UP में क्यों हारी BJP, हार के 9 कारण

हिमा अग्रवाल

शुक्रवार, 7 जून 2024 (08:23 IST)
9 reasons for BJP's defeat in Uttar Pradesh : उत्तर प्रदेश में BJP को करारा झटका लगा है। लोकसभा चुनावों में भाजपा को सबसे अधिक नुकसान यूपी में ही हुआ। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं। दिल्ली की कुर्सी को पाने का रास्ता इसी प्रदेश से होकर गुजरता है। यूपी में समाजवादी पार्टी 5 सीटों से 37 सीटों पर और कांग्रेस 1 सीट से 6 सीट पर पहुंच गई। भाजपा ने राम मंदिर और धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे उत्तर प्रदेश में 80 में से 80 सीटों का लक्ष्य रखा था, लेकिन वह 2019 के बराबर 33 सीटों पर सिमट गई, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे 62 सीटें मिलीं थीं।

सबसे बड़ी बात है कि बीजेपी प्रभु राम की नगरी अयोध्या (फैजाबाद) भी हार गई, बल्कि अयोध्या मंडल में भी उसके हाथ कुछ नहीं लगा। खुद प्रधानमंत्री मोदी कुछ राउंड तक कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय से पीछे चलते रहे। हालांकि वे जीत गए लेकिन उनकी जीत का अंतर 2014 और 2019 की तुलना में बहुत घट गया। प्रदेश में भाजपा के कई दिग्गज चुनाव हार गए। यहां तक कि अमेठी में स्मृति ईरानी को किशोरी लाल शर्मा ने बड़े अंतर से हरा दिया।

1. संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा फंस गई
उत्तर प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए कई कारण हैं, लेकिन कारणों में संविधान और आरक्षण का मसला है। विपक्ष की ओर से जनता से कहा गया कि अगर भाजपा फिर से सरकार में आई तो वह संविधान में बदलाव कर देगी। इसके साथ ही ओबीसी और एससी-एसटी आरक्षण को खत्म कर देगी।

इसको भाजपा बेअसर करने में नाकाम रही है। अपनी रैलियों और जनसभाओं में नरेंद्र मोदी और अमित शाह बार-बार कहते रहे कि यह विपक्ष की ओर से फैलाया जा रहा झूठ है। भाजपा ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली है, लेकिन उनके प्रयास इसलिए असफल रहे क्योंकि कई दिग्गज नेताओं ने यह बात कई जगह कही। इससे दलित और अति पिछड़ा वर्ग बिदक गया।

2. पार्टी की अंतर्कलह और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करना
पार्टी की अंतर्कलह और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करना हाईकमान और पार्टी को भारी पड़ा। कहीं प्रत्याशी को बदले जाने तो कहीं पुराने प्रत्याशी को न बदले जाने से वहां के स्थानीय नेता और कार्यकर्ताओं में गुस्सा रहा। साथ ही दल बदलकर आए नेताओं को तरजीह देना भाजपा के काडर को रास नहीं आया। इससे बीजेपी पर संकट बढ़ गया।

स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं में उत्साह अपेक्षाकृत कम था, वहीं यह खबरें भी उछलती रहीं कि प्रदेश का उच्च नेतृत्व भी केंद्रीय नेतृत्व से खफा होने की वजह से भीतर ही भीतर नुकसान दे गया। पूरे प्रदेश में क्षत्रियों का खफा हो जाना भी इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि अमेठी में स्मृति ईरानी ने भी कार्यकर्ताओं का पूरा साथ न मिलने की बात भी कही है। इसी तरह मुजफ्फरनगर से हारे केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भी स्थानीय फायर ब्रांड नेता संगीत सोम की अदावत किसी से छिपी हुई नहीं है।

3. केंद्र सरकार से नाराज किसानों का गुस्सा
केंद्र सरकार की नीतियों से नाराज लंबे समय तक आंदोलन करते रहे किसानों का गुस्सा भी भाजपा की हार की एक बड़ी वजह है। किसानों को लाभकारी मूल्य न मिलना, जे स्वामीनाथन की रिपोर्ट और खेती के लागत मूल्य के नित्य बढ़ते जाने से किसानों की कमर टूटने लगी और जब उन्होंने आंदोलन किया तो उनका दमन हुआ। बीजेपी के पतन की यह भी एक अहम वजह है।

4. महंगाई, बेरोजगारी और पेपर लीक जैसे मुद्दों का नुकसान
कमरतोड़ महंगाई का लगातार बढ़ता ग्राफ इन चुनावों में बड़ा मुद्दा था। आम आदमी का जीवनयापन मुश्किल हो जाने से भी सत्ता से दूर हो गए मतदाता। युवाओं को नौकरी न मिलना, बार बार पेपर लीक हो जाना और अग्निवीर लोकसभा चुनावों में छाए रहे। इसी वजह से जमीन पर भारी संख्‍या में युवा भाजपा से काफी नाराज दिखे।

