क्योंकि, भारतीय मतदाताओं का मौन बहुत असरदार होता है। राहुल गांधी की यात्रा को जिस तरह का समर्थन मिल रहा है, अभी उसके असर का मूल्यांकन करना मुश्किल है।
राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहते हुए जो काम नहीं कर पाए वह उन्होंने इस भारत जोड़ो यात्रा को निकालकर कर दिखाया है। वह काम है मृत पड़ी कांग्रेस पार्टी में जान फूंकने का, जो उन्होंने कर दिया। गौरतलब है कि 7 सितम्बर 2022 से प्रारंभ हुई राहुल गांधी की कन्याकुमारी से भारत जोड़ो पदयात्रा 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरती हुई 3500 किमी का रास्ता नापेगी। यह पदयात्रा लोकतंत्र और संविधान को बचाने की यात्रा है। जैसा कि राहुल गांधी खुद कह रहे हैं।
कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली जा रही राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' का मंतव्य चाहे जो भी रहा हो, पर उनकी इस यात्रा को मिल रहे भारी जनसमर्थन को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस पूरी यात्रा में केवल दो ही ऐसे राज्य है जहां कांग्रेस शासित हैं। अभी तक जिन राज्यों से भी यात्रा गुजरी, वहां से जिस तरह से यात्रा को जनसमर्थन मिला, उससे दो बातें एकदम साफ हो गई कि राहुल गांधी को देखने-सुनने के लिए जनता लालायित है। यूं कहें कि जिस राहुल गांधी को अब तक भाजपा 'पप्पू' कहती आई है। इस यात्रा से उनकी ये छवि तो बदली है।
इस पूरी यात्रा में राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी द्वारा गढ़ी गई अपनी छवि से उलट ही नजर आए। अपनी बात कहने और सही तरीके से जनता तक पहुंचाने का जिस कौशल के साथ बिना विपक्षी नेताओं पर निशाना साधकर उन्होंने अपनी बात छोटे तबकों तक अपनी पहुंचाई,वे उनके परिपक्व होने का सबूत हैं। उनके अधिकार की बात कर उन्होंने यह भी अहसास जता दिया कि वे देश के तीन पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार वाले राहुल नहीं, बल्कि उनके बीच के ही व्यक्ति है। वो उनके परिवार का वो सदस्य है, जो उनके दुख तकलीफ को महसूस कर रहा है। उनकी बात देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर में उठाना चाहता है, लेकिन उसकी आवाज को दबा दिया जाता है।
इंदौर की जनसभा में जब उन्होंने अपना माइक बंद कर भाषण दे कर इसका प्रदर्शन किया तो बजी तालियां इसकी गवाह थी कि राहुल को अब तक जो पप्पू कह और समझ रहे थे वे गलत थे। इतना ही नहीं राहुल गांधी ने अपनी इस यात्रा से अनेक स्थानों पर मीडिया से रूबरू भी हुए और बड़ी ही साफगोई से उनके प्रश्नों का सटीक उत्तर भी दे कर इस बात को भी साबित किया कि अपनी दादी और पिता को राजनीति में खोने के बाद उनके मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहा। वे देश में नफरत और जाति, धर्म, वर्ग भेद से उपजी अलगाववादी ताकतों को जवाब देने और महंगाई, बेरोजगारी, नफरत और विभाजन की राजनीति के खिलाफ जन जागरण अभियान पर निकले हैं।
उन्होंने जनता की अदालत में देशहित में इस उठाया है। यही कारण है कि उन्होंने मिडिया को भी गोदी मीडिया कहने में कोई कोताही नहीं की। वाबजूद इसके मीडिया ने उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया। राहुल इस यात्रा में मंदिर सहित हर जगह पर जा रहे है है जो जनसमुदाय की आस्था और भावनाओं से जुडा है। राहुल की ये यात्रा भले ही राजनितिक तौर पर न जानी जाए मगर इस यात्रा ने उनके व्यक्तित्व को निखार दिया है। निश्चित ही इस यात्रा और आगामी चुनाव में अभी बहुत समय है। इसलिए यात्रा का असर आगामी चुनाव पर कैसा होगा यह आंकलन करनी अभी बहुत जल्दी होगा।
राजनीति से परे इस यात्रा से निश्चित ही राहुल गांधी एक नए गांधी बन कर सामने आएंगे। देश को 21वी सदी में नया भारत बनाने के उनके स्वर्गीय पिता के सपने को साकार करने के लिए वे नए भारत के नए गांधी बनकर उभरेंगे।
Edited: By Navin Rangiyal नोट : आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्यक्त विचारों से सरोकार नहीं है।