'पति पिटाई' में इंदौर हुआ नंबर 1, एमपी में सबसे ज्यादा पिटते हैं पति...

सोमवार, 14 मई 2018 (14:17 IST)
जमाना बदल गया है, भारत में पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ मारपीट के मामले अधिक आते हैं लेकिन मध्यप्रदेश में आंकड़े बता रहे हैं कि महिलाओं के हाथों पिटने वाले पुरुष भी कम नहीं हैं और अब तो वे इस पिटाई की बाकायदा शिकायत भी करने लगे हैं। 
मध्य प्रदेश में अपराधों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई के लिए कुछ वर्ष पूर्व शुरू की गई सेवा 'डायल 100' के जनसंपर्क अधिकारी हेमंत शर्मा ने इस पर मिली शिकायतों के आधार पर बताया कि राज्य में औसतन हर माह 200 पति अपनी पत्नियों से पिटते हैं। 
 
इंदौर हुआ है नंबर 1: सफाई के लिहाज से तो इंदौर देश में अव्वल है ही, लेकिन मध्यप्रदेश में शहरों के लिहाज से देखें तो इंदौर पतियों की पिटाई के मामले में भी अव्वल है। यहां जनवरी से अप्रैल 2018 तक चार माह में 72 पतियों ने अपनी पत्नियों से पिटाई होने की शिकायत पुलिस में दर्ज करवाई। 
 
इसी तरह दूसरे स्थान पर रहते हुए भोपाल के 52 पतियों ने अपनी पत्नियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। इसी अवधि में पूरे प्रदेश में 802 पतियों ने पत्नी प्रताड़ना की शिकायत दर्ज करवाई है। 
 
पतियों की पिटाई की शिकायत का अलग सेक्शन : जनवरी 2018 से 'डायल 100' की टीम ने इस नंबर पर फोन करने वालों के लिए अन्य श्रेणियों के साथ ही 'बीटिंग हज्बंड इवेंट' की एक नई श्रेणी तैयार की। अब तक ये आंकड़े घरेलू हिंसा की वृहद श्रेणी में ही शामिल किए जाते थे और इनका अलग से कहीं उल्लेख नहीं किया जाता था। 
 
चार महीने में पिटे 800 पति: यूं भी सामान्य धारणा यह है कि घरेलू हिंसा केवल महिलाओं के साथ ही होती है। जबकि 'बीटिंग हज्बंड इवेंट' की श्रेणी बनने के बाद तस्वीर का दूसरा रुख भी सामने आया। शर्मा ने बताया कि 'डायल 100' ने जनवरी से प्रदेश में 'बीटिंग हस्बैंड इवेंट' और 'बीटिंग वाइफ इवेंट' की श्रेणी को घरेलू हिंसा की श्रेणी से अलग कर दिया। 
 
नतीजा यह रहा कि जनवरी 2018 से अप्रैल तक की अवधि में 'डायल 100' के प्रदेश स्तरीय नियंत्रण कक्ष में 802 पति घर में अपनी पिटाई की शिकायत दर्ज करवा चुके हैं। 
 
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के प्रफेसर अरविंद चौहान ने बताया कि घरेलू हिंसा का हर रूप निंदनीय है, लेकिन बदलते वक्त के साथ समाज में भी बदलाव आ रहा है। सदियों से अस्तित्व और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहीं महिलाएं अब तालीम, प्रचार माध्यमों और कानूनी अधिकारों की जानकारी के चलते प्रतिरोध करने लगी हैं। 
 
वैसे मध्यप्रदेश में बदलते आंकड़े देख भले ही हंसी आए पर हकीकत तो यही है कि नए जमाने में सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो रहा है। (भाषा)

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