कानपुर। पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी से जुड़ी कुछ यादें डीएवी कॉलेज के 74 वर्षीय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अमरनाथ द्विवेदी ने बताया की अटल जी डीएवी में 1945 से लेकर 49 तक शिक्षा ग्रहण की, यहां पर वह पहले दो साल में राजनीति शास्त्र से परास्नातक किया।
इसके बाद दो साल तक एलएलबी किया, लेकिन उनको संघ के काम से इसी दौरान लखनऊ जाना पड़ा। जिससे एलएलबी बीच में ही छोड़ दिए। लेकिन अटल जी के साथ उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एलएलबी की पूरी पढ़ाई करके गए।
कहा, डीएवी छात्रावास के कमरा नम्बर 104 में अटल जी अपने पिता जी के साथ रहते थे। अटल जी राजनीति विज्ञान के कमरा नम्बर 19 और 20 में पढ़ाई करते थे। बताया कि अटल जी बहुत ही साधारण और सरल और हंसमुख स्वाभाव के व्यक्ति थे।
उनका व्यक्तित्व बहुत ही सहज था। हर किसी से ऐसे घुल मिल जाते थे मानो क्या कहे। उन्होंने बताया कि अक्सर आरएसएस की बैठकों में उनसे मुलाकात हो जाया करती थी। 1971 में अटल जी को छात्र संघ के शपथ समारोह के लिए आमंत्रित किया था।
जबकि उस वक्त छात्र संघ का उद्धघाटन करने के लिए कोई तैयार नहीं होता था। उस समय हम सभी ने आरएसएस के प्रचारक अशोक सिंहल से अनुरोध किया तब अटल जी यहां आए, लेकिन जब अटल जी कार्यक्रम में दीप प्रज्वलित किया तो इस बीच कार्यक्रम का विरोध कर रहे छात्रों ने नारेबाजी शुरू कर दी।
उसके बाद भी उन्होंने अपना भाषण जारी रखा उन्होंने कहा कि ‘दीपक जल चुका है अब ये बुझनेवाला नही है’ उसके बाद हुड़दंग कर रहे लोगों को बाहर कर दिया गया और अटल जी को सुनने के लिए दूर दराज से लोग आए हुए थे। उनका भाषण सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो उठे थे।
ऐसी शादियां होती तो आज हम कुंवारे न होते : वर्ष 1977-78 में फूलबाग स्थित एलपी इंटर कॉलेज में यज्ञसैनी वैश्य समाज ने 114 जोड़ों का सामूहिक विवाह का आयोजन किया था। उसमें अटल जी को भी आमंत्रित किया गया था और वह आए भी।
कहा उनका स्वभाव बड़ा ही हसमुख और मजाकिया अंदाज में रहता था इसीलिए समारोह को देखते हुए हंसी भरे और ठिठोले अंदाज में कहा कि यदि हमारे छात्र जीवन में ऐसी शादियां होती तो आज हम कुंवारे न होते।
उनकी ये बाते सुनकर हजारो की संख्या में बैठे लोग हंस पड़े। बड़े ही साधारण और खाने पीने के शौकीन थे भोजन के बाद उन्हें मीठा बहुत पसंद था। बाबा घाट में अपने छात्र मंडली के साथ घण्टों वहां चौपाल लगाते थे।
नयागंज में ठेले पर कचौड़ी खाया करते थे, कलक्टरगंज हठिया में जब हंसी की ठिठोली के साथ कई जुमले बोलते थे तो लोग उन्हें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे। जैसे ही वह कई लोगों के साथ बैठते उठते थे तो कहते थे हटिया खुली बाजार बंद, झाड़े रहो कलक्टरगंज, उनके हास्य व्यंग सुनकर शाम का रंग और बढ़िया हो जाता था।
अटल जी प्रत्येक गुरुवार को जनसंघ के अनुषांगिक संगठनों के साथ चर्चा करते थे। उनकी चर्चा में वे भी पहले से ही पहुंच जाया करते थे। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी अटल जी जैसा दुनिया में और न ही बीजेपी में नही हो सकता यह एक अपूरणीय क्षति है।