G-20 की बैठक से पहले जम्मू-कश्मीर में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा, खूनी तारीख के रूप में दर्ज है 21 मई

सुरेश एस डुग्गर
शनिवार, 20 मई 2023 (19:21 IST)
G-20 की 22 मई से आरंभ हो रही 3 दिवसीय बैठक से पहले के एक दिन 21 मई को भूला नहीं जा सकता जिसका जम्मू-कश्मीर के आतंकवाद के दौर के इतिहास में अपना ही एक खूनी इतिहास है। 2006 में 21 मई को श्रीनगर में कांग्रेस की रैली पर होने वाला हमला कश्मीर के इतिहास में कोई पहला हमला नहीं था। किसी जनसभा पर आतंकी हमले का कश्मीर का अपना उसी प्रकार एक रिकॉर्ड है जिस प्रकार कश्मीर में 21 मई को होने वाली खूनी घटनाओं का इतिहास है।

आम कश्मीरी तो 21 मई को सताने वाला दिन कहते हैं जब हर वर्ष आग बरसती आई है। यही कारण था कि जी-20 की बैठक के लिए जो त्रिस्तरीय सुरक्षा प्रबंधों को अंतिम रूप दिया गया है उसमें 21 मई को भी मद्देनजर रखा गया है। हालांकि इस बार किसी भी आतंकी या अलगाववादी ग्रुप ने 21 मई को हड़ताल का आह्वान नहीं किया है।
 
कश्मीर में रैलियों और जनसभाओं पर हमले करने की घटनाएं वैसे पुरानी भी नहीं हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2002 में ही हुई थी जब पहली बार आतंकियों ने 21 मई के ही दिन श्रीनगर के ईदगाह में मीरवायज मौलवी फारूक की बरसी पर आयोजित सभा पर अचानक हमला बोलकर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के तत्कालीन चेयरमैन प्रो. अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी थी।
 
वर्ष 2002 में ही उन्होंने करीब 14 रौलियों व जनसभाओं पर हमले बोले। इनमें 37 से अधिक लोग मारे गए थे। सबसे अधिक हमले 11 सितंबर को बोले गए थे जिसमें तत्कालीन कानून मंत्री मुश्ताक अहमद लोन भी मारे गए थे। हालांकि उसी दिन कुल 9 चुनावी रैलियों पर हमले बोले गए थे जिसमें कई मासूमों की जानें चली गई थीं।

 
इतना जरूर है कि  2006 में 21 मई को हुआ हमला कश्मीरियों को फिर यह याद दिला गया था कि 21 मई के साथ कश्मीर का खूनी इतिहास जुड़ा हुआ है। आतंकवाद की शुरूआत के साथ ही 21 मई कश्मीरियों को कचोटती रही है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर 25 साल पहले आतंकवादियों ने 21 मई के दिन हुर्रियत के अध्यक्ष मीरवायज उमर फारूक के अब्बाजान मीरवायज मौलवी फारूक की नगीन स्थित उनके निवास पर हत्या कर दी थी। इस हत्या के बाद ही कश्मीर में आतंकवाद ने नया मोड़ लिया था और आज यह इस दशा में पहुंचा है।
  
‘सिख फार जस्टिस’ भी विरोध में : संयुक्त राष्ट्र में श्रीनगर में जी-20 पर्यटन समूह की बैठक के संचालन के मुद्दे को पाकिस्तान की ओर से उठाए जाने के घंटों बाद, ब्रिटेन स्थित एक विरोधी समूह भी ‘बायकाट जी-20’ अभियान में कूद गया है।

आतंकी गुट ‘सिख फार जस्टिस’ अर्थात एसएफजे के रिकॉर्ड किए गए संदेशों ने जम्मू-कश्मीर में मोबाइल फोन यूजर्स को बैठक का बहिष्कार करने और श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को अवरुद्ध करने का आह्वान करना शुरू कर दिया है।
 
सिख फार जस्टिस के संयोजक गुरपतवंत सिंह पन्नू की ओर से यूके के नंबरों से पिछले कई दिनों से कई मोबाइल फोन यूजर्स के पास एक प्री-रिकार्डेड संदेश आना शुरू हुआ है।

रिकॉर्ड किए गए संदेश में न केवल श्रीनगर में जी-20 बैठक के बहिष्कार का आह्वान किया गया है, बल्कि यह कहते हुए कि कश्मीर भारत का नहीं है, यह अलगाववादियों को प्रतिनिधियों को आने से रोकने के लिए हवाई अड्डे पर धावा बोलने के लिए उकसा रहा है।
 
आडियो संदेश में दोहराया गया है कि कश्मीर भारत का नहीं है। इस संदेश में आह्वान किया जा रहा है कि कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानियों के नरसंहार का पर्दाफाश करने के लिए कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानी श्रीनगर पहुंचें और हवाईअड्डे को ब्लाक कर दें।

जी-20 बैठक से पहले या उसके दौरान जम्मू कश्मीर में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर संभावित हमले का संकेत देते हुए, आडियो संदेश लगातार भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रहा है।
 
आडियो संदेश में आगे कहा गया है कि श्रीनगर सम्मेलन का बहिष्कार करें और कश्मीरी पंडितों को बचाएं। यह संदेश आगे कहता है कि सुरक्षाबल कश्मीरी पंडितों को मारना चाहते हैं और कश्मीरी आतंकवादियों और पाकिस्तान को दोष देना चाहते हैं। इस डिजाइन को बंद करें।

जी-20 का बहिष्कार करें। नई दिल्ली और पंजाब में किसान विरोध के बाद यह पहली बार है कि इस तरह के रिकार्ड किए गए आडियो संदेशों ने जम्मू कश्मीर में मोबाइल उपयोगकर्ताओं को सुनाना शुरू किया गया है।
 
जानकारी के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने श्रीनगर में जी-20 की बैठक से पहले ही हाई अलर्ट जारी कर दिया है और पूरे क्षेत्र में सुरक्षा अभियान और आतंकवाद विरोधी अभियान तेज कर दिए हैं।

किसी भी फिदायीन हमले को विफल करने के लिए जम्मू कश्मीर पुलिस के साथ कश्मीर घाटी में पहली बार एनएसजी और मार्कोस कमांडो तैनात किए गए हैं। भारतीय सेना और अर्धसैनिक बल अन्य स्थानों और बैठक वाले  क्षेत्रों के आसपास सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं।

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