नई दिल्ली। तय अवधि के लिए निश्चित भुगतान पर काम करने वाले 'गिग' कर्मचारियों की संख्या भारत में वर्ष 2029-30 तक बढ़कर 2.35 करोड़ हो जाने की उम्मीद है जबकि वर्ष 2020-21 में यह संख्या 77 लाख थी। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में सोमवार को यह अनुमान जताया गया। इस रिपोर्ट में अंशकालिक समय के लिए काम करने वाले गिग कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की सिफारिश भी की गई है।
कौन होते हैं गिग कर्मचारी? : गिग कर्मचारियों को मोटे तौर पर प्लेटफॉर्म और गैर-प्लेटफॉर्म कर्मचारियों में वर्गीकृत किया जाता है। प्लेटफॉर्म कर्मचारियों का काम ऑनलाइन सॉफ्टवेयर ऐप या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आधारित होता है जबकि गैर-प्लेटफॉर्म गिग कर्मचारी आमतौर पर दैनिक वेतन वाले श्रमिक होते हैं, जो अल्पकालिक या पूर्णकालिक काम करते हैं।
इस तरह विकसित हुई गिग इकोनॉमी : 2000 के दशक में इंटरनेट जैसी सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के विकास और स्मार्टफोन के लोकप्रिय होने के कारण अर्थव्यवस्था और उद्योग का डिजिटलीकरण तेजी से विकसित हुआ। नतीजतन डिजिटल प्रौद्योगिकी पर आधारित ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म ने नौकरियों और रोजगार के रूपों का निर्माण किया है, जो मौजूदा ऑफलाइन लेनदेन से पहुंच, सुविधा और मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता के स्तर से अलग हैं।
सामान्य तौर पर काम को एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में वर्णित किया जाता है जिसमें काम के घंटे निर्धारित होते हैं जिसमें लाभ भी शामिल हैं। लेकिन बदलती आर्थिक परिस्थितियों और निरंतर तकनीकी प्रगति के साथ काम की परिभाषा बदलने लगी और अर्थव्यवस्था में बदलाव ने स्वतंत्र और संविदात्मक श्रम की विशेषता वाली एक नई श्रम शक्ति का निर्माण किया। 36% अमेरिकी कर्मचारी अपनी प्राथमिक या माध्यमिक नौकरियों के माध्यम से गिग इकोनॉमी में शामिल होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार यूरोप में 14 यूरोपीय संघ के देशों के 9.7 प्रतिशत वयस्कों ने 2017 में गिग अर्थव्यवस्था में भाग लिया।