क्यों गलवान घाटी बनी हुई है हॉटस्पॉट, क्या हैं भारत-चीन विवाद के मुख्य कारण
मंगलवार, 16 जून 2020 (14:16 IST)
भारत और चीन के 1962 की लड़ाई के बाद निर्धारित की गई सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा या LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) कहा जाता है। डोकलाम विवाद के बाद ही से एलएसी पर हमेशा से ही भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने वाली स्थिति में रहती हैं। डोकलाम के पहले भी 2013 और 2014 में चुमार में ऐसी घटनाएं सामने आई थीं जिसमें संक्षिप्त भिड़ंत या हाथापाई और पत्थरबाजी रिपोर्ट की गई।
लेकिन, इस वर्ष अप्रैल से ही लद्दाख बॉर्डर यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर चीन की तरफ से इस क्षेत्र में सैनिक टुकड़ियों और भारी वाहनों सहित सैन्य साजोसामान भारी मात्रा में बढ़ा दिया गया था।
इसके बाद से मई महीने में सीमा पर चीनी सैनिकों की गतिविधियां तेज हो गई और चीनी सैनिकों को लद्दाख में सीमा का निर्धारण करने वाली झील में भी गश्त करते देखे जाने की बातें सामने आई थीं।
विवाद की गंभीरता के चलते कुछ दिनों पहले सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने सीमा का दौरा किया। परंतु इस पूरे मामले पर यह जानना जरूरी है कि आखिर क्या कारण है, जो बात इतनी बिगड़ गई।
सबसे बड़ा कारण है कि जब भारत ने जम्मू कश्मीर के ख़ास दर्जे को ख़त्म कर दो नए केंद्र शासित प्रदेशों के नक़्शे ज़ारी किए तो चीन इस बात से ख़ुश नहीं था कि लद्दाख के भारतीय क्षेत्र में अक्साई चिन भी था।
तनाव की बड़ी वजह पिछले कुछ सालों में भारतीय बॉर्डर इलाक़ों में तेज़ होता निर्माण कार्य भी हो सकती है। भारत द्वारा दुर्गम और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हवाईपट्टी और अन्य सामरिक निर्माण भी चीन की आंखों में खटक रहे हैं।
आखिर गलवान घाटी में ऐसा क्या है : पूर्वी लद्दाख स्थित गलवान घाटी अब एक हॉटस्पॉट बन चुकी है क्योंकि यहीं पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास भारत ने शियोक नदी से दौलत बेग ओलडी (डीबीओ) तक एक सड़क का निर्माण कर लिया है।
पूरे लद्दाख के एलएसी इलाक़े में ये सबसे दुर्गम इलाक़ा है जो अब भारतीय सैन्य परिवहन और सप्लाई लाइन के लिए बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
इकोनॉमिक वॉर : चीन के सेंट्रल बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने भारत के सबसे बड़े निजी बैंक 'एचडीएफ़सी' के 1.75 करोड़ शेयरों को खरीदने के बाद से ही भारत सरकार ने देश में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के नियमों में बदलाव कर दिया है।
नए नियम के तहत किसी भी भारतीय कंपनी में निवेश करने या अधिग्रहण करने से पहले सरकारी अनुमति लेना अब अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसा मुख्यत: सीमावर्ती देशों के लिए किया गया है। दरअसल भारतीय बाजार में चीन एक बड़ा हिस्सा रखता है और चीन की आक्रामक आर्थिक नीति पर इसका सबसे ज़्यादा असर हुआ है।