प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में पहली बार होगी कृत्रिम बारिश, जानिए क्या है केजरीवाल सरकार का प्लान
गुरुवार, 9 नवंबर 2023 (00:54 IST)
Delhi government's big step regarding air pollution : दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बुधवार को कहा कि दिल्ली सरकार राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए इस महीने 'क्लाउड सीडिंग' के जरिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही है। राय ने आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिकों के साथ एक बैठक की, जिन्होंने बताया कि क्लाउड सीडिंग की कोशिश तभी की जा सकती है जब वातावरण में बादल हों या नमी हो।
मंत्री ने कहा, विशेषज्ञों का अनुमान है कि 20-21 नवंबर के आसपास ऐसे हालात बन सकते हैं। हमने वैज्ञानिकों से गुरुवार तक एक प्रस्ताव तैयार करने को कहा है जिसे उच्चतम न्यायालय को सौंपा जाएगा। राय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए केंद्र और राज्य सरकारों दोनों से मंजूरी प्राप्त करना समय के हिसाब से संवेदनशील मामला है।
कृत्रिम बारिश पर शोध करने वाले आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिकों ने 12 सितंबर को मंत्री के सामने एक प्रस्तुति दी थी। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि कृत्रिम बारिश कराने का प्रयास केवल तभी किया जा सकता है जब बादल हों या नमी उपलब्ध हो।
उन्होंने कहा, इस संबंध में भारत में कुछ कोशिशें की गई हैं जो तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में की गई थी। वैश्विक स्तर पर कृत्रिम बारिश पर शोध किया जा रहा है। मूल आवश्यकता बादल या नमी की होती है। भारत में कृत्रिम बारिश पर शोध किया जा रहा है लेकिन अभी तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
क्लाउड सीडिंग में संघनन को बढ़ावा देने के लिए पदार्थों को हवा में फैलाया जाता है जिसके नतीजतन बारिश होती है। क्लाउड सीडिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे आम पदार्थों में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) शामिल हैं।
इस तकनीक का उपयोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किया गया है, मुख्य रूप से वहां जहां पानी की कमी या सूखे की स्थिति होती है। अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल करने वाले देशों में शामिल हैं। क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता और पर्यावरण पर इसके प्रभाव को लेकर शोध और चर्चा जारी है।
प्रतिकूल मौसम संबंधी स्थितियों के साथ-साथ वाहनों से निकलने वाला धुआं, पराली जलाने, आतिशबाजी और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्रोतों की वजह से हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर में पहुंच जाती है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के विश्लेषण के मुताबिक, राष्ट्रीय राजधानी में एक से 15 नवंबर तक प्रदूषण चरम पर होता है और इसी समय पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले बढ़ते हैं।
बैठक में सभी राज्यों ने दिए सुझाव : वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए केंद्र ने यह निर्देश बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अगुवाई में हुई उच्चस्तरीय बैठक में दिए हैं। बैठक में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की सचिव लीना नंदन सहित कृषि, ऊर्जा और शहरी विकास मंत्रालय के सचिवों के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित सभी पड़ोसी राज्यों के मुख्य सचिव व डीजीपी, प्रदूषण बोर्ड से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
करीब तीन घंटे चली इस उच्च स्तरीय बैठक में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति से निपटने के फौरी और दीर्घकालिक उपायों पर भी लंबी चर्चा की गई। इस बीच सभी राज्यों ने अपने-अपने प्रस्ताव भी दिए।
18 अक्टूबर तक बंद रहेंगे स्कूल : दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के मद्देनजर सभी स्कूलों की दिसंबर की शीतकालीन छुट्टियों में फेरबदल किया गया है और यह अब 9 नवंबर से 18 नवंबर तक होंगी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली में ऐप आधारित टैक्सी के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी प्रभावशीलता की समीक्षा करने और आदेश जारी करने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में सम-विषम कार योजना लागू की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।
10 सिगरेट के बराबर : पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली के अनुसार, क्षेत्र में पांच से छह दिन और वायु गुणवत्ता गंभीर रहने की आशंका है। चिकित्सकों का कहना है कि दिल्ली की प्रदूषित हवा में सांस लेना एक दिन में लगभग 10 सिगरेट पीने के हानिकारक प्रभावों के बराबर है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर के वरिष्ठ सलाहकार राजेश चावला ने कहा कि लंबे समय तक उच्च स्तर के प्रदूषण के संपर्क में रहने से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याएं हो सकती हैं या बढ़ सकती हैं और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है। (इनपुट भाषा)
Edited By : Chetan Gour