Dr. Jayant Vishnu Narlikar passed away: प्रख्यात खगोल वैज्ञानिक, सरल तरीकों से विज्ञान को लोगों को रूबरू कराने वाले पद्मविभूषण से सम्मानित डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर (Dr. Jayant Vishnu Narlikar) का मंगलवार को पुणे में निधन हो गया। वे 86 वर्ष के थे। उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी। भारतीय विज्ञान जगत की जानी-मानी हस्ती डॉ. नारलीकर को व्यापक रूप से ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmology) में उनके अग्रणी योगदान, विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के उनके प्रयासों और देश में प्रमुख अनुसंधान संस्थानों की स्थापना के लिए जाना जाता था।
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार डॉ. नारलीकर ने देर रात नींद में ही आखिरी सांस ली और मंगलवार सुबह अपनी आंखें नहीं खोलीं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। हाल में पुणे के एक अस्पताल में उनके कूल्हे की सर्जरी हुई थी। उनके परिवार में 3 बेटियां हैं।ALSO READ: भारत ने विज्ञान के क्षेत्र में गढ़े हैं नए कीर्तिमान : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
उच्च अध्ययन के लिए वे कैम्ब्रिज गए थे : 19 जुलाई 1938 को जन्मे डॉ. नारलीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) परिसर में ही पूरी की, जहां उनके पिता विष्णु वासुदेव नारलीकर प्रोफेसर और गणित विभाग के प्रमुख थे। इसके बाद वे उच्च अध्ययन के लिए कैम्ब्रिज चले गए, जहां उन्हें 'मैथेमैटिकल ट्रिपोस' में 'रैंगलर' और 'टायसन' पदक मिला।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनको ख्याति प्राप्त हुई : वे भारत लौटकर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) (1972-1989) से जुड़ गए, जहां उनके प्रभार में सैद्धांतिक खगोल भौतिकी समूह का विस्तार हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त हुई। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 1988 में प्रस्तावित अंतर-विश्वविद्यालय खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी केंद्र (आईयूसीएए) की स्थापना के लिए डॉ. नारलीकर को इसके संस्थापक निदेशक के रूप में आमंत्रित किया।
वर्ष 2003 में अपनी सेवानिवृत्ति तक वे आईयूसीएए के निदेशक रहे। उनके निर्देशन में आईयूसीएए ने खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी में शिक्षण एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्टता केंद्र के रूप में दुनियाभर में ख्याति प्राप्त की। वे आईयूसीएए में 'एमेरिटस प्रोफेसर' थे। 'थर्ड वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज' ने 2012 में विज्ञान में उत्कृष्टता के उद्देश्य से एक केंद्र स्थापित करने के लिए डॉ. नारलीकर को पुरस्कार से सम्मानित किया।
वे अपनी विज्ञान आधारित कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं : अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के अलावा डॉ. नारलीकर अपनी पुस्तकों, लेखों और रेडियो/टीवी कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान को सरल रूप में लोगों तक पहुंचाने के लिए में भी प्रसिद्ध हुए। वे अपनी विज्ञान आधारित कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं। इन सभी प्रयासों के लिए 1996 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने उनके लोकप्रिय विज्ञान कार्यों के लिए उन्हें कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया था।
महज 26 वर्ष की उम्र में 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया : डॉ. नारलीकर को 1965 में महज 26 वर्ष की उम्र में 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2004 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया गया और महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 2011 में राज्य के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'महाराष्ट्र भूषण' से सम्मानित किया। भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था साहित्य अकादमी ने 2014 में क्षेत्रीय भाषा (मराठी) लेखन में अपने सर्वोच्च पुरस्कार के लिए उनकी आत्मकथा का चयन किया।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने भी याद दिया : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ ने कहा कि देश ने एक दूरदर्शी खगोल वैज्ञानिक और विज्ञान मर्मज्ञ को खो दिया है जिन्होंने 'गुरुत्वाकर्षण का हल्का पक्ष' और 'ब्रह्मांड के सात आश्चर्य' जैसे अपने लोकप्रिय कार्यों से मेरी पीढ़ी के लोगों को प्रेरित किया।