5. राम भी बीजेपी के काम न आए
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राम मंदिर का उद्घाटन, काशी विश्वनाथ धाम के जीर्णोद्धार और कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह का मुद्धा खूब उठा। भाजपा ने नारा भी दिया कि काशी, अयोध्या का प्रण पूरा और अब मथुरा की बारी है। इसके बावजूद भाजपा हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में असफल रही। हिन्दू मतदाता जातियों में बंट गए।

वहीं, एनडीए के जो सहयोगी दल रहे, वो उत्तर प्रदेश में कुछ खास नहीं कर सके, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में। अपना दल एस और सुभासपा अपनी सीटें नहीं बचा पाए। पूर्वांचल की जनता ओबीसी बनाम ऊंची जाति वाले बयानों से तंग आ चुकी थी।

6. पप्पू-गप्पू की रणनीति आई काम
भले ही भाजपा के धुरंधर अखिलेश और राहुल को पप्पू और गप्पू की जोड़ी कह रहे थे, लेकिन इन दो लड़कों की जोड़ी और आपसी सूझबूझ ने उत्तर प्रदेश में धमाल मचा दिया। अखिलेश ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए टिकट दिए। कुछ सीटों पर उन्होंने आखिरी समय में टिकट भी बदले, जिनमें मेरठ और मुरादाबाद भी है। जिन उम्मीदवारों के टिकट कटे भी नाराज भी हुए, लेकिन प्यार से दुलारते हुए उन्होंने सबको मना लिया।

इसी तरह उम्मीदवार तय करते में कांग्रेस ने भी सावधानी बरती, भाजपा नेता राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए ललकार रहे थे, तब भी कांग्रेस शांत रही और अंतिम समय में किशोरी लाल का नाम सामने रखते हुए अपने पत्ते खोले। इसी तरह रायबरेली में राहुल गांधी का मास्टर स्ट्रोक, सीतापुर सीट पर भाजपा के बागी राकेश राठौर, सहारनपुर से इमरान मसूद, इलाहाबाद से रेवती रमण के बेटे उज्ज्वल रमण को टिकट देकर जीत हासिल की है।

7. पश्चिम से पूर्वांचल तक मुरझाया कमल
उत्तर प्रदेश में 2 लड़कों यानी राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी ने योगी-मोदी के अस्त्र-शस्त्र बेकार कर दिए। चुनावी पंडितों को बता दिया कि उनका गुणा-भाग का विश्लेषण पोंगा पंडितों जैसा है। यूपी में पश्चिम से पूर्वांचल तक कमल मुरझता गया, इसके पीछे की मूल वजह भारतीय जनता पार्टी भांपने में नाकाम रही।

इस बार सपा और कांग्रेस ने युवाओं की नस को पकड़ा, वहीं सपा का पीडीए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फार्मूला काम कर गया। भले ही भाजपा सनातन धर्म, मंगल सूत्र, मुजरा के वार करके हवा अपने पक्ष में करने की कोशिश करती रही, लेकिन जनता सब जानती है।

8. बाहुबलियों से गलबहियां भी काम न आईं
उत्तर प्रदेश में इस बार बाहुबली खुद तो चुनाव नहीं लड़ते दिखाई दिए, लेकिन उनकी भाजपा के साथ गलबहियां जौनपुर और फैजाबाद में भाजपा उम्मीदवार को जीत हासिल न करा सके। फैजाबाद के बाहुबली विधायक अभय सिंह भगवा खेमे में परिवार के साथ आ डटे, लेकिन वे भी कुछ असर नहीं डाल सके।

माना जा रहा था कि अभय सिंह फैजाबाद से उतारे गए भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह के लिए मददगार साबित होंगे, पर लल्लू सिंह पराजित हो गए। जौनपुर में बसपा से पत्नी का टिकट कटने के बाद धनंजय सिंह भाजपा से आ मिले और भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर के लिए प्रचार करने लगे, लेकिन वहां भी भाजपा जीत दर्ज न कर सकी। इस बार जनता ने बाहुबलियों के आगे घुटने नहीं टेके।

9. संगठन को करनी होगी हार की समीक्षा
भाजपा के दिग्गज नेताओं का कहना है कि कास्ट के आधार पर इस बार चुनाव हुए हैं, विपक्ष ने मतदाताओं को गुमराह किया है, लेकिन मोदीजी को इन सबके बाद भी जनादेश मिला है और वे प्रधानमंत्री बन रहे हैं, लेकिन भाजपा नेता मानते हैं कि वे जनता कि नब्ज पकड़ नहीं पाए, अपने ने बाहर से साथ दिया, लेकिन अंदर से घात किया, जिसके चलते कई सीटों पर हार हुई है, जिन बूथों पर वोट कम पड़े, संयोजक और विधानसभा पीछे हुई, वहां संगठन को समीक्षा करनी होगी।

इस बार पार्टी के बड़े नेताओं को भी डेंट लगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जैसे बड़े नेताओं के जीत की मार्जिन में भारी कमी आई है। चुनाव लड़ने वाले 7 केंद्रीय मंत्री और प्रदेश सरकार के चार में से 2 मंत्री भी चुनाव हार गए। कई सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को कड़ा संघर्ष का भी सामना पड़ा है।

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