मोदी सरकार द्वारा आठ नंवबर को हजार और पांच सौ के पुराने नोट बंद करने के बाद से ही देश मुद्रा की कमी से परेशान रहे। सरकार ने कहा है कि 30 दिसंबर तक सभी लोग बैंक में जाकर अपने पैसे जमा करा दे। लोगों से यह भी अपील की गई कि वे नकदी और उपयोग कम से कम करें और डिजिटल माध्यमों से भुगतान करें। आइए डालते हैं विमुद्रीकरण पर एक नजर...
क्या है विमुद्रीकरण : जब सरकार पुरानी मुद्रा (Currency) को कानूनी तौर पर बंद कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (Demonetization) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। हालांकि सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है, ताकि वे अमान्य हो चुके अपने पुराने नोटों को बदल सकें।
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की अर्थात विमुद्रीकरण की घोषणा की। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सरकार की इस घोषणा का समर्थन किया। इसके बाद सरकार 500 और 2000 रुपए के नए नोट भी बाजार में लेकर आई।
आरबीआई के अनुसार 31 मार्च 2016 तक भारत में 16.42 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट बाजार में थे, जिसमें से करीब 14.18 लाख रुपए 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे। 1938 में गठित भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी तक 10 हजार रुपए से अधिक का नोट जारी नहीं किया है।
विमुद्रीकरण क्यों : कालाधन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में संलग्न लोग नोटों को अपने पास ही रखते हैं। ऐसे में विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबंदी की जाती है। केन्द्र की मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबंदी से कालेधन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। हालांकि नोटबंदी के चलते आम आदमी को भी काफी मुश्किलों को सामना करना पड़ा। केन्द्र सरकार अपने इस फैसले से नकद लेन-देन को भी हतोत्साहित करने की कोशिश कर रही है। कई देशों में विमुद्रीकरण बेहद आम प्रक्रिया मानी जाती है।