सोमनाथ ने कहा कि 'हॉयल-नारलीकर सिद्धांत' और आईयूसीएए की स्थापना सहित ब्रह्मांड विज्ञान में उनके अग्रणी योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। ब्रिटिश खगोलविद फ्रेड हॉयल और जयन्त विष्णु नारलीकर द्वारा प्रतिपादित 'हॉयल-नारलीकर सिद्धांत' गुरुत्व का एक 'मैक' सिद्धांत है, जो ब्रह्माण्ड का एक अर्द्धस्थाई अवस्था का मॉडल है।ALSO READ: CM मोहन यादव ने 31वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस का किया शुभारंभ
उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) द्वारा प्रारंभिक विज्ञान पुस्तकों के निर्माण सहित सार्वजनिक विज्ञान शिक्षा के लिए नारलीकर का समर्पण पीढ़ियों को प्रेरित करता रहा। सोमनाथ ने कहा कि एक सच्चे ज्योतिपुंज थे जिनकी विरासत चमकती रहेगी।
पुणे स्थित संस्थान ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में नारलीकर के निधन की घोषणा करते हुए कहा कि आईयूसीएए परिवार शोक में है। संस्था ने कहा कि उनका अंतिम संस्कार बुधवार को किया जाएगा।
जयराम रमेश ने महानतम खगोल भौतिकविदों में से एक बताया : कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने नारलीकर को दुनिया के महानतम खगोल भौतिकविदों में से एक बताया। रमेश ने 'एक्स' पर लिखा कि अपने डॉक्टरेट सलाहकार फ्रेड होयल के साथ मिलकर उन्होंने ब्रह्मांड विज्ञान की दुनिया में अपने अभूतपूर्व योगदान से सनसनी फैला दी। वे 1972 में टीआईएफआर से जुड़े और उसके बाद एक असाधारण मार्गदर्शक, शिक्षक, लेखक, विज्ञान संचारक और संस्था-निर्माता के रूप में उभरे। पुणे में 1988 में उन्होंने जिस विश्वस्तरीय इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) की स्थापना की और बाद में जिसे निर्णायक आकार प्रदान किया, वे उनकी उपलब्धियों, दूरदर्शिता और वास्तव में उनके व्यक्तित्व के लिए एक श्रद्धांजलि है।
One of the world's greatest astrophysicists Dr. Jayant Narlikar has just passed away.
He hailed from a very distinguished intellectual family and excelled in Cambridge Univ in the 1960s. Along with his doctoral adviser Fred Hoyle, he set the world of cosmology ablaze with his… pic.twitter.com/YjN6MUvvWF
उन्होंने कहा कि डॉ. नारलीकर विनम्रता के साथ असाधारण विद्वता का मिश्रण थे। रमेश ने योजना आयोग की पत्रिका 'योजना' के पांच जुलाई, 1964 के अंक में प्रकाशित एक लेख की तस्वीर भी साझा की। उन्होंने कहा कि यह उस प्रभाव को दर्शाता है जो उन्होंने तब डाला था जब वे पहली बार वैश्विक ख्याति में आए थे।
देवेंद्र फडणवीस ने निधन पर शोक जताया : महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा कि नारलीकर के निधन की खबर बहुत दुखद है। फडणवीस ने लिखा कि उन्होंने वैज्ञानिक विषयों पर साहित्य रचकर विज्ञान के प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फडणवीस ने कहा कि उन्होंने जटिल विषयों को आम पाठकों तक बहुत सरल शब्दों में समझाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने एक महान वैज्ञानिक और उतने ही महान लेखक को खो दिया है। मैं उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
ज्येष्ठ खगोल शास्त्रज्ञ आणि विज्ञान लेखक, महाराष्ट्र भूषण जयंत नारळीकर यांच्या निधनाचे वृत्त अतिशय दुःखद आहे.
वैज्ञानिक विषयात साहित्य निर्मिती करून विज्ञानाचा प्रसार करण्यात त्याची अत्यंत मोलाची भूमिका राहिली. त्यासाठी जागतिक पातळीवर त्यांना पुरस्कारांनी गौरवण्यात आले. खगोल… pic.twitter.com/1Tws7nMaVR
शरद पवार ने भी याद किया : पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान में योगदान देने वाले महाराष्ट्र के वैज्ञानिकों में नारलीकर को हमेशा सम्मान और आदर के साथ याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक जगत में हॉयल-नारलीकर सिद्धांत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
महाराष्ट्राचे सुपुत्र, आंतरराष्ट्रीय कीर्तीचे खगोलशास्त्रज्ञ आणि विज्ञान लेखक डॉ. जयंत नारळीकर यांच्या निधनाची बातमी अत्यंत वेदनादायक आहे.
राष्ट्रीय आणि आंतरराष्ट्रीय पातळीवर मराठी वैज्ञानिकांनी दिलेल्या योगदानात डॉ. नारळीकर यांचे नाव नेहमीच आदराने व सन्मानाने घेतले जाते.… pic.twitter.com/YvQix2EwM2
पवार ने कहा कि टीआईएफआर और आईयूसीएए में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को एक महत्वपूर्ण दिशा दी। पवार ने कहा कि नारलीकर के लेखन और व्याख्यान विज्ञान के प्रसार के लिए अमूल्य हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नारलीकर ने वैज्ञानिक सोच की वकालत की और अंधविश्वास का विरोध किया।(भाषा)(फोटो और ट्वीट्स सौजन्य : ट्विटर)