गले में रुद्राक्ष, नंगे पैर, सौम्य मुस्कान, जानिए कौन हैं पद्मश्री सम्मानित आचार्य जोनस मसेट्‍टी

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

बुधवार, 28 मई 2025 (16:22 IST)
who is Acharya Jonas Majetti: गले में रुद्राक्ष की माला, चेहरे पर सौम्य मुस्कान और सूती परिधान में एक शख्स पद्म सम्मान के दौरान नंगे पांव राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर बढ़ता है, तभी सबकी निगाह उन पर आकर टिक जाती हैं। वे सभी को हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं, फिर राष्ट्रपति से पद्मश्री सम्मान स्वीकार करते हैं। ये हैं ब्राजील के आचार्य जोनस मजेट्‍टी, जो भारत की वैदिक संस्कृति के साथ ही भगवत गीता का प्रचार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में उनकी तारीफ कर चुके हैं। 
 
आचार्य मजेट्‍टी को अध्यात्म के क्षेत्र में काम करने के लिए भारत सरकार के प्रतिष्ठित पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर मजेट्‍टी भारतीय अध्यात्म और दर्शन से इतने प्रभावित हैं कि विश्व में वेदांत और भगवत गीता के ज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। मजेट्‍टी का जन्म ब्राजील में हुआ था। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग पूरी की और स्टॉक मार्केट में काम किया। हालांकि, जीवनशैली से संतुष्ट न होने के कारण उन्होंने आध्यात्मिकता की ओर रुख किया। भारत आकर उन्होंने वेदांत और योग की शिक्षा ली और आचार्य दयानंद सरस्वती के आश्रम में वेदांत की शिक्षा प्राप्त की।
कौन हैं मजेट्टी: जोनास मजेट्टी का जन्म ब्राजील में हुआ था। उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग पूरी की और स्टॉक मार्केट में भी काम किया। भारत आकर उन्होंने आचार्य दयानंद सरस्वती के आश्रम में वेदांत और योग की शिक्षा प्राप्त की। भारत में वेदांत और अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त करने के बाद, जोनस ने ब्राजील के पेट्रोपोलिस में विश्व विद्या गुरुकुलम नामक संस्था की स्थापना की। 
 
मजेट्‍टी को विश्वनाथ के नाम से भी जाना जाता है। इस संस्था के माध्यम से जोनस वे ब्राजील और अन्य देशों में वेदांत, योग, संस्कृत, गीता और रामायण का प्रचार-प्रसार करते हैं। उनकी शिक्षाओं से अब तक 1.5 लाख से अधिक छात्र प्रभावित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी 2020 में अपने 'मन की बात कार्यक्रम' में मजेट्‍टी की प्रशंसा कर चुके हैं। मोदी ने मजेट्‍टी को भारत का सांस्कृति राजदूत करार दिया था। 
यह बहुत बड़ा सम्मान है : पद्मश्री सम्मान मिलने के बाद मजेट्‍टी ने कहा कि मुझे इसकी उम्मीद नहीं थी। यह बहुत बड़ा सम्मान है। उन्होंने कहा कि ब्राजील में बहुत से लोग वेदांत का अध्ययन कर रहे हैं। यह सम्मान न केवल मेरे लिए बल्कि इस परंपरा के लिए प्रयास करने वाले हमारे परिवार के लिए भी एक सम्मान की बात है। मैं ब्राजील की सबसे बड़ी कंपनियों के साथ काम करता था। लेकिन, मैं अपने जीवन में खालीपन महसूस खालीपन महसूस करता था और अपने जीवन का अर्थ तलाश रहा था।
 
तमिलनाडु में सीखी वैदिक संस्कृति : इसी तलाश में मैंने फिर मैंने वैदिक संस्कृति के बारे में सीखा और तमिलनाडु में स्वामी दयानंद के आश्रम में पहुंच गया। मुझे समझ में आया कि मुझे उस जगह वापस जाना होगा, जहां से मैं आया हूं। मुझे वेदों के ज्ञान और संदेश का प्रसार करना होगा। उन्होंने कहा कि भारत में इतने सारे शिक्षक हैं कि किसी पश्चिमी व्यक्ति को यहां आकर अपनी संस्कृति सिखाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की कि भारत के बहुत से युवा अपनी संस्कृति को महत्व नहीं दे रहे हैं। वे पश्चिमी सोच के प्रति मोहित हो रहे हैं। यह उचित नहीं है। 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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