Rajya Sabha: राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने राष्ट्रपति के अभिभाषण (Presidential Address) को घोर निराशाजनक और केवल सरकार की तारीफों के पुल बांधने वाला करार देते हुए सोमवार को कहा कि इसमें न तो कोई दिशा है और न ही कोई दृष्टि है।
उच्च सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर सोमवार को चर्चा में हिस्सा लेते हुए खरगे ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) परीक्षा की जांच उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच, जाति आधारित जनगणना कराने और अग्निवीर योजना को रद्द करने की मांग की।
इसके साथ ही उन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों को उल्लेख किया और कहा कि चुनावों में देश का संविधान और जनता सब पर भारी रहे और संदेश दिया कि लोकतंत्र में अहंकारी ताकतों को कोई जगह नहीं है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का अभिभाषण की विषय-वस्तु सरकारी होती है। सरकारी पक्ष को इसे दृष्टि पत्र बनाना था और यह बताना था कि चुनौतियों से कैसे निपटेंगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ नहीं है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पहले अभिभाषण का जिक्र करते हुए खरगे ने कहा कि वह चुनावी था और दूसरा उसी की प्रति जैसा है।
उन्होंने कहा कि इसमें न कोई दिशा है, न ही कोई दृष्टि है। हमें भरोसा था कि राष्ट्रपति संविधान और लोकतंत्र की चुनौतियों पर कुछ बातें जरूर रखेंगी, सबसे कमजोर तबकों के लिए कुछ ठोस संदेश देगी लेकिन हमें घोर निराशा हुई कि इसमें गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए कुछ भी नहीं है।
उन्होंने कहा कि पिछली बार की तरह यह केवल तारीफों के पुल बांधने वाला अभिभाषण है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अभिभाषण में बुनियादी मुद्दों को नजर अंदाज किया गया है, विफलताओं को छुपाया गया है, जिसमें यह सरकार माहिर है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण में सबको साथ लेकर चलने की बात का जिक्र करते हुए खरगे ने कहा कि इस भाव से किसी को इनकार नहीं हो सकता लेकिन 10 साल का विपक्ष का तजुर्बा यह है कि यह बातें भाषणों तक ही सीमित रही है और इनका जमीन पर अमल नहीं हुई तथा उल्टा हुआ।
उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में ग्रामीण मतदाताओं ने अधिक उत्साह से भाग लिया लेकिन शहरों में पढ़े लिखे और पैसे वाले लोग इसमें पीछे रहे। उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र में प्रजा ही मालिक है। देश के इतिहास में यह पहला चुनाव था, जिसमें संविधान की रक्षा मुद्दा बना। भाजपा ने 400 पर का नारा दिया और उसके कई नेताओं ने तो यहां तक कहा कि भाजपा संविधान बदलेगी।
खरगे ने कहा कि इस वजह से इंडिया गठबंधन को संविधान बचाने की मुहिम चलानी पड़ी। उन्होंने कहा कि जनता ने यह महसूस किया कि बाकी मसले आते जाते रहेंगे पर संविधान बचेगा तभी लोकतंत्र रहेगा और चुनाव भी होंगे और हम और आप यहां बैठेंगे। इस लड़ाई में नागरिकों ने विपक्ष का साथ दिया। गरीबों, किसानों, मजदूरों, पीड़ितों, शोषितों और महिलाओं ने हमारा सबका साथ दिया और लोकतंत्र को बचाने का बचाने का बहुत बड़ा काम किया।
सत्ताधारी दल के लोग संविधान का जप कर रहे : उन्होंने आरोप लगाया कि अब भी सामाजिक न्याय के विपरीत मानसिकता वाले लोग देश में मौजूद हैं और यह लड़ाई तभी पूरी होगी जब ऐसी विचारधारा को उखाड़ फेंका जाए। उन्होंने कहा कि इसके लिए हम सबको भी मेहनत करनी पड़ेगी। इस चुनाव की एक खूबी यह भी है कि जनादेश के डर से सत्ताधारी दल के लोग संविधान का जप कर रहे हैं। ऐसे लोग भी हैं जिनको संसद में जय संविधान के नारे पर भी आपत्ति है। ऐसे लोग भी सदन में हैं, ऐसी पार्टी भी सदन में है। इसीलिए संविधान की रक्षा का मसला अभी भी कायम है।
खरगे ने कहा कि भारत की जनता ने इनकी असली मंशा, सोच और इरादों को परख लिया है इसीलिए संविधान माथे पर लगाने से काम नहीं चलेगा बल्कि इसके मूल्य पर आपको चलकर दिखाना होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि बीते एक दशक में संसदीय संस्थाओं और लोकतांत्रिक परंपराओं को लगातार कमजोर किया गया और विपक्ष को नजर अंदाज किया गया है और यहां तक कि संसद में विपक्ष को अपनी बातें रखने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा।
उन्होंने कहा कि क्योंकि इनकी सोच में ऐसी संसद थी जिसमें कोई विपक्ष न हो। ऐसी सोच नहीं होती तो 17वीं लोकसभा में पहली बार उपाध्यक्ष का पद खाली नहीं रहता। उन्होंने दावा किया कि संविधान के तहत हम सब कुछ काम करते हैं लेकिन भाजपा इसके विपरीत करती है।
उन्होंने कहा कि इसी राज्यसभा में प्रधानमंत्री ने छाती ठोक कर विपक्ष को ललकारते हुए कहा था कि एक अकेला सब पर भारी। लेकिन मैं यह पूछना चाहता हूं एक अकेले पर आज कितने लोग भारी हैं, चुनावी नतीजे ने दिखा दिया है। दिखा दिया है कि देश का संविधान और देश की जनता सब पर भारी है। लोकतंत्र में अहंकारी ताकतों को जगह नहीं है।(भाषा)