सिर्फ विरोध के लिए सार्वजनिक रूप से गाय को काटना न सिर्फ शर्मनाक और निंदनीय है बल्कि घोर अमानवीय भी है। यह घटना केरल के कन्नूर में हुई और इसे अंजाम दिया युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने। दरअसल, उन्होंने यह सब केन्द्र की मोदी सरकार के उस नियम के खिलाफ किया, जिसके तहत गायों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाई है। कांग्रेस यह भी जानती है कि गाय के साथ देश के बहुसंख्यक वर्ग की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि चोरी-छिपे गोवध की घटनाएं होती रही हैं, लेकिन इस तरह सार्वजनिक रूप से गाय काटकर कांग्रेस कार्यकर्ता और वामपंथी कार्यकर्ता क्या साबित करना चाहते हैं?
जैसा कि होना ही था, भाजपा ने इस घटना के बाद कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की, वहीं कांग्रेस ने इस मामले में शामिल कार्यकर्ताओं को निलंबित कर इस पूरे मामले में लीपापोती करने की कोशिश की। लेकिन, यह घटना उन लोगों पर भी सवाल छोड़ गई है, जिन लोगों ने जो देश में असहिष्णुता के नाम पर सम्मान लौटाने की झड़ी लगा दी थी। दादरी कांड के समय दो दर्जन से ज्यादा लेखकों, कलाकारों ने अपने सममान लौटा दिए थे। मगर इस मामले में एक भी व्यक्ति ऐसा सामने नहीं आया, जो बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कोई पदक लौटाता या अपना सम्मान वापस करता।
इससे एक बात तो साफ होती है कि ऐसे लोगों का सहिष्णुता और असहिष्णुता से कोई लेना-देना नहीं होता। असल में उनका उद्देश्य उस राजनीतिक विचारधारा का विरोध करना होता है, जिसे वे नापसंद करते हैं। या फिर ऐसा करके परोक्ष रूप से वे उस विचारधारा का समर्थन करते हैं, जिससे या तो वे जुड़े हुए हैं या फिर उन्हें उससे परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से फायदा मिला हो। हकीकत में उनका देश और समाज से कोई वास्ता नहीं होता। यदि वाकई होता तो अब तक इस घटना के विरोध में लाखों सुर बुलंद हो चुके होता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। ऐेसे में इस तरह के सवाल उठना जायज भी है।
कांग्रेस बैकफुट पर : इस घटना के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है। एक ओर जहां उसने कन्नूर कांड में शामिल कार्यकर्ताओं को निलंबित किया है। वहीं भाजपा मनोहर पर्रिकर और गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू की आड़ में भाजपा पर हमला किया है। कांग्रेस इस मामले में बहुत ही फूंक फूंक कर कदम रख रही है, क्योंकि यह मामला देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज से जुड़ा हुआ है और गाय हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा मुद्दा है। हालांकि इस मामले में सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया जा सकता है। देश की भौगोलिक स्थिति और विविधतापूर्ण संस्कृति को ध्यान में रखकर ही इस तरह के नियम बनाए जाने चाहिए।