कोटा में एक हफ्ते में दूसरे विद्यार्थी ने की आत्महत्या
परिजन क्यों नहीं समझ पा रहे बच्चों पर सफल होने का प्रेशर
साल 2023 में कोटा में 26 विद्यार्थियों ने की आत्महत्या
क्यों देश में छात्र-छात्राओं के आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं?
Student Suicide in India : परीक्षा पर चर्चा के सातवें संस्करण के मौके पर सोमवार को ही पीएम नरेंद्र मोदी ने संबोधित करते हुए बच्चों और उनके परिजनों दोनों को संदेश दिया। स्कूल-कॉलेज के छात्रों को पीएम ने कहा कि विद्यार्थी खुद से प्रतिस्पर्धा करें न कि दूसरों से। वहीं परिजनों को हिदायत देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि बच्चों के रिपोर्ट कार्ड को परिजन अपना विजिटिंग कार्ड न बनाएं।
दरअसल, यह बात पढ़ाई और प्रतियोगिता परीक्षाओं में लगातार बढ़ते तनाव और परीक्षा में नंबर वन बनने को लेकर मची होड़ और रेस को लेकर थी। लेकिन दुखद है कि बावजूद इसके देश में छात्र-छात्राओं के आत्महत्याओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
जिस दिन परीक्षा पर चर्चा, उसी दिन सुसाइड : सोमवार को जिस समय पीएम मोदी परीक्षा पर चर्चा में बच्चों से चर्चा कर रहे थे, ठीक उसी दिन राजस्थान के कोटा में एक 18 साल की छात्रा निहारिका सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। बता दें कि राजस्थान का कोटा शहर तमाम तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक बड़ा कोचिंग हब बन गया है। यहां देशभर से बड़ी संख्या में बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पहुंचते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से कोटा में छात्र-छात्राओं के आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। कोटा में पिछले एक हफ्ते में स्टूडेंट की सुसाइड का यह दूसरा मामला है। 23 जनवरी को कोटा में ही 19 साल के मोहम्मद जैद ने हॉस्टल में आत्महत्या कर ली। वो नीट की तैयारी कर रहा था।
सुसाइडनोट में दिखा तनाव मम्मी-पापा मैं जेईई नहीं कर सकती : सोमवार को 18 साल की निहारिका सिंह ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। 30 और 31 जनवरी को उसका जेईई का पेपर होना था। पुलिस के मुताबिक उसने सुसाइड नोट में लिखा है कि मम्मी पापा मैं जेईई नहीं कर सकती, इसलिए सुसाइड कर रही हूं। मुझे माफ करना, मैं एक लूजर हूं। मेरे पास सुसाइड का ही एक ऑप्शन है। निहारिका के भाई विक्रम ने बताया कि वो परीक्षा को लेकर तनाव में थी।
छात्र कैसे झेलते होंगे तनाव : सुसाइड नोट से कुछ हद तक यह पता चल रहा है कि निहारिका पर जेईई में सफल होने का तनाव था। चूंकि कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की बड़े पैमाने पर तैयारी होती है, जाहिर है वहां चारों तरफ सिर्फ परीक्षाओं में पास होने की चर्चा, अच्छे नंबर लाने की बहस और मार्कशीट में नंबर वन बनने की होड़ सी ही नजर आती है। इन सब के बीच घिरे विद्यार्थी इस तनाव को कैसे झेलते होंगे यह तो कोई नहीं जानता। अपने घर से दूर अकेले ये छात्र कितने अवसाद में हो सकते हैं यह बात उनके परिजन भी नहीं जानते। परिजन तो चाहते हैं कि उनके बच्चे टॉपर्स बनकर लाखों रुपए के पैकेज वाली नौकरी करे और उनकी जीवन सफल हो जाए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
परिजन और बच्चों के मध्य संवाद बेहद जटिल हो गया है। पेरेंटिंग के स्थापित सिद्धांतों को बदलने की महती आवश्यकता है। सोचिए, कितनी विडंबना है कि बच्चा जान देने के लिए तैयार है लेकिन हम उन्हें कोचिंग और तैयारी छोड़ने का साहस नहीं दे पा रहे हैं।- डॉ सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक, भोपाल
जिनोम छोड़ आशी ने बनाया ईवेंट में कॅरियर केस 01 : स्कूल के बाद आशी चौहान के माता- पिता चाहते थे कि उनकी बेटी जिनोम सिक्वेंसिंग में अपना करियर बनाए। माता-पिता के प्रेशर और उनकी इच्छा का ख्याल करते हुए आशी ने जिनोम विषय में ग्रेजुएशन के लिए दाखिला ले भी लिया। लेकिन उसका मन यहां बिल्कुल नहीं लगता था। वो ईवेंट मैनेजमेंट में अपना कॅरियर बनाना चाहती थी। जैस-तैसे ग्रेजुएशन के बाद उसने अपने मन की बात माता-पिता को बताई। यहां आशी भाग्यशाली थी कि उसके माता-पिता ने उसके ऊपर प्रेशर डाले बगैर उसे ईवेंट कंपनी में ट्रेनी के तौर पर काम करने की अनुमति दे दी। आज आशी कार्पोरेट ईवेंट, बिजनेस ईवेंट, म्यूजिक कंसर्ट और थीम मैरिज से लेकर कई तरह के ईवेंट बेहद सफल तरीके से ऑर्गनाईज कर रही है। वो ईवेंट में काम करने वाले करीब 20 लोगों की टीम को लीड कर रही है। दिलचस्प बात है कि उसने ईवेंट में कोई कोर्स या ग्रेजुएशन नहीं किया।
पोस्टमार्टम नहीं, लेखक बनकर कहानियां लिखना है केस 02 : गीतांजलि दईया के परिजन उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन गीतांजलि का मन चीर-फाड़ और पोस्टमार्टम से ज्यादा आदमी की भावनाओं, उनके रिश्ते और जिंदगी के बेहद महीन धागों को कहानियों में पिरोने में लगता था। इसलिए वो राइटर बनना चाहती थी। मेडिकल में एंट्रेंस की तैयारी और एडमिशन को लेकर आए दिन घर में तनाव और विवाद होता था। लेकिन कुछ चर्चाओं के बाद उसके माता-पिता मान गए। हालांकि बाद में उसने पत्रकारिता के कोर्स में भी दाखिला ले लिया। आज वो न सिर्फ एक वेबसाइट की सफल पत्रकार है, बल्कि उसकी कहानियों की एक किताब भी प्रकाशित हो चुकी है। दूसरी किताब के लिए वो तैयारी कर रही है। गीताजंलि के मम्मी- पापा भी उसके कॅरियर से खुश हैं, क्योंकि बतौर लेखक उसे कई लोग जानते हैं।
अगर परिजन नहीं मानते तो ये भी सुसाइड कर लेते : सवाल यह है कि इन दोनों ही मामलों में परिजनों ने अपने बच्चों की बात मानी और उनका साथ दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद आशी और गीतांजलि भी तनाव में आकर अपने कॉलेज के हॉस्टल में कहीं आत्महत्या के बारे में सोच रहीं होती। ऐसे में बच्चों के कॅरियर को लेकर परिजनों की भूमिका बेहद ज्यादा अहम हो जाती है।