कोविड के दौरान दुनियाभर का हेल्थ स्ट्रक्चर दम तोड़ते हुए नजर आया। बात चाहे डॉक्टरों और नर्सों की कमी की हो, या संसाधनों की आपूर्ति की हो। भारत में तो जिस तरह से ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए मारामारी मची थी वो बेहद भयावह था। हमने यह भी देखा कि किस तरह कोरोना संक्रमण के दौर में पलंग और डॉक्टरों के अभाव में कई लोगों ने अस्पतालों के ठीक सामने दम तोड़ा। कुल मिलाकर दुनिया को समझ में आया कि असल विकास का मतलब है अपने हेल्थ और मेडिकल स्ट्रक्चर को ठीक करना। ऐसे में अब दुनिया के कई देशों ने अपने हेल्थ स्ट्रक्चर को रिवाईव करने के साथ ही मेडिकल स्टाफ और संसाधनों को बढ़ाने का मन बनाया है।
ऐसे में दुनियाभर में मेडिकल नर्सेस की मांग बढ़ी है। उसमे में भी दिलचस्प बात यह है कि दुनियाभर में भारत की नर्सेस की डिमांड है। उसकी वजह यह है कि भारत का केरल एक ऐसा राज्य है जहां से देशभर में सबसे ज्यादा नर्सों की आपूर्ति होती है। लेकिन अब केरल की नर्सेस की पूरी दुनिया में मांग है। इनमें यूरोप में सबसे ज्यादा नर्सों की मांग है। आलम यह है कि भारत से नर्सों का एक बड़ा आंकड़ा दुनिया के अलग-अलग देशों में शिफ्ट हो रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 60 से 70 प्रतिशत नर्सें परदेस का रुख कर रही हैं। हालांकि इस माइग्रेशन की कई वजहें। इसी को गहराई से समझने के लिए वेबदुनिया ने इस विषय की पूरी पड़ताल की और मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञों से चर्चा की।
क्यों अचानक नर्सों की भूमिका अहम हो गई?
कोविड संक्रमण के बाद दुनियाभर के अस्पतालों में नर्सों की बड़ी भूमिका सामने आई है। उसमें भी खासतौर से भारत की नर्सों की। जहां भारत में इन्हें बेहद कम वेतन मिलता है, और काम के घंटे ज्यादा है वहीं विदेशों में कम सेवाएं और उसके बदले अच्छी सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। इसके साथ ही केरल राज्य सरकार ने माइग्रेशन प्रोसेस को बेहद आसान बनाने के प्रयास किए हैं। एक वजह यह है कि केरल से नर्सों के लिए अब गल्फ कंट्रीज (Gulf Countries) से ज्यादा आसान पश्चिमी देशों में जाना हो गया है।
माइग्रेशन प्रक्रिया आसान, एजेंट भी नहीं
जिन भी नर्सों को यूरोप में नर्सिंग जॉब मिल रही है, वे वहां तुरंत जाने के लिए तैयार हैं। नर्सों के लिए यह जिंदगी में एक बार मिलने वाला सुनहरा मौका है, जो जिंदगी को स्थाई रूप से आसान कर सकता है। यही वजह है कि भारत में पहली बार विकसित देश एक राज्य सरकार के माध्यम से नर्सों की भर्ती कर रहे हैं। जहां तक नर्सों के विदेश जाने की प्रक्रिया का सवाल है तो माइग्रेंट की प्रोसेस में पहले के मुकाबले अब इसमें कोई एजेंट नहीं होता है, न ही इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। ऐसे विदेश भेजने के नाम पर हो रही धोखेबाजी भी कम हुई है। इसके पहले नर्सों को विदेश जाने के लिए एजेंट को पैसे देना होते थे और लंबा इंतजार करना होता था।
कई देशों ने बदले अपने नियम
