उन्होंने कहा कि लोगों को इससे दिक्कत है, वे कह रहे हैं कि इसमें इसकी कमी है, इसमें वह नहीं है। इसमें यह शामिल किया जाना चाहिए था। मैं उस चर्चा में नहीं पड़ना चाहता, मुझे इसका यकीन है कि सुधार की जरूरत है, शायद यह परिपूर्ण नहीं है। हो सकता है कि यह हर किसी की पूर्ण संतुष्टि के अनुसार न हो, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अख्तर ने कहा कि पहले इसे पारित होने दीजिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह अभी भी परिपूर्ण नहीं है। यदि आपका इरादा है तो इसे पारित होने दीजिए। और एक बार जब यह पारित हो जाता है, तो अंतत: आप इसे सुधारने के लिए समय के साथ संशोधन करते रह सकते हैं।
उन्होंने इससे पहले विधेयक का स्वागत करते हुए सोशल मीडिया मंच 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर इसी तरह के विचार पोस्ट किए थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि मैं महिला आरक्षण विधेयक का तहेदिल से स्वागत करता हूं। इसमें अत्यधिक देरी हो चुकी थी। हो सकता है कि कुछ लोगों की राय में यह परिपूर्ण न हो, लेकिन समय के साथ कई कानूनों में संशोधन और सुधार किया गया है। आइए कम से कम प्रक्रिया शुरू करें।
हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 का उदाहरण देते हुए अख्तर ने कहा कि बेटियों को सहदायिक के रूप में शामिल करने में भी लगभग 50 साल लग गए जिससे उन्हें बेटे के समान अधिकार मिले। उन्होंने कहा कि हिन्दू संहिता विधेयक 1956 में बनाया गया था, यह उस समय बहुत कमजोर था। इसको लेकर काफी हंगामा हुआ लेकिन यह पारित हो गया। समय के साथ यह बेहतर से बेहतर होता गया। यदि आप तभी इसे कमजोर बता छोड़ देते तो हम यहां तक नहीं पहुंचते।
अख्तर ने कहा कि तो आइए पहले इसे पारित कराएं, फिर देखेंगे। आखिरकार यह होगा। हालांकि यदि आप इसे यहीं रोक देंगे तो कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकेगा और यह होना ही चाहिए। विधेयक के अनुसार यह लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद लागू होगा, जो अगली जनसंख्या जनगणना के पूरा होने के बाद किया जाएगा।(भाषा)