भारतीय नर्सों के विदेशों में नर्सिंग सेवाएं देने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि कुछ देशों ने नर्सों की भर्ती में अपने नियम- शर्तों को बेहद कम और आसान बना दिया है। यूरोपीय देशों ने अनुभव की सीमा को एक वर्ष तक कम कर दिया है। इसके साथ ही भर्ती के लिए आयु सीमा को बढ़ाकर 45 वर्ष कर दिया गया है। जिससे अब वो नर्सें भी उस दायरे में आ गई हैं जो कम उम्र की वजह से जा नहीं पाती थी। पहले विदेशों में वहां की भाषा को लेकर भी कई दिक्कतें थीं, लेकिन कोविड के बाद कई देशों ने भाषा की अनिवार्यता को कम किया है या सर्वाइविंग यानि कामचलाऊ अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा आने पर भी ले लेते हैं। यहां तक कि कई देश नर्सों को अपने देश की भाषा की ट्रेनिंग दे रहे हैं। इस तरह की लैंग्वेज ट्रेनिंग केरल सरकार के माध्यम से हो रही है। वहीं कई देश सिर्फ मान्यता प्राप्त संस्थाओं से डिग्री देखते हैं,वे अनुभव की आवश्यकता को भी जरूरी नहीं मान रहे हैं।
सरकारी एजेंसी से हो रहीं भर्तियां
कुल मिलाकर अब केरल सरकार भी नर्सों के विदेशों में जाकर नर्सिंग सेवाएं देने के लिए आगे आ गई हैं। प्रवासी मामलों का कामकाज देखने वाली केरल सरकार की एजेंसी NORKA Roots दूसरे देशों की जरूरत के मुताबिक नर्सों को प्रशिक्षण दे रही है। पिछले साल इस कंपनी ने जर्मनी के लिए 400 नर्सों को ट्रेनिंग दी, वहीं 300 से 400 नर्सों को ट्रेनिंग दी जाना है। जापान भी नर्सों के लिए केरल से संपर्क में है। यह एजेंसी खाड़ी देश और मालदीव समेत कई अन्य देशों के लिए भी नर्सों की भर्ती करवा रही है।
केरल से 70% नर्सें चली जाती हैं विदेश
हैरानी की बात है कि भारत से बड़ी संख्या में नर्सें विदेश जा रही हैं। इंडियन नर्स एसोसिएशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक केरल में हर साल 8,500 से ज्यादा नर्सें ग्रेजुएट होती हैं। इनमें से करीब 60 से 70 प्रतिशत से ज्यादा नर्सें नर्सिंग सेवाओं के लिए विदेश चली जाती हैं। आने वाले दिनों में यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। क्योंकि कई देश अब केरल की नर्सों के लिए अनुभव पर जोर नहीं देते हैं। वे सिर्फ एक मान्यता प्राप्त संस्थान और केरल नर्सिंग काउंसिल रजिस्ट्रेशन से डिग्री देखते हैं।
जर्मनी में सबसे ज्यादा नर्सों की जरूरत
जर्मनी से ख्यात पत्रकार राम यादव ने वेबदुनिया को बताया कि जर्मनी में घरों, अस्पतालों और वृद्धाआश्रम में नर्सों की भयंकर कमी है। यहां 2 लाख अतिरिक्त नर्सें चाहिए। यहां कोरोना संक्रमण ने स्त्री-पुरुष नर्सों की कमी को बुरी तरह बढ़ा दिया है। अनुमान है कि 2030 तक जर्मनी को 5 लाख ऐसे लोगों की जरूरत पड़ेगी, जो घरों, अस्पतालों और वृद्धाश्रमों में सेवा या संभालने का काम कर सके
जर्मनी को क्यों चाहिए भारतीय नर्सें?
जर्मनी की सरकारी रोजगार एजेंसी ने भारत से नर्सें लाने के लिए केरल की सरकार से 2021 में एक समझौता किया है। केरल से इसलिए, क्योंकि केरल की कई सौ नर्सें पहले से ही जर्मनी में अपनी सेवाएं दे रही हैं। जनसंख्या के अनुपात में भारत में केरल में ही सबसे अधिक नर्सें हैं और उन्हें ही सबसे बेहतर प्रशिक्षित भी माना जाता है। समझौते के अनुसार 2023 में केरल की कई नर्सें जर्मनी जाएंगी।
केरल में नर्सों का संकट : अस्पतालों में 50 फीसदी पद रिक्त
दिलचस्प बात यह है कि जिस राज्य केरल से पूरे भारत के अस्पतालों के लिए इतनी नर्सें निकलती हैं, खुद वही राज्य नर्सों का संकट झेल रहा है। बता दें कि केरल में भारत की 90 प्रतिशत रजिस्टर्ड नर्सें हैं। 20 लाख में से 18 लाख नर्सें सिर्फ केरल से हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर के विदेश चले जाने से केरल के अस्पतालों में भी नर्सों की कमी हो रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केरल के ज्यादातर अस्पतालों में ग्रेजुएट और अनुभवी स्टाफ नर्सों के करीब 50 फीसदी पद रिक्त पड़े हैं।
भारतीय नर्स: सेवा, समर्पण और भरोसा
मेडिकल सेक्टर पूरी तरह से सेवा, समर्पण और भरोसे जैसे गुणों पर आधारित है। भारतीय नर्सें इस मामले में दूसरे देशों की तुलना में कहीं ज्यादा सेवाभाव के साथ मरीज की देखभाल करती हैं। वे मरीज के साथ एक तरह का रिश्ता बना लेती हैं। यही अपनापन और भरोसा भारतीय नर्सों की खासियत है। जबकि तुलनात्मक तौर पर विदेशी नर्सों में यह कम देखने को मिलता है। इस लिहाज से भी विदेशों में भारतीय नर्सों की डिमांड ज्यादा होती है।
भारत में 670 लोगों पर सिर्फ 1 नर्स
अब बात करते हैं भारत में नर्सों और मरीजों के अनुपात की। पंजाब में नर्स और डॉक्टर के बीच 6.4:1, दिल्ली में 4.5:1 का अनुपात है। दूसरी तरफ बिहार, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश में हर डॉक्टर पर एक से भी कम नर्स है। केरल जैसा राज्य जहां से सबसे ज्यादा नर्सें तैयार होती हैं, वहां नर्स और डॉक्टर का अनुपात 1:1 से कम है। भारत के 15वें वित्त आयोग के मुताबिक जनसंख्या पर नर्स का अनुपात देश में 1:670 है, जबकि ये संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के नियम 1:300 के खिलाफ है। कुल मिलाकर देश के कई शहरी और ग्रामीण स्वास्थ्य कैंद्रों में नर्सों के पद रिक्त पड़े हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में यदि नर्सों की भर्ती में 200 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो 2030 तक डॉक्टर-नर्स का अनुपात देश में 1 : 1.5 तक हो सकता है।
क्या कहते हैं मेडिकल विशेषज्ञ?
हमने एक साल में 400 नर्सें नियुक्त की
इंदौर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ संजय दीक्षित नेवेबदुनिया को बताया कि यह सही है कि साउथ से ईस्टर्न कंट्रीज में भारतीय नर्सें माइग्रेट कर रही हैं, हालांकि भारत में भी अस्पतालों के कॉर्पोरेट बनने के बाद यहां भी नर्सें अच्छे पैकेज पर काम कर रही हैं। पहले माइग्रेशन ज्यादा था, अब उतना नहीं है। हमने खुद एक साल में 400 नर्सों की भर्ती की है।
नर्सिंग काउंसिल को निगरानी रखना होगी
एमजीएम के पूर्व डीन डॉ शरद थोरा ने वेबदुनिया को बताया कि केरल महिलाओं की लिटरेसी रेट ज्यादा है। वे साढ़े चार साल खर्च कर नर्स बनती हैं, लेकिन भारत में उन्हें अच्छा पैकेज नहीं मिलता। जबकि विदेशों में सैलरी और सुविधाएं ज्यादा हैं। ऐसे में भारत में नर्सों को अच्छी सुविधाएं देना होगी। कम से कम 20 हजार फ्रेशर को ही मिलना चाहिए। इसके साथ ही नर्सिंग काउंसिल ऑफ इंडिया को नर्सों की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। इन दिनों जगह जगह नर्सिंग कॉलेज खुल आए हैं, जहां से अनट्रेंड नर्सें आ रही हैं। ऐसे में अच्छी नर्सें प्रोड्यूस करने और उन्हें अच्छे पैकेज और सुविधाओं के लिए नर्सिंग काउंसिल को आगे आना चाहिए।
यहां 35 हजार, विदेश में डेढ़ लाख सैलरी
नर्सिंग होम ऐसोसिएशन इंदौर के प्रेसिडेंट विजय हराल्का ने वेबदुनिया को बताया कि दरअसल, एक बड़ी वजह तो यह है कि यहां शुरुआत में किसी भी नर्स को कम सैलरी मिलती है। प्राइवेट में 20 से 25 हजार, तो सरकारी में 25 से 35 हजार तक मिलती है। वहीं विदेश में नर्सिंग सेवाएं देने पर सैलरी सीधे 1 लाख से डेढ़ लाख हो जाती है। दूसरा भारत में नर्सिंग सेवाओं के लिए बहुत नर्सें मिल जाती हैं। केरल में लिटरेसी रेट 100 प्रतिशत है, ऐसे में वहां की ज्यादातर लड़कियां नर्सिंग स्टाफ की पढ़ाई करती हैं। केरल में करीब 1 वर्ष के अनुभव वाली बी.एससी नर्स एक साल में 1 लाख रुपए से 2 लाख रुपए तक कमाती